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एकला चलो

कुछ बलात्कारी दूल्हे के लिबास में आते हैं

शादी का झूठा वादा करके जो पुरुष किसी स्त्री से संबंध बनाता है, उसकी मानसिकता और एक बलात्कारी की मानसिकता में कोई अंतर नहीं है। दोनों में ही स्त्त्री के शरीर से खेलने की मंशा होती है। फ़र्क़ बस इतना है कि एक में शारीरिक बल का इस्तेमाल करते हुए किसी के शरीर से खेला जाता है, तो दूसरे में शादी के मीठे वादे की सेज सजाकर वही काम किया जाता है। इसी कारण एक में लड़की पूरी ताक़त से विरोध करती है, दूसरे में ख़ुशी-ख़ुशी सहयोग करती है। लेकिन दोनों में समानता यही है कि अगर ताक़त का ज़ोर नहीं होता तो बलात्कार नहीं होता और शादी का भरोसा न होता तो सहवास भी नहीं होता।

मेरे एक पूर्व सहकर्मी का मानना है कि अगर कोई लड़का किसी लड़की से शादी का वादा करके उसे बिस्तर पर ले जाता है और फिर शादी नहीं करता तो उसे रेप नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि वह रिश्ता सहमति का था, ज़बरदस्ती का नहीं। उसका मत है कि यह तो बस चीटिंग का मामला है और चीटिंग की जो सज़ा हो, वही उसे मिलनी चाहिए।

पढ़कर मुझे अपने सालों पुराना एक क़िस्सा याद आ गया। एक युवक को किसी बड़ी कंपनी में नौकरी मिली थी। नौकरी मिलने के कुछ दिनों के बाद ही उसकी शादी तय हो गई। लेकिन किन्हीं कारणों से शादी से पहले ही उसकी नौकरी चली गई। यह सूचना उसने न अपने घरवालों को दी, न ही लड़की वालों को। ठीक सुहागरात के अवसर पर उसने लड़की को बताया कि मेरी नौकरी चली गई है और आज की तारीख़ में मैं बेरोज़गार हूं। अब तुम चाहो तो साथ रहो, चाहो तो छोड़ दो।

अब इसे आप क्या कहेंगे? चीटिंग?  जिसे हिंदी में धोखा कहते हैं? शायद… लेकिन मेरी नज़र में यह उतना ही बड़ा क्राइम है जितना बलात्कार। क्यों – यह हम नीचे देखते हैं।

चीटिंग दो तरह की होती है – एक, जिसमें पीड़ित पक्ष के साथ इंसाफ़ संभव है। वह लड़-झगड़कर अपना हक़ या बदले में मुआवज़ा पा सकता है। जैसे कोई चेक बाउंस हो गया या बिल्डर से मिले फ़्लैट में दरारें आ गईं। दोनों ही केस में क़ानून आपको आपका पैसा या मरम्मत की व्यवस्था करवा सकता है। पैसा मिल गया और दरारें ठीक हो गईं तो मामला ख़त्म।

लेकिन चीटिंग के दूसरे केस ऐसे होते हैं जिनमें मुआवज़ा संभव ही नहीं है। जिसमें आपने जो खोया है, वह वापस मिल ही नहीं सकता। जैसे ऊपर का जो केस मैंने बताया। अब लड़की के पास क्या चारा था? अगर वह शादी तोड़ देती तो भी क्या वह अपना पुराना स्टेटस हासिल कर सकती थी? शादी में जो पैसे गए, सो तो गए ही लेकिन उसका जो अनब्याहा स्टेटस था, जो सात फेरे लेते ही चला गया, क्या वह उसे वापस मिल सकता है कभी? नहीं मिल सकता। अगर उसने अपने पति से शादी तोड़ भी ली होती तो उसपर तलाक़शुदा का ठप्पा तो लग ही जाता। और तलाक़शुदा के लिए दुबारा शादी करना इस देश में और इस समाज में कितना मुश्किल है, यह हम सब जानते हैं। उसे सेल का माल समझा जाता है – कोई कुँआरा लड़का उससे शादी करने को तैयार नहीं होगा। मिलेगा तो कोई तलाक़शुदा, अधेड़ या फिर बाल-बच्चों वाला कोई विधुर।

निष्कर्ष यह कि इस चीटिंग ने उसे एक ऐसे  मोड़ पर ला दिया कि वह पिछली ज़िंदगी में जा नहीं सकती और आगे एक मटमैला और अनिश्चित भविष्य है।

