आज की चर्चा एक ऐसे शब्द के बारे में है जो साल में केवल एक बार बोला-पढ़ा-सुना जाता है लेकिन जब बोला जाता है तो वह मौक़ा होता है बहुत ख़ास। वह शब्द है प्राचीर। हर साल 15 अगस्त को देश के नाम प्रधानमंत्री के संदेश की ख़बर देते समय टीवी चैनलों, वेबसाइटों या अख़बारों में यह वाक्य बोला या लिखा जाता है। सवाल इस प्राचीर से पहले लगने वाले परसर्ग के बारे में है। यह ‘की’ होगा या ‘के’ होगा? प्राचीर स्त्रीलिंग है या पुल्लिंग?
जब मैंने प्राचीर के लिंग के बारे में हिंदी कविता के फ़ेसबुक पेज पर सवाल पूछा तो जैसी कि मुझे उम्मीद थी, बहुमत (66.6%) ने प्राचीर को स्त्रीलिंग बताया यानी दो-तिहाई लोगों के अनुसार ‘लाल क़िले की प्राचीर’ लिखना सही है। शेष 33.3% यानी एक-तिहाई ने उसे पुल्लिंग बताया यानी उनके अनुसार सही है ‘लाल क़िले के प्राचीर’ लिखना।
सही क्या है, यह मैं बात में बताऊँगा। पहले मैं एक ‘रोचक जानकारी’ देना चाहता हूँ। जानकारी यह कि 15 अगस्त 2022 के भाषण में प्राचीर शब्द प्रधानमंत्री के भाषण में तीन बार आया। आप पूछेंगे, इसमें रोचक क्या है। तो रोचक यह कि उन्होंने दो बार प्राचीर के साथ ‘की’ लगाया और एक बार ‘के’ लगाया। लगता है कि जिस तरह वे चुनावों में वोटरों की भावना का ख़्याल रखते हैं, उसी तरह यहाँ भी उन्होंने हिंदी कविता के वोटरों की भावना का ध्यान रखते हुए दो बार प्राचीर को स्त्रीलिंग के रूप में बोला और एक बार पुल्लिंग के रूप में। वही दो-तिहाई और एक-तिहाई का अनुपात।
सही है पुल्लिंग। यानी होगा – लाल क़िले ‘के’ प्राचीर। हिंदी के सारे शब्दकोश यही बताते हैं (देखें चित्र)।
ऊपर के चित्र में आपने प्राचीर के लिंग के साथ-साथ उसका अर्थ भी देखा होगा। जी हाँ, प्राचीर का अर्थ है – नगर या क़िले आदि के चारों ओर उसकी रक्षा के उद्देश्य से बनाई हुई दीवार यानी चहारदीवारी।
चहारदीवारी से याद आया। इसे चारदीवारी के बजाय चहारदीवारी क्यों कहते हैं, इसपर हम पहले चर्चा कर चुके हैं। यदि आपने वह न पढ़ी हो और जानने में रुचि हो तो नीचे दिए गए लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं।