Categories
आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

223. शोले = S H O L A Y लिप्यंतरण है या लिप्यांतरण?

गूगल पर अगर आपको ‘शोले’ फ़िल्म सर्च करनी हो तो आप क्या लिखेंगे? शोले या Sholay? इसी तरह ‘तू जाने ना’ वाला गाना खोजना हो तो क्या लिखेंगे – तू जाने ना या Tu jaane na? हममें से अधिकतर लोग इस मामले में अंग्रेज़ी की रोमन लिपि का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि यह आसान है या फिर इसलिए कि बहुतों को हिंदी टाइपिंग नहीं आती। इस तरह किसी शब्द को किसी एक लिपि से दूसरी लिपि में लिखने की क्रिया को अंग्रेज़ी में Transliteration कहते हैं। लेकिन हिंदी में इसे क्या कहते हैं – लिप्यंतर, लिप्यांतर, लिप्यंतरण या लिप्यांतरण? आज की चर्चा इसी विषय पर है। रुचि हो तो पढ़ें।

लिप्यंतर, लिप्यंतरण, लिप्यांतर या लिप्यांतरण? जब मैंने फ़ेसबुक पर पूछा कि इनमें सही कौनसा है तो सबसे अधिक वोट लिप्यांतरण के पक्ष में पड़े – 53%। लिप्यांतर को 14% ने सही बताया। यानी लिप्या*** वाले रूप पर कुल मिलाकर 67% वोट पड़े। दो-तिहाई। शेष एक-तिहाई वोट लिप्य*** वाले रूपों पर पड़े।

लिप्या*** वाले ये दोनों रूप ग़लत हैं। क्यों, यह हम नीचे समझते हैं।

पहले हम जानते हैं कि यह शब्द किन दो शब्दों के मेल से बना है। यह बना है ‘लिपि’ और ‘अंतर’ के मेल से। लिपि का मतलब आप जानते ही हैं, अंतर यानी बदलाव। लिपि में बदलाव।

अब लिपि+अंतर/अंतरण के मिलने से क्या बनेगा, यह जानने के लिए हमें व्याकरण की मदद लेनी होगी। व्याकरण में भी संधि के नियमों की जो बताते हैं कि जब स्वर, व्यंजन आदि आपस में मिलते हैं तो संधिस्थल में क्या परिवर्तन होता है।

यहाँ लिपि का ‘पि’ अंतर/अंतरण के ‘अ’ से मिलता दिख रहा है। लेकिन असल मेल ‘पि’ में लगी ‘इ’ मात्रा और अंतर/अंतरण के आरंभ में मौजूद ‘अ’ के बीच हो रहा है। यानी यहाँ स्वर ही स्वर से मिल रहा है। दूसरे शब्दों में स्वर संधि हो रही है।

ऐसे में क्या परिवर्तन होता है, यह हमें यण संधि का नियम बताता है जिसके अनुसार ‘इ’ या ‘ई’ के बाद कोई अन्य स्वर आए तो ‘इ’ की मात्रा ‘य्’ में बदल जाती है। जैसे अति+अंत=अत्यंत, इति+आदि=इत्यादि, अति+उत्तम=अत्युत्तम, प्रति+एक=प्रत्येक।

आपने देखा कि ऊपर के उदाहरणों में ‘इ’ की मात्रा हर जगह ‘य्’ में बदल रही है और यह ‘य्’ अगले स्वर से मिलकर एकाकार जाता है। यदि अगला स्वर ‘अ’ है तो य्+अ=य बनता है (अत्यंत), यदि अगला स्वर ‘आ’ है तो य्+आ=या बनता है (इत्यादि), यदि अगला स्वर ‘उ’ है तो य्+उ=यु बनता है (अत्युत्तम) और यदि अगला स्वर ‘ए’ है तो य्+ए=ये बनता है (प्रत्येक)।

अब आप देखिए कि लिपि के बाद क्या आ रहा है? ‘अ’ आ रहा है या ‘आ’?

