Categories
आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

91. किताब का पहला पन्ना मुख्यपृष्ठ या मुखपृष्ठ?

किसी किताब के पहले पन्ने या आवरण को क्या कहते हैं – मुखपृष्ठ या मुख्यपृष्ठ? पहली नज़र में मुख्यपृष्ठ ही सही लगता है क्योंकि आवरण किसी भी किताब का मुख्य पन्ना होता है। लेकिन सही है मुखपृष्ठ। क्यों, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।

जब इस विषय में फ़ेसबुक पर एक पोल किया गया तो क़रीब 90% ने मुखपृष्ठ को सही बताया। निश्चित रूप से उन्होंने ज़िंदगी भर यही पढ़ा और सुना होगा, तभी बिना हिचक के मुखपृष्ठ का विकल्प चुन लिया।

उधर जिन 10% साथियों ने मुख्यपृष्ठ के पक्ष में वोट डाला, उनकी सोच यह रही होगी कि पहला पन्ना या आवरण किसी भी किताब का मुख्य पन्ना होता है, इसलिए सही शब्द मुख्यपृष्ठ ही होना चाहिए। अगर मैं कहूँ कि मुखपृष्ठ सही है तो भी उनके मन में यह सवाल बना रहेगा कि मुख्यपृष्ठ क्यों ग़लत है। क्या किसी भी पुस्तक का आवरण उसका मुख्य पन्ना नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं कि मूल शब्द मुख्यपृष्ठ ही रहा हो और आगे चलकर मुख्य से ‘य’ हट गया हो और मुखपृष्ठ रह गया हो?

इस संभावना पर विचार करने से पहले हमें जानना होगा कि ‘मुख’ का मतलब क्या है। मुख के दो मतलब तो हम जानते ही हैं – मुँह और चेहरा। लेकिन मुख का एक और अर्थ है – प्रधान, मुख्य (देखें चित्र)। यानी हम जब मुखपृष्ठ कहते हैं तो उसका मतलब मुख्यपृष्ठ भी है।

मुझे नहीं मालूम कि जब मुखपृष्ठ शब्द गढ़ा गया होगा तो उसके पीछे क्या विचार रहा होगा। किताब का आवरण चूँकि उसका ‘चेहरा’ है, इसीलिए उसे मुखपृष्ठ कहा गया या वह किताब का ‘मुख्य’ पन्ना है, इसलिए उसे मुखपृष्ठ कहा गया? परंतु जैसा कि मैंने ऊपर बताया, मुख का अर्थ ‘चेहरा’ और ‘मुख्य’ दोनों है, इसलिए चाहे जिस किसी अर्थ में पृष्ठ के पहले ‘मुख’ का इस्तेमाल किया गया हो, शब्द मुखपृष्ठ ही बनेगा।

जहाँ तक मुख्य की बात है तो वह भी मुख से ही बना है।

आज कहने-लिखने को बहुत-कुछ नहीं है लेकिन मैं मुख के संदर्भ में तुलसीदास रचित वे पंक्तियाँ उद्धृत करने से ख़ुद को नहीं रोक पा रहा हूँ जो वे अयोध्याकांड में राम के मुँह से बुलवाते हैं। प्रसंग तब का है जब भरत वनवासी राम को 14 साल की अवधि से पहले अयोध्या लौटने पर राज़ी नहीं कर पाते और विदा लेते हुए उनसे कहते हैं कि मुझे कुछ शिक्षा दीजिए ताकि मैं आपकी अनुपस्थिति में अपना दायित्व निभा सकूँ। इसपर राम कहते हैं –

मुखिआ मुख सो चाहिए, खानपान कहुँ एक।

पालइ-पोषइ सकल अंग, तुलसी सहित बिबेक॥

दो पंक्तियों में तुलसीदास ने कितनी बड़ी बात कह दी है! मुखिया को मुँह जैसा होना चाहिए जो खाता तो अकेला है, लेकिन उसका खाया-पिया सभी अंगों तक बराबर पहुँचता है। अब कितने मुखिया इस आदर्श का पालन करते हैं, यह तो हम-आप देख ही रहे हैं।

तुलसीदास से याद आया, शब्दपहेली  6 में मैंने इस बात की चर्चा की है कि राम द्वारा शबरी के जूठे बेर खाने का ज़िक्र न रामचरितमानस में है, न ही वाल्मीकि रामायण में। वह है ओड़िया रामायण में लेकिन वहाँ जूठे बेरों की नहीं, जूठे आमों की कथा है। जूठे आम जूठे बेर कैसे बने, यह जानने में रुचि हो तो वह क्लास पढ़ें।

https://aalimsirkiclass.com/6-shabd-paheli-hindi-word-quiz-shabari-and-the-tasted-berries-story/
पसंद आया हो तो हमें फ़ॉलो और शेयर करें

अपनी टिप्पणी लिखें

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Social media & sharing icons powered by UltimatelySocial