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226. ‘मँजा’ हुआ कलाकार या ‘मँझा’ हुआ कलाकार?

कोई कलाकार जिसके हुनर में समय के साथ काफ़ी बेहतरी आई हो, उसे आप क्या कहेंगे – मँजा हुआ कलाकार या मँझा हुआ कलाकार? वैसे आप चाहे जिसे सही मानते हों, आपकी जानकारी सही है या ग़लत, यह तो आप ज़रूर जानना चाहेंगे। और इसका जवाब इस बार मैं नहीं दूँगा, आप ख़ुद पता करेंगे कि सही शब्द क्या है, बिना शब्दकोश देखे, बिना मुझसे पूछे। कैसे, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।

मँजा हुआ या मँझा हुआ? जब इसपर फ़ेसबुक पोल किया गया तो 62% ने मँझा हुआ के पक्ष में मतदान किया। शेष 38% ने मँजा हुआ के पक्ष में अपनी राय दी। इन दोनों में सही कौन है, इसका जवाब आप स्वयं दे सकते हैं यदि आप शब्द और उसके अर्थ पर जाएँ।

पहले मँझा शब्द लेते हैं जिसके पक्ष में आधे से भी ज़्यादा लोग हैं। हमें पता लगाना होगा कि मँझा का किसी के कौशल में सुधार से क्या संबंध हो सकता है। इसके लिए आप मँझा से मिलते-जुलते शब्द याद कीजिए। एक है माँझा जो पतंग में लगने वाली डोर को कहते हैं। दूसरा शब्द याद आता है मँझधार जहाँ मँझ का मतलब है बीच और मँझधार का मतलब हुआ धारा के बीच। एक और शब्द है मँझला – यहाँ भी बीच का ही अर्थ है। अब आख़िर पतंग की डोर या बीच का किसी के कौशल में सुधार से क्या संबंध हो सकता है?

अब मँजा पर आते हैं। मँजा से मिलते-जुलते शब्द खोजिए। मँजना, माँजना…। ये दोनों एक ही धातु से निकले हुए शब्द हैं। एक सकर्मक है, दूसरा अकर्मक। मँजना का अर्थ है साफ़ होना, माँजना का मतलब साफ़ करना। सफ़ाई का अर्थ दोनों में साझा है।

अब सोचिए कि सफ़ाई होने से किसी चीज़ में क्या परिवर्तन आता है? उसपर से धूल हटती है। वह निखरता है, चमकता है। अब इस मँजना को किसी कलाकार के हुनर में हुई बेहतरी से जोड़िए। क्या कोई मेल दिखता है? बिल्कुल दिखता है। जिस तरह कोई बर्तन या मूर्ति मँजने के बाद चमक उठती है, निखर उठती है, वैसे ही कलाकार भी समय के साथ लगातार अभ्यास करते हुए अपनी प्रतिभा में निखार लाता है। इसीलिए कहा जाता है – मँजा हुआ कलाकार।

अब हम शब्दकोशों में जाँचते है कि ऊपर की चर्चा से हमने जो निष्कर्ष हमने निकाला, क्या वह सही है। बिल्कुल सही है। तमाम प्रामाणिक शब्दकोशों में भी यही लिखा हुआ है (देखें चित्र)।

हिंदी शब्दसागर में मँझना के अर्थ।
राजपाल के कोश में मँजना के अर्थ।

अब प्रश्न का दूसरा हिस्सा। जब सही शब्द है ‘मँजा हुआ’ तो लोगों द्वारा ‘मँझा हुआ’ क्यों बोला जाता है। इतना अधिक बोला जाता है कि फ़ेसबुक के पोल में 60% से अधिक लोगों ने उसके पक्ष में वोट किया! यही नहीं, इस उच्चारण का इतना बोलबाला है कि इंटरनेट पर उग आए कुकुरमुत्ता शब्दकोशों में भी इसे स्थान मिल गया है (देखें चित्र)।

इंटरनेट पर उग आए शब्दकोश जो भ्रम बढ़ाने का काम करते हैं।

‘मँजा हुआ’ बोलचाल में ‘मँझा हुआ’ क्यों हुआ, इसका मेरे पास कोई ठोस जवाब नहीं है। बस एक अनुमान हैं जो मैं आपके साथ शेयर कर रहा हूँ।

इस अनुमान में मेरे भाषामित्र और व्याकरण के जानकार योगेंद्रनाथ मिश्र का भी सहयोग है। भाषाविज्ञान के सिद्धांतों के हवाले से वह बताते हैं कि हमारी वर्णमाला में जो ध्वनियाँ हैं, वे हर शब्द में एकरूप नहीं रहतीं। वर्णमाला में किसी वर्ण की कोई मानक ध्वनि हो सकती है जैसे क, प, त आदि लेकिन शब्दों के उच्चारण के समय उन ध्वनियों में अंतर आ जाता है भले ही हमें उसका पता नहीं चलता। इस सिलसिले में वह डाकघर का उदाहरण देते हैं। उनके अनुसार डाकघर में भले ही ‘डा’ के बाद ‘क’ हो लेकिन जब हम बोलते हैं तो वह ध्वनि ‘क’ जैसी नहीं, ‘ग’ जैसी हो जाती है। यह परिवर्तन ‘घ’ के कारण होता है जो डाक के बाद है। डाकघर>डागघर।

यानी लिखा जाता है डाकघर, बोला जाता है डागघर।

ऐसे परिवर्तन और शब्दों में भी आते हैं और मैं इसपर पहले भी बात कर चुका हूँ कि कैसे ‘ह’ के कारण उसके पूर्व के अकार स्वर एकार हो जाते हैं (महबूब का मेहबूब) या ‘न’, ‘म’ के चलते उनसे पहले या बाद की ध्वनि अनुनासिक हो जाती है (दुनिया का दुनियाँ, आम का आँम)।

इसी तरह ‘मँजा’ के बाद आने वाले ‘हुआ’ के कारण संभवतः मँजा का उच्चारण मँझा हो जाता है – यह मेरा अनुमान है। आप बोलेंगे मँजा हुआ, उच्चारण हो जाएगा मँझा उहा। ‘ज’ और ‘ह’ मिलकर ‘झ’ बन जाते हैं (जैसे जेहलम का झेलम हुआ होगा)। तेज़ी से बोलने के कारण हमें पता नहीं चलता कि इस चक्कर में हम ‘हुआ’ को ‘उआ’ बोल रहे हैं।

दहा के गधा बनने में भी हम यह प्रवृत्ति देख सकते हैं – गदहा=ग+(द+हा)=गधा। इसी तरह सुबहानअल्ला बन जाता है सुभानअल्ला। तब+ही और अब+ही भी इसी तरह तभी और अभी बन गए। इस प्रक्रिया को महाप्राणीकरण कहा जाता है क्योंकि इसमें द और ब जैसी अल्पप्राण ध्वनि ध और भ की महाप्राण ध्वनि में बदल जाती है।

अल्पप्राण और महाप्राण ध्वनियों के बारे में विस्तार से जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक/टैप करें।

गधा और सुभानअल्ला जैसे उदाहरणों और मँझा हुआ में फ़र्क़ बस यह है कि गधा और सुभानअल्ला आज मान्य हो गए हैं और शब्दकोशों में उनको जगह मिल गई है लेकिन ‘मँझा हुआ’ अभी लिखित तौर पर मान्य नहीं हुआ है। आज भी अच्छे शब्दकोशों में आप ‘मँजा हुआ; ही पाएँगे।

इसीलिए बोलने पर चाहे जो ध्वनि निकले, लिखना चाहिए मँजा हुआ।

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