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आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

118. जो मृत जैसा हो, उसे मृतप्रायः कहेंगे या मृतप्राय?

प्रायः शब्द का उपयोग और अर्थ हम सब जानते हैं – अकसर, लगभग, समान। लेकिन जब यह शब्द किसी और शब्द के साथ जुड़कर आएगा तो क्या प्रायः लिखा जाएगा या प्राय? जो लगभग मरे जैसा हो, वह मृतप्रायः है या मृतप्राय? जो लुप्त होने के कगार पर हो, वह लुप्तप्रायः है या लुप्तप्राय? कष्ट से भरे जीवन के लिए कष्टप्रायः लिखेंगे या कष्टप्राय? जानने के लिए आगे पढ़ें।

प्रायः के बारे में कोई संदेह नहीं। लेकिन जब वह किसी शब्द के अंत में आएगा तो प्राय होगा या प्रायः, यही है सवाल। और इस सवाल का जवाब पाना बहुत आसान नहीं है। कारण, संस्कृत और हिंदी के शब्दकोशों से मदद मिलना तो दूर, उनसे उलझन और बढ़ जाती है। हिंदी शब्दकोश में मृतप्राय है लेकिन आप्टे के संस्कृत-अंग्रेज़ी शब्दकोश में मृतप्रायः (देखें चित्र)।

मृतप्राय हिंदी शब्दसागर में।
मृतप्रायः आप्टे के संस्कृत-हिंदी ऑनलाइन शब्दकोश में।

प्रश्न यह भी था कि प्रायः और प्राय का एक ही अर्थ है या अलग-अलग। किसी शब्दकोश से लगता था कि दोनों के एक ही अर्थ हैं, कुछ और शब्दकोशों से प्रतीत होता था कि दोनों के अलग-अलग अर्थ हैं। यही नहीं, प्रायः और प्राय के साथ-साथ मुझे एक और शब्द मिला – प्रायस्। इससे एक और प्रश्न पैदा हो गया – क्या प्रायस् और प्रायः एक ही शब्द के दो रूप हैं या अलग-अलग शब्द हैं। यह सवाल इसलिए उठा कि मकडॉनल के संस्कृत कोश में प्रायः है ही नहीं, वहाँ प्रायस् है। ज्ञानमंडल के हिंदी शब्दकोश से पता चला कि हाँ, प्रायः और प्रायस् एक ही शब्द के दो रूप हैं (देखें चित्र)।

ज्ञानमंडल के शब्दकोश में प्रायः और प्रायस्।

चलिए, प्रायः और प्रायस् का झगड़ा तो ख़त्म हो गया। लेकिन क्या प्रायः और प्राय एक हैं या अलग-अलग, यह सवाल अभी भी बना हुआ था। ज्ञानमंडल की एंट्री से लगता था कि प्राय एक अलग शब्द है जिसके कई अर्थ हैं जैसे अनशन मृत्यु, बाहुल्य, तुल्य आदि और प्रायः का अर्थ तो हम जानते ही हैं – अकसर, लगभग आदि।

लेकिन जब आप्टे के संस्कृत कोश में प्रायः की एंट्री देखी तो उसमें वे सभी अर्थ थे जो मकडॉनल के कोश में प्राय के बताए गए थे (देखें चित्र)।

मकडॉनल के संस्कृत-इंग्लिश कोश में प्राय के अर्थ।
आप्टे के संस्कृत-इंग्लिश कोश में प्रायः के अर्थ।

बहुत सिर खपाने और हिंदी और संस्कृत के कुछ विद्वानों से राय-मशविरे के बाद निष्कर्ष यही निकला कि प्राय, प्रायः और प्रायस् – ये तीनों काफ़ी हद तक समानार्थी हैं और इनके कई-कई अर्थ हैं। लेकिन हिंदी में प्रायः और प्राय केवल इन तीन प्रकार की अर्थ श्रेणियों के लिए इस्तेमाल होते हैं – क. अकसर, लगभग, ख. परिपूर्ण, भरा हुआ और ग. किसी के समान, तुल्य। नीचे कुछ उदाहरण देखें।

  • मैं प्रायः (अकसर) उसके घर के सामने से गुज़रता हूँ।
  • मैं प्रायः (लगभग) दो बजे उसकी दुकान में पहुँच गया था।
  • जब उसे अस्पताल पहुँचाया गया तो वह मृतप्राय (मृत के समान) अवस्था में था।
  • उन्होंने ग़रीबी से भरा कष्टप्राय (तकलीफ़ों से भरा) जीवन जिया।

आपने देखा कि जब अलग से इस्तेमाल करना हो तो विसर्ग वाला रूप यानी ‘प्रायः’ लिखा जाता है परंतु जब वह किसी शब्द के साथ सामासिक रूप में इस्तेमाल होता है तो ‘प्राय’ लिखा जाता है यानी विसर्ग नहीं होता। इसी कारण मृतप्राय, लुप्तप्राय, नष्टप्राय, कष्टप्राय, शेषप्राय आदि लिखे जाएँगे।

चलिए, लुप्तप्राय और मृतप्राय जैसे शब्दों का मसला तो सुलझा। परंतु इस क्रम में हमें प्रायः/प्रायस्/प्राय के संस्कृत में और क्या-क्या अर्थ हैं, यह भी जानने को मिला। मुझे नहीं मालूम, आपको इनकी जानकारी थी या नहीं, मुझे तो नहीं थी। 

  1. गमन, युद्ध के लिए गमन।
  2. अनशन करना, किसी मक़सद से अनशन करना, मृत्यु की इच्छा से अनशन करना।
  3. सबसे बड़ा हिस्सा, मुख्य भाग।
  4. अधिकता, बहुलता, प्रचुरता।

प्रायः और प्राय की ही तरह भव और भवः में भी कई लोगों को संशय होता है। आयुष्मान् भव: या आयुष्मान् भव? विजयी भव: या विजयी भव? इसपर हम पहले एक पोस्ट/क्लास में चर्चा कर चुके हैं। यदि आपसे वह पोस्ट/क्लास मिस हो गई हो तो नीचे दिए गए लिंक पर टैप या क्लिक करके पढ़ सकते हैं कि भव और भवः में सही क्या है और क्यों है।

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