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29. आस्तिक-नास्तिक देखकर स्वस्तिक बन गया स्वास्तिक

क्रॉस जैसा एक चिह्न जिसकी चार रेखाओं के किनारे 90 डिग्री दाएँ या बाएँ मुड़ जाते हैं, उसे क्या कहते हैं – स्वस्तिक या स्वास्तिक? जब इस विषय में फ़ेसबुक पर एक पोल किया गया तो 68% ने कहा, स्वास्तिक जबकि 32% ने स्वस्तिक के पक्ष में वोट किया। आख़िर सही क्या है, जानने के लिए आगे पढ़ें।

सही शब्द है स्वस्तिक। यह शब्द बना है स्वस्ति (सु+अस्ति) से जिसका अर्थ है मंगल, कल्याण। स्वस्ति में ‘क’ (करने वाला) जोड़कर बना है स्वस्तिक जो मंगलकारी चिह्न माना जाता है और जिसका धार्मिक अनुष्ठानों में काफ़ी इस्तेमाल होता है। स्वस्तिक के और भी कई अर्थ हैं जो मैंने इस पोस्ट के आख़िर में दिए हैं। जिन्हें रुचि हो, वे पढ़ सकते हैं।

इतनी बड़ी तादाद में लोग स्वस्तिक को स्वास्तिक क्यों लिखते हैं? पहला कारण तो यह लगता है कि लोग आस्तिक, नास्तिक के मिलते-जुलते उदाहरणों से प्रभावित हो जाते हैं। चूँकि इन दोनों के अंत में भी -स्तिक और शुरू में ‘आ’ की मात्रा है सो स्वस्तिक में भी ‘स्व’ का ‘स्वा’ कर देते हैं। दूसरे, दुनियाभर को दुनियाभर का ज्ञान बाँटने वाला मीडिया भी दोषी है। जब वह ख़ुद ही ग़लत लिखेगा तो बाक़ी लोग ग़लत ही सीखेंगे। नीचे देखें, कैसे हिंदी की बड़ी-बड़ी साइटें स्वस्तिक को स्वास्तिक लिख रही हैं। बीबीसी, जागरण, नवभारत टाइम्स, भास्कर, आजतक – पूरे कुएँ में ही भंग घुली हुई है।

स्वस्तिक का जन्म भारत में माना जाता है और जैन, बौद्ध और हिंदू, सभी इसका इस्तेमाल करते हैं लेकिन यह चिह्न या इससे मिलते-जुलते चिह्न कई और सभ्यताओं में भी मिले हैं। जो सबसे पुराना चिह्न है, वह आज से 12 हज़ार साल पहले उक्रेन का है जिसमें हाथीदाँत पर बनी एक पक्षी की आकृति पर स्वस्तिक जैसे चिह्न बने हुए हैं। बुल्गारिया से भी आठ हज़ार साल पुराने मिट्टी के बर्तनों पर ऐसे चिह्न मिले हैं। भारत में स्वस्तिक चिह्न कोई पाँच-छह हज़ार साल पहले से मिलते हैँ। स्वस्तिक और उससे मिलते-जुलते और चिह्नों के चित्र आप नीचे तस्वीरों में देख सकते हैं। इसके बारे में विस्तार से जानना हो तो विकिपीडिया के इस पेज पर जा सकते हैं जहाँ से मैंने ये तस्वीरें ली हैं।

आज के पोस्ट में ज़्यादा कुछ कहने को है नहीं। जिनको इसके अन्य अर्थों में भी रुचि हो, वे नीचे पढ़ सकते हैं।

हिंदी शब्दसागर में इसके अलग-अलग अर्थों और उपयोग के बारे में यह बताया गया है।

  1. घर जिसमें पश्चिम ओर एक दालान और पूर्व ओर दो दालान हों। विशेष – कहते हैं, ऐसे घर में रहने से गुहस्थ की स्वस्ति अर्थात कल्याण होता है, इसीलिए इसे स्वस्तिक कहते हैं।)
  2. शिरियारी। सुसना नाम का साग।
  3. लहसुन ।
  4. रतालू। रक्तालु।
  5. मूली ।
  6. हठयोग में एक प्रकार का आसन।
  7. एक प्रकार का मंगल द्रव्य। विशेष – विवाह आदि के समय चावल को पीसकर और पानी में मिलाकर यह मंगल द्रव्य तैयार किया जाता है और इसमें देवताओं का निवास माना जाता है ।
  8. प्राचीन काल का एक प्रकर का यंत्र। विशेष – यह यंत्र शरीर में गड़े हुए शल्य आदि को बाहर निकालने के काम में आता था। यह अठारह अंगुल तक लंबा होता था और सिंह, श्रृगाल, मृग आदि के आकार के अनुसार 18 प्रकार का होता था।
  9. वैद्यक में फोड़े आदि पर बाँधा जानेवाला बंधन या पट्टी जिसका आकार तिकोना होता था।
  10. चौराहा। चौमुहानी।
  11. साँप के फन पर की नीली रेखा ।
  12. प्राचीन काल का एक प्रकार का मंगल चिह्न जो शुभ अवसरों पर मांगलिक द्रव्यों से अंकित किया जाता था और जो कई आकार तथा प्रकार का होता था। आजकल इसका मुख्य आकार 卐 यह प्रचलित है । प्रायः किसी मंगल कार्य के समय गणेशपूजन करने से पहले यह चिह्न बनाया जाता है । आजकल लोग इसे भ्रम में गणेश ही कहा करते हैं।
  13. शरीर के विशिष्ट अंगों में होनेवाला उक्त आकार का एक चिह्न। उदाहरण – स्वस्तिक अष्टकोण श्री केरा। हल मुसल पन्नग शर हेरा। -विश्राम (शब्द०)। विशेष – इस प्रकार का चिह्न सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार बहुत शुभ माना जाता है। कहते हैं, रामचंद्र जी के चरण में इस प्रकार का चिह्न था। जैनी लोग जिन देवता के 24 लक्षणों में से इसे भी एक मानते हैं ।
  14. प्राचीन काल की एक प्रकार की बढ़िया नाव जो प्रायः राजाओं की सवारी के काम में आती थी।
  15. एक प्रकार के चारण जो जयजयकार करते हैं (को०)।
  16. कोई भी शुभ या मंगल द्रव्य (को०)।
  17. भुजाओं को वक्ष पर इस प्रकार रखना जिससे एक व्यत्यस्त चिह्व X बन जाय (को०)।
  18. एक विशेष आकार का प्रासाद (को०)।
  19. विषयी। व्यभिचारी (को०)।
  20. एक विशेष प्रकार का पिष्टक, पूआ या रोट (को०)।
  21. चौराहे से बना हुआ त्रिभुजाकार चिह्व (को०)।
  22. देवता के लिये उपकल्पित आसन या पीठ (को०)।
  23. मुकुटमणि जो त्रिकोमात्मक हो। त्रिकोण मुकुटमणि (को०)।
  24. स्कंद का एक अनुचर (को०)।
  25. एक दानव का नाम (को०)।
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