अब मैं अपने पूर्व सहकर्मी द्वारा उठाए गए मामले पर आता हूँ। देखें कि उसमें क्या होता है। एक लड़का किसी लड़की से दोस्ती करता है। धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती प्यार में बदलती है। फिर वह उसे आभास या भरोसा दिलाता है कि हम जल्दी ही शादी कर लेंगे। लड़की उसमें अपने भावी पति का रूप देखती है और धीरे-धीरे दोनों के बीच रिश्ते उस लेवल तक पहुँच जाते हैं जो आम तौर पर पति-पत्नी में होते हैं। बाद में लड़के का मन बदलता है, या हो सकता है कि वह सिर्फ मज़े के लिए यह रिश्ता बनाए हुए हो और पहले से ही शादी न करने का तय कर चुका होता है – जो भी केस हो – वह लड़की से किनारा करने लगता है। ऐसे में क्या वह लड़का दोषी है? अगर हाँ तो किस हद तक? मेरे उस सहकर्मी की दलील है कि लड़का भले ही शादी के वादे से हट गया हो मगर जो रिश्ता बना, वह दोनों की सहमति से बना, इसलिए यह मामला अधिक से अधिक चीटिंग का है, न कि रेप का।

हम भी मानते हैं कि यह मामला चीटिंग का है, लेकिन किस कैटिगरी की चीटिंग है यह? पहले तरह की जिसमें भरपाई हो सकती है, या दूसरे तरह की जिसमें खोया हुआ स्टेटस मिल ही नहीं सकता? उसी के आधार पर गुनाह की गंभीरता और सज़ा की मात्रा तय होनी चाहिए।

साथी का तर्क है कि शारीरिक संबंध बनाने में दोनों की सहमति थी। माना कि सहमति थी लेकिन यह सहमति किस तरह ली गई थी? अगर लड़के ने शादी का भरोसा नहीं दिया होता तो क्या लड़की इसके लिए तैयार होती? 

इसका कोई एक जवाब नहीं हो सकता। यह सही है कि स्कूली छात्र-छात्राओं और युवा पीढ़ी में शादी से पहले सेक्स करने करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। आउटलुक के एक सर्वे में तो यह आँकड़ा 33% का बताया जा रहा है। लेकिन क्या सभी केवल आनंद के लिए शादी से पहले सेक्स कर रही हैं? क्या इनमें से कोई भी ऐसा नहीं है जो अपना शरीर किसी और के लिए केवल इसलिए अनावृत्त कर रहा है कि उसे भरोसा है कि वह उससे विवाह करेगा? दूर क्यों जाते हैं? TOI का यह सवाल ही देख लीजिए जिसमें एक युवक अपनी मंगेतर से शादी से पहले संबंध बनाने के लिए दबाव डाल रहा है और लड़की मनोविश्लेषक से राय माँग रही है

इस तरह की कई लड़कियाँ होंगी लेकिन उनके सामने कोई ज़रिया नहीं होगा जहाँ से उन्हें सलाह मिल सके और वे अपने भावी या संभावित पति के दबाव में आ जाती होंगी। हम ऐसी ही लड़कियों की चर्चा कर रहे हैं।

ऐसी लड़कियाँ यह रिस्क ले ही नहीं सकतीं कि वे किसी एक लड़के के साथ घूमें और सोएँ और भविष्य में किसी दूसरे की दुल्हन बनने का सपना संजोएँ। कारण, यहाँ हर लड़का यही चाहता है कि वह ख़ुद चाहे शादी से पहले 10 लड़कियों के साथ सोया हो, दुल्हन उसे ऐसी चाहिए जिसे आज तक किसी ने छुआ तक न हो

इसीलिए ऐसी लड़कियाँ अपना कौमार्य अपने भावी पति के लिए बचाए रखती हैं। जब कोई लड़का यह वादा करता है या भरोसा दिलाता है कि वह उससे शादी कर लेगा तो वे उसे अपना शरीर दे देती हैं। अब अगर लड़का उसे चीट करता है और शादी नहीं करता तो  वे अपना कौमार्य कभी वापस नहीं पा सकतीं। उस लड़के के साथ घूमने-फिरने और सोने के कारण समाज में उसके बारे में जो राय बनी, वे उसे कभी नहीं बदल सकतीं। दूसरे शब्दों में यह भी उसी कैटिगरी की चीटिंग है जिसमें पीड़ित पक्ष अपना खोया हुआ स्टेटस वापस नहीं पा सकता। यह भी उसी कैटिगरी की चीटिंग है जिसमें विक्टिम के पास पीछे लौटने का रास्ता नहीं होता और सामने एक मटमैला और अनिश्चित भविष्य होता है।