लिपि के बाद अंतर/अंतरण हैं जिसके शुरू में ‘अ’ है, ‘आ’ नहीं। सो संधि इस प्रकार होगी।

  • लिपि+न्तर/अन्तरण
  • लिप्++न्तर/अंतरण
  • लिप्+य्+न्तर/अन्तरण
  • लिप्यन्तर/लिप्यन्तरण।

लिप्यांतर या लिप्यांतरण तब होता जब लिपि के बाद आंतर या आंतरण होता। तब लिप्यांतर और लिप्यांतरण शब्द बनते।

जो शब्द ग़लत हैं, उनका फ़ैसला तो हो गया। KBC की भाषा में कहें तो अब 50:50 का स्टेज आ गया।

अब केवल दो शब्द बचे हैं और हमें यह फ़ैसला करना है कि लिप्यंतर और लिप्यंतरण में कौनसा सही होगा। लिप्यंतरण के बारे में कोई भ्रम नहीं, शब्दकोशों में भी यही शब्द दिया गया है (देखें चित्र)।

लेकिन लिप्यंतर ग़लत है, यह कैसे कहें क्योंकि लिप्यंतर से मिलते-जुलते कई शब्द हिंदी में बख़ूबी चलते हैं जैसे रूपांतर, भाषांतर आदि।

मसलन कोई कहे कि तुमने तो पूरे घर का रूपांतर (Transformation) कर दिया तो यह वाक्य अशुद्ध नहीं लगता। इसी तरह अनुवाद के लिए भाषांतर (Translation) भी चलता है –  इस ग्रंथ के कई भाषांतर हुए हैं। ऐसे में Transliteration के लिए लिप्यंतर कैसे ग़लत हो सकता है? इसका कोई सीधा जवाब नहीं है मेरे पास।

लेकिन कुछ शब्दों की सूची है जिसमें आम तौर पर ऐसे शब्दों के अंत में ‘न’ लगता है जो कभी-कभी ‘ण’ में बदल जाता है (अगर शब्द में ‘र’ हो)। नीचे सूची देखें।

  • पढ़ने का काम=पठ
  • पढ़ाने का काम=पाठ
  • लिखने का काम=लेख
  • छापने का काम=मुद्र
  • घूमने-फिरने का काम=भ्रम
  • जलने का काम=दह
  • सुधारने का काम=संशोध
  • उतरने का काम=अवतर
  • बाँटने का काम=विभाज

इस आधार पर देखें तो लिपि बदलने का काम=लिप्यंतरन ही होगा जिसका ‘न’ ‘ण’ में बदल जाएगा क्योंकि शब्द में ‘र’ है। सो बनेगा लिप्यंतरण, न कि लिप्यंतर।

इसके पीछे संस्कृत का कौनसा नियम काम कर रहा है, यह जानने की कोशिश अभी तक नहीं की है। न ही जानने की ख़ास ज़रूरत है। फ़िलहाल के लिए यही निष्कर्ष काफ़ी है कि लिप्यंतरण ही सबसे सही शब्द है।

जाते-जाते एक और बात। फ़ेसबुक पर आधे से अधिक लोगों ने लिप्यांतरण के पक्ष में वोट क्यों किया। मेरे विचार से इसका कारण यह है कि अंतर/अंतरण वाले अधिकतर शब्द ‘आ’ वाले हैं। स्थानांतरण, रूपांतरण, हस्तांतरण… इसलिए लोगों ने सोचा, लिप्यांतरण। शायद उन्होंने ध्यान नहीं दिया कि ‘स्थान’, ‘रूप’ और ‘हस्त’ के अंत में ‘अ’ स्वर है (दीर्घ संधि में अ+अ=आ होता है) जबकि लिप्यंतरण के मामले में लिपि के अंत में ‘इ’ की मात्रा है और इ+अ=य होता है।

ऐसा ही भ्रम अनधिकृत और अनाधिकृत में भी होता है। दोनों में कौनसा सही है और क्यों सही है, इसपर चर्चा कर चुके हैं। जानने में रुचि हो तो पढ़ें – 

पसंद आया हो तो हमें फ़ॉलो और शेयर करें

अपनी टिप्पणी लिखें

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Social media & sharing icons powered by UltimatelySocial