2021 जाने वाला है और 2022 आने वाला है। इस साल को हम क्या बोलेंगे या लिखेंगे – दो हज़ार बाइस या दो हज़ार बाईस? इन शॉर्ट 22 के लिए जो शब्द है, उसमें इ है या ई? जब मैंने यह सवाल फ़ेसबुक पर पूछा तो दो तरह के परिणाम आए। एक पोल में 65% ने ‘बाईस’ के पक्ष में वोट किया जबकि ‘बाइस’ के समर्थक 35% के आसपास रहे। दूसरे पोल में ‘बाईस’ के समर्थक और ज़्यादा थे (83%) थे और ‘बाइस’ के और कम (केवल 17%)। सही क्या है, अगर आप भी जानता हैं तो आगे पढ़ें।
सही है बाईस। यानी 2022 को बोलेंगे दो हज़ार बाईस। हिंदी के सारे प्रामाणिक शब्दकोश इसी को सही बताते हैं (देखें चित्र)। लेकिन इससे तो हमारा काम पूरा नहीं होता। यह भी जानना ज़रूरी है कि शब्दकोश बाईस को क्यों सही बताते हैं।
इसके लिए आपको एक छोटा-सा काम करना होगा। एक बार ज़रा 19 से लेकर 28 तक की गिनती मन-ही-मन बोलें – हिंदी वाली गिनती, एक-दो, तीन, चार वाली। उन्नीस से अट्ठाईस तक गिनें। आप पाएँगे कि केवल तीन संख्याओं – 20, 24 और 26 – में बीस है, बाक़ी में बीस नहीं है हालाँकि उनका अर्थ बीस से ही है। मसलन 20+1=21। इसे एकबीस बोला जाना चाहिए था (अंग्रेज़ी का Twenty-one याद करें) लेकिन बोला जाता है इक्कीस। यानी बीस का ‘ब’ घिस गया और उसकी जगह रह गया ‘ईस’।
संस्कृत में 21 के लिए एकविंशतिः है। प्राकृत में इसका रूप बदलकर हुआ एक्कवीस जो अपभ्रंश में हुआ इक्कवीस। इसी इक्कवीस का ‘व’ घिस गया और बचा रहा इक्कीस।
‘व’ के घिसने की जो प्रक्रिया हमें 21 (इक्कीस) में दिखती है, वह 19 (उन्नीस), 22 (बाईस), 23 (तेईस), 25 (पचीस-पच्+ईस), 27 (सत्ताईस) और 28 (अट्ठाईस) में भी नज़र आती है। इन सबमें ‘ईस’ दरअसल ‘बीस’ का ही प्रतिनिधि है और चूँकि बीस में ‘ई’ की मात्रा है, इसलिए उसके बदले हुए रूप में भी ‘ई’ ही होगा, ‘इ’ नहीं।
बीस के अलावा तीस और चालीस भी ‘ईस’ से अंत होते हैं। तीस वाली संख्याएँ (29 से 38) में ज़्यादा घपला नहीं है क्योंकि उनमें तीस का मूल रूप बरकरार रहा लेकिन चालीस वाली संख्याओं में काफ़ी उलट-पुलट हुआ है – कहीं चालीस का तालीस (39, 41, 43, 45, 47 और 48) हुआ है, कहीं केवल आलीस (42, 44 और 46) रह गया है।
इसके साथ एक गड़बड़ी और हुई है जो दो सिल्अबल वाले 21 (इक्+कीस्) और 22 (बा+ईस्) में नहीं हुई। हुआ यह कि जिन संख्याओं के शब्दरूप में तीन सिल्अबल थे जैसे 43 (तें+ता+लीस्) और 27 (सत्+ता+ईस्), उनमें मुखसुख के चलते ‘इस’ जैसा उच्चारण भी चलने लगा क्योंकि एक-के-बाद-एक तीन-तीन भारी मात्राएँ बोलने में मुँह को कष्ट होता है। इस कारण तें+ता+लीस का तें+ता+लिस हुआ और सत्+ता+ईस का सत्+ता+इस। इसी तरह की और भी कई संख्याओं के दो-दो रूप चलने लगे। इतने चलने लगे कि वे शब्दकोश में आ गए। आप हिंदी शब्दसागर में देखेंगे तो आपको कई-कई संख्याओं के दो-दो रूप मिलेंगे हालाँकि कोशकार ने अधिकतर मामलों में ‘ईस’ वाले रूपों को ही प्राथमिकता दी है। दो मामले अपवाद हैं – 34 और 45। इन दोनों में आश्चर्यजनक रूप से चौंतिस और पैंतालिस को सही बताया गया है (देखें चित्र)।
यह हैरान और भ्रमित करने वाला है। हो सकता है, अलग-अलग कोशकारों के चलते ऐसा हुआ हो। ज्ञानमंडल ने इसके विपरीत एक ही नियम अपनाते हुए 19 से लेकर 48 तक सभी में ‘ईस’ वाले रूपों को मान्यता दी है (देखें चित्र)। यह बेहतर है। इससे एकरूपता भी बनी रहती है और लोगों में भ्रम भी नहीं फैलता। मैं भी आपसे निवेदन करूँगा कि संख्याओं को शब्दरूप में लिखते हुए ‘ईस’ वाला रूप ही अपनाएँ।
बाईस के ‘ईस’ का मामला तो हमने समझ लिया परंतु एक पहेली है जिसने लंबे समय से मुझे परेशान कर रखा है और अभी तक उसका हल नहीं निकल पाया है। वह यह कि बाईस का ‘बा’ कहाँ से आया? हम जानते हैं कि यह ‘बा’ 2 की संख्या के लिए है और केवल 22 में नहीं, 12, 32, 42, 52, 62, 72, 82 और 92 में भी है। संस्कृत में 2 के लिए ‘ब’ या ‘बा’ नहीं है, ‘द्वि’ है जिससे हिंदी का ‘दो’ बना है। फिर ‘दो’ का स्थान इस ‘बा’ ने कैसे ले लिया?
क्या यह गुजराती से आया जिसमें 2 को ‘बे’ कहते हैं। वहाँ 1, 2, 3 को कहते हैं – એક, બે, ત્રણ (एक, बे, त्रण)। बाईस को भी वे બાવીસ (बावीस) कहते हैं यानी वहाँ बीस (वीस) का ब (व) ग़ायब नहीं हुआ। ‘दूसरा’ को भी वहाँ બીજું (बीजूँ) कहते हैं। लेकिन गुजराती का ‘बे’ कहाँ से आया? उसका भी मूल स्रोत संस्कृत ही है।
एक संभावना यह भी है कि संस्कृत के द्वि (2) का दो रूपों में विकास हुआ। एक में ‘व’ घिस गया और ‘द’ बचा जिससे दो बना, दूसरे में ‘द्’ ग़ायब हुआ और ‘व’ बचा जिससे आगे चलकर ‘ब’ बना। इसके बारे में अभी कोई पुख़्ता जानकारी नहीं जुटा पाया हूँ। बस दिमाग़ में एक सवाल आया, सो आपके सामने रख दिया।