गौतम बुद्ध ने कहा था – दुख है। दुख का कारण है। दुख का कारण इच्छा है। तो क्या इसका मतलब यह है कि जब तक इच्छाएँ रहेंगी, तब तक दुख रहेगा? अगर हाँ तब तो दुख को समाप्त करने का या दुखों से मुक्ति का एक ही मार्ग दिखता है – इच्छाओं का नाश। मगर क्या इच्छाओं के नाश के बाद ज़िंदगी का कोई मक़सद बचता है? आख़िर इच्छाओं की पूर्ति ही तो हमें सुख भी देती है…