शादी का झूठा वादा करके जो पुरुष किसी स्त्री से संबंध बनाता है, उसकी मानसिकता और एक बलात्कारी की मानसिकता में कोई अंतर नहीं है। दोनों में ही स्त्त्री के शरीर से खेलने की मंशा होती है। फ़र्क बस इतना है कि एक में शारीरिक बल का इस्तेमाल करते हुए किसी के शरीर से खेला जाता है, तो दूसरे में शादी के मीठे वादे का जामा पहनाकर वही काम किया जाता है। इसी कारण एक में लड़की पूरी ताक़त से विरोध करती है, दूसरे में ख़ुशी-ख़ुशी सहयोग करती है। लेकिन दोनों में समानता यही है कि अगर ताक़त का ज़ोर नहीं होता तो बलात्कार नहीं होता और शादी का भरोसा न होता तो सहवास भी नहीं होता।

जो लोग इन मामलों में लड़की की सहमति के आधार पर लड़के के अपराध को कम करके आँकते हैं, उनके लिए मैं एक मिलता-जुलता उदाहरण देता हूँ। मान लीजिए, एक धर्मगुरु अपने किसी भक्त से कहता है – तुम अगर मेरा ध्यान करते हुए इस बहती नदी में छलाँग लगा लोगे तो स्वर्ग में चले जाओगे। वह भक्त उसके झाँसे में आकर नदी में छलाँग लगाता है और मर जाता है।

अब इसे आप आत्महत्या कहेंगे या हत्या? देखने में तो यह बस चीटिंग का मामला है क्योंकि भक्त ने अपनी इच्छा से ख़ुद ही नदी में छलाँग लगाई थी, इसे धर्मगुरु या उसके किसी चेले ने धक्का नहीं दिया था। इसलिए धर्मगुरु पर हत्या या आत्महत्या पर उकसाने का मुक़दमा चलना ही नहीं चाहिए। लेकिन मेरे हिसाब से यह साफ़-साफ़ हत्या है क्योंकि अगर गुरु ने उसे झूठा भरोसा न दिलाया होता तो भक्त ने नदी में छलाँग लगाई ही नहीं होती।

हाँ, अगर भक्त के साथ-साथ धर्मगुरु ने भी नदी में छलाँग लगाई होती और वह भी मर गया होता तो बात अलग होती। तब यह कहा जाता कि धर्मगुरु के मन में कोई छल नहीं था। एक अंधविश्वास था जिसके चलते धर्मगुरु और उसके भक्त की जान गई।

यानी बात इरादे की है। आपका इरादा निश्छल है या छलपूर्ण है? यदि छलपूर्ण है तो आपका अपराध बनता है, यदि छलपूर्ण नहीं है तो अपराध नहीं बनता।

यही कारण है कि एक तरफ़ शादी का झाँसा देकर शारीरिक संबंध बनाने वाले कुछ पुरुषों को रेप के अपराध में सज़ा हुई है तो दूसरी तरफ़ कुछ अदालतों ने पुरुषों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है यह कहते हुए कि शारीरिक संबंध बनाते समय उनका इरादा शादी करने का था। इसके साथ-साथ एक समस्या इस कारण भी आ रही है कि भारतीय दंड संहिता (IPC) के सेक्शन 375 में रेप को परिभाषित करते हुए जो छह आधार दिए गए हैं, उनमें शादी का झूठा वादा करना शामिल नहीं है।

अगली कड़ी में हम सेक्शन 375 के बारे में चर्चा करते हुए जानेंगे कि जब इस सेक्शन में ऐसा कुछ भी नहीं लिखा है कि शादी के वादे से मुकरने वाले को रेप का दोषी माना जाए तो आख़िर किस आधार पर अदालतों ने शादी का झूठा वादा करके शारीरिक संबंध बनाने वालों को बलात्कार का दोषी माना है। और यह भी समझेंगे कि क्यों कुछ अन्य मामलों में कोर्ट ने ऐसे शारीरिक संबंधों को बलात्कार नहीं माना है, भले ही पुरुष ने बाद में उस स्त्री से शादी न की हो।

(पढ़ें अगली कड़ीपलटना वादे से अपने कब है धोखा, कब धोखा नहीं है?)

यह लेख 15 फ़रवरी 2010 को नवभारत टाइम्स के एकला चलो ब्लॉग सेक्शन में प्रकाशित हुआ था। यह उसका विस्तारित और संशोधित रूप है।

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One reply on “कुछ बलात्कारी दूल्हे के लिबास में आते हैं”

This article is based on social, personal,&, psychological problems in which a particular sex is victimized, considering her innocent, this scenario is also found in society where a male is being emotionally utilised, but according to my little knowledge,sex is a basic instinct of any living organisms, Freud the psychologist sex is attached every behaviour & activity of human being later on he was proved partial correct, I think any particular case should not be used as perfect example because the condition is vice-versa my purpose or I am not capable to make any comment on this article,if my opinion will be considered as a cricitise or appreciation of this article, then I withdraw my view

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