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78. वृहस्पति या बृहस्पति, वाह्य या बाह्य, वाण या बाण?

बृहस्पति और वृहस्पति – इन दोनों में कौनसा सही है? फ़ेसबुक पर किए गए एक पोल में 73 प्रतिशत लोगों का मत था कि सही शब्द बृहस्पति है। 27 प्रतिशत की राय इसके विपरीत यानी वृहस्पति के पक्ष में थी। सही क्या है, यह जानने के साथ इस लेख में हम यह भी जानेंगे कि वृहत सही है या बृहत, वक या बक, वाण या बाण?

चूँकि यह शब्द संस्कृत का है, इसलिए सही शब्द क्या है, इसका जवाब हमें संस्कृत के शब्दकोश में ही मिल सकता है। लेकिन कई बार दूसरी भाषाओं के शब्द हिंदी में आकर अपना रूप बदल लेते हैं और प्रचलित हो जाते हैं। ऐसे में उस नए शब्द को ग़लत बताना भी सही नहीं है। इसलिए मैंने हिंदी के शब्दकोश की भी मदद ली ताकि पता चले कि वह क्या कहता है।

संस्कृत और हिंदी, इन दोनों के प्रामाणिक शब्दकोशों को देखने के बाद पता चला कि मूल शब्द बृहस्पति ही है (देखें चित्र) जिसको कुछ लोग संस्कृत काल से ही वृहस्पति भी लिखने-बोलने लगे और धीरे-धीरे वह भी चल निकला। इतना चल निकला कि ठीकठाक संख्या में हिंदीभाषी वृहस्पति को ही सही शब्द समझने लगे जैसा कि हमें अपने पोल से भी पता चलता है।

व और ब को लेकर भ्रम

इसके पीछे कारण शायद यह है कि संस्कृत में ऐसे ढेरों शब्द हैं जो ‘व’ से शुरू होते हैं और हिंदी एवं उसकी सखी भाषाओँ में उसके ‘ब’ वाले रूप भी प्रचलित हो गए हैं जैसे वधू>बधू>बहू, वन>बन, वानर>बानर, विवाह>बियाह>ब्याह, व्रज>ब्रज, विनायक>बिनायक, वट>बट>बड़, वाट>बाट, वरुण>बरुण>बरुन, वंकिम>बंकिम, वर्षा>बर्षा, वीर>बीर, वैरागी>बैरागी, वंदना>बंदना आदि।

इस तरह के शब्दों से कुछ लोगों में यह भ्रम फैला (इन लोगों में मैं भी शामिल था) कि जिन संस्कृतमूलक शब्दों के दो-दो रूप प्रचलित हैं – एक ‘व’ वाला और दूसरा ‘ब’ वाला, उनमें मूल शब्द वही है जो ‘व’ से शुरू होता है। इस चक्कर में वे बृहस्पति/वृहस्पति जैसे शब्दों में भी ‘व’ वाले रूप को सही मानने लगे।

बृहस्पति जैसे और भी कुछ शब्द हैं जिनके दो-दो रूप चलते हैं लेकिन मूल शब्द ‘ब’ वाला ही है। उनका ‘व’ वाला रूप बाद में आया। सूची बहुत लंबी नहीं है। एक बार देख लेंगे तो आगे कभी इनके बारे में भ्रम नहीं होगा। नीचे देखें ‘व’ से शुरू होने वाले ऐसे ही कुछ शब्द। इन सबमें ‘ब’ से शुरू होने वाले विकल्पों पर जाने का इशारा किया गया है। इसका अर्थ है कि ‘ब’ वाले शब्द ही मूल हैं।

जैसा कि मैंने ऊपर बताया, वर्षों से मैं ख़ुद भी यही समझता था कि वृहस्पति, वाह्य, वृहत्, वाण, वक आदि ही मूल यानी तत्सम शब्द हैं और बृहस्पति, बाह्य, बृहत्, बाण, बक आदि उसके तद्भव या वैकल्पिक रूप हैं। लेकिन जैसा कि आपने भी देखा, स्थिति बिल्कुल उलट है। मुझे सबसे पहले यह जानकारी रीतिकालीन हिंदी साहित्य के आचार्य डॉ. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के एक लेख से मिली।

श-ष और स पर भी भ्रम

उसी लेख में ‘स’ और ‘श’ में हुए घालमेल का भी ज़िक्र है। जैसे हम समझते हैं कि संस्कृत का शब्द होगा तो उसके अंत में ‘श’ या ‘ष’ ही होगा, ‘स’ नहीं जैसे देश और देस, भाषा और भासा। यही सोचकर हम कैलाश को तत्सम या असली मान लेते हैं और कैलास को तद्भव या गड़बड़। लेकिन जनाब, कैलास ही मूल है। इसी तरह राम की माता का नाम कौसल्या है। कोसल देश की राजकुमारी कौसल्या। रामायण में भी कौसल्या ही है। राजा दशरथ के राजगुरु का नाम भी मूलतः वसिष्ठ था, वशिष्ठ नहीं।

यह सब बताने का उद्देश्य केवल यही है कि हमलोग जो कुछ शब्दों के पैटर्न के आधार पर कोई धारणा बना लेते हैं, उससे मुक्त हों और अटपटे-से लगने वाले हर शब्द के बारे में कोई राय बनाने से पहले सही जानकारी हासिल करने की कोशिश करें।

 

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