दिवाली सही है या दीवाली है? यह एक ऐसा सवाल है जो हर साल इस पर्व के आसपास उभरता है और सोशल मीडिया पर पूछा जाता है। स्थिति तब और उलझन भरी हो जाती है जब कोई बंदा लिखता है कि ये दोनों ही ग़लत हैं। आज के नेमगेम में हम यही पता लगाते हैं कि क्या दीवाली और दिवाली ग़लत हैं? रुचि हो तो पढ़ें।
सबसे पहले यह जानते हैं कि हिंदी मीडिया में क्या लिखा जा रहा है। मैंने नेट पर जो ख़बरें देखीं, उससे पता चला कि दिवाली शब्द का प्रयोग सबसे अधिक हो रहा है, उसके बाद दीवाली का और सबसे कम प्रयोग दीपावली का किया जा रहा है।
यानी जिस शब्द के बारे में कोई संदेह ही नहीं है, उसका प्रयोग सबसे कम हो रहा है। लेकिन जिनका अधिक प्रयोग हो रहा है, उनमें से भी कौनसा सही है और कौनसा ग़लत है? या क्या वाक़ई दोनों ग़लत हैं या दोनों सही हैं? आइए, जानते हैं।
अगर लोगों की बात करें तो कोई आधे लोग दिवाली को सही बताएँगे और आधे दीवाली को। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि कुछ साल पहले मैंने इन्हीं दो शब्दों पर फ़ेसबुक पर पोल किया था। तब 57% ने दिवाली को सही बताया था और 43% ने दीवाली को (देखें चित्र)।

पहले जान लेते हैं कि जो लोग इन दोनों को ही ग़लत बताते हैं, उनका क्या तर्क है। तर्क यह है कि मूल संस्कृत शब्द दीपावली है जबकि दिवाली और दीवाली संस्कृत में नहीं है। यह बड़ा ही अजीब तर्क है क्योंकि यदि हम इसी तर्क के आधार पर ग़लत-सही का फ़ैसला करने लगे तो हमें बहुत सारे हिंदी के शब्दों को ग़लत मानते हुए छोड़ना होगा। तब दूध भी ग़लत होगा और घर भी। हाथ भी ग़लत होगा और आँख भी।
इसमें कोई संदेह नहीं कि मूल शब्द दीपावली है लेकिन यह भी सही है कि इसी दीपावली से दीवाली और दिवाली भी बने हैं।
लेकिन कई लोगों को बात समझ में नहीं आती। वे सोचते हैं कि दीपावली से दीवाली/दिवाली बना तो दीप का ‘प’ कहाँ गया, ‘वली का ‘वाली’ कैसे हो गया। आज हम इसी की पड़ताल करेंगे।
दरअसल हिंदी के कई शब्द संस्कृत से सीधे आए हैं (तत्सम) और कई प्राकृत के मार्फ़त (तद्भव)। दीपावली का दीवाली भी प्राकृत के मार्फ़त ही हुआ है।
प्राकृत में दीप को दीव कहते हैं (देखें चित्र)।

यानी दीप शब्द जब प्राकृत में गया तो दीप का ‘प’ हट गया और वह ‘व’ हो गया। प्राकृत के इस ‘दीव’ का प्रभाव आज भी पश्चिमी भारत में देखा जा सकता है जहाँ दीये को गुजराती में દીવો और मराठी में दिवा कहा जाता है। हिंदी में भी लोक में दीवा का प्रचलन है हालाँकि दीया अधिक चलता है। वैसे दीया भी प्राकृत के माध्यम से ही आया है। प्राकृत में दीप का एक रूप दीऊ भी था जो आगे चलकर दीया में बदल गया (देखें चित्र)।

संस्कृत का ‘दीप’ जब प्राकृत में ‘दीव’ बन गया तो दीपावली का रूप भी बदलना ही था। वह भी दीपावली से दीववली हो गया (देखें चित्र)।
प्राकृत का यह दीववली ही संभवतः आगे चलकर दीवाली बना। भाषाविद् डॉ. सुरेश पंत के अनुसार यह परिवर्तन कुछ इस तरह हुआ होगा – दीप>दीव + अवली>वली= दीववली जो बाद में दीवली > दीवाली हो गया।

दिलचस्प बात यह है कि संधि विच्छेद करने पर दीवाली का भी वही अर्थ निकलता है जो दीपावली का है।
- दीप (दीया) + अवली (पंक्ति) = दीपावली
- दीवा (दीया) + अली (पंक्ति) = दीवाली।
चलिए, यह तो हमने जान लिया कि दीवाली दीपावली से ही बना है और संधि विच्छेद से उसका अर्थ भी वही निकलता है जो दीपावली का है। लेकिन दिवाली का मसला तो अभी सुलझा नहीं। यह दीवाली आख़िर दिवाली कैसे हो गया?
मेरी समझ से इसका कारण दीवाली शब्द में मौजूद मात्राएँ हैं जो तीनों की तीनों भारी हैं। तीन वर्ण, तीनों के साथ दीर्घ स्वर – ई(दी), आ(वा), ई(ली)। ऐसे शब्द बोलने में हमारी जीभ को तकलीफ़ होती है और वह एकाध मात्रा को हल्की कर देती है, ख़ासकर वह जो शुरू में हो।
इस प्रवृत्ति के कई उदाहरण हैं। जैसे शब्द है पीटना लेकिन उससे संज्ञा बनती है पिटाई, न कि पीटाई। इसी तरह शब्द है मीठा लेकिन उससे संज्ञा बनती है मिठाई, न कि मीठाई। महाराष्ट्र में एक ज़िला है सातारा लेकिन हिंदी में उसे सतारा बोलते हैं। इसी तरह उर्दू का आज़ादी पंजाबी में अज़ादी हो जाता है, लेकिन सिर्फ़ बोलने में, लिखने में नहीं। लिखते हैं ਆਜ਼ਾਦੀ (आज़ादी), बोलते हैं ਅਜ਼ਾਦੀ (अज़ादी)।
हो सकता है, पहले लोग दीवाली लिखते रहे होंगे लेकिन चूँकि एकसाथ तीन दीर्घ स्वर बोलने में परेशानी होती होगी इसलिए आम लोगों के मुँह से उच्चारण दिवाली का ही निकलता होगा। फिर धीरे-धीरे कई लोग लिखने में भी दिवाली का ही प्रयोग करने लगे क्योंकि बोला तो वही जा रहा था।
और इस तरह दीवाली के साथ-साथ दिवाली भी प्रचलित हो गया।
आज की तारीख़ में दीपावली, दीवाली और दिवाली – ये तीनों रूप सही हैं।

One reply on “दीवाली सही है या दिवाली? या दोनों सही हैं, दोनों ग़लत?”
अभी-अभी 08:17 p.m. पर मैंने abp चैनल पर देखा है कि दीवाली की देखादेखी पर “दिवाला” शब्द को “दीवाला” लिखा गया है। निम्न टाइटल इस प्रकार से है: “दिवाली पर सेहत का दीवाला”।