आज हम चर्चा करेंगे उस शब्द की जो किसी लेख या पत्र में अपनी बात ख़त्म करने के बाद फिर से कुछ कहने के लिए इस्तेमाल होता है। वह क्या है – पुनश्च या पुनश्चः? इस विषय पर फ़ेसबुक पर हुए पोल में 64% यानी क़रीब दो-तिहाई से कुछ कम ने कहा – पुनश्च, 36% यानी एक-तिहाई से कुछ ज़्यादा के अनुसार सही शब्द है पुनश्चः।
पुनश्च और पुनश्चः में सही क्या है, मेरे लिए यह पता लगाना आसान भी था और मुश्किल भी।
- आसान इसलिए कि यह संस्कृत का शब्द है और संस्कृत साहित्य में आपको यह शुद्ध रूप में मिल सकता है। लेकिन मुश्किल इसलिए कि संस्कृत ग्रंथों के समुद्र में आप इस सीप को खोजेंगे कैसे।
- आसान इसलिए कि हिंदी के शब्दकोशों में यह शब्द है लेकिन मुश्किल इसलिए कि संस्कृत के शब्दकोशों में यह नहीं है।
- मुश्किल इसलिए कि मुझे संस्कृत का क-ख-ग भी नहीं आता लेकिन आसान इसलिए कि मेरे भाषामित्र योगेंद्रनाथ मिश्र संस्कृत के जानकार हैं और वे मेरी मदद कर देते हैं। इस बार भी उन्होंने काफ़ी मदद की।
पुनश्च और पुनश्चः के बीच सही शब्द की पड़ताल में आने वाली मुश्किलों की नदी को आसानियों की नौका में बैठकर पार करते हुए पिछले तीन-चार दिनों में जो जानकारी जुटा पाया, वह नीचे प्रस्तुत है।
सही है पुनश्च
मुझे मालूम था कि यह शब्द संस्कृत का है, इसलिए सबसे पहले मैंने संस्कृत के ऑनलाइन शब्दकोशों में प्रविष्टि के तौर पर यह शब्द खोजा। लेकिन वह नहीं मिला। फिर मैंने जनरल सर्च किया। जनरल सर्च यानी शब्दकोश में कहीं भी यह शब्द आया हो तो दिख जाए। नतीजे में एक पेज आया, जिनमें अन्य शब्दों के संदर्भ में उदाहरण देते समय इस शब्द का उल्लेख हुआ था। वहाँ पुनश्च ही था, पुनश्चः नहीं (देखें चित्र)।
इसके बाद मैंने हिंदी शब्दसागर देखा। हरदेव बाहरी का हिंदी-अंग्रेज़ी शब्दकोश भी देखा। दोनों में पुनश्च था, पुनश्चः नहीं (स्लाइड करके देखें दोनों चित्र)। वर्धा वालों ने इस शब्द को इतना अनुपयोगी समझा कि शब्दकोश में स्थान ही नहीं दिया। हाँ, शब्दकोश.कॉम में पुनश्चः मिला (स्लाइड करके देखें तीसरा चित्र। लेकिन उस कोश की प्रामाणिकता कितनी है, यह आप सब जानते हैं।
निष्कर्ष यह कि हिंदी और संस्कृत के शब्दकोशों के अनुसार सही शब्द पुनश्च ही है, पुनश्चः नहीं।
पुनश्चः कहाँ से आया?
अब रहा सवाल यह कि जब पुनश्च सही है तो पुनश्चः इतना प्रचलित कैसे हो गया कि एक-तिहाई से ज़्यादा लोगों को यह सही लगने लगे। वजहें दो हो सकती हैं।
1. पहली वजह जो योगेंद्र जी ने सुझाई है, वह यह कि कई लोग विसर्ग, अनुस्वार और हल् को संस्कृत की पहचान समझते हैं। इसलिए जब पुनश्च और पुनश्चः में चुनना हो तो पुनश्चः ही उन्हें सही लगता है। इसी कारण आयुष्मान् भव, यशस्वी भव में भी कई लोग विसर्ग लगाकर आयुष्मान् भवः और विजयी भवः लिख बैठते हैं जो कि ग़लत है। इसपर हम अपनी एक पिछली क्लास में चर्चा भी कर चुके हैं।
2. पुनश्च के पुनश्चः होने में कोलन (:) चिह्न का भी बहुत बड़ा योगदान हो सकता है जो देखने में विसर्ग जैसा ही है। आप जानते हैं कि जब भी लोग पुनश्च लिखते हैं तो साथ में विरामचिह्न के तौर पर कोलन का चिह्न (:) भी देते हैं। हाथ से लिखते समय तो अधिकतर लोग पुनश्च और कोलन के चिह्न को दूर-दूर लिखते हैं परंतु पुस्तक रूप में जब यह शब्द आता है तो वहाँ यह मिलाकर लिखा जाता है। जैसे ‘पुनश्च: अभी कुछ देर पहले आपका पत्र मिला है…’। संभवतः गड़बड़ी का कारण यही है। पुनश्च के साथ चिपकाकर लगाए गए इस कोलन चिह्न को कुछ लोग विसर्ग समझ बैठते हैं और उसे पुनश्चः पढ़ने और लिखने लगते हैं।
कोलन को पिछले शब्द के साथ मिलाकर लिखने का कारण यह है कि कोलन एक विरामचिह्न है, और अंग्रेज़ी के सभी विरामचिह्नों की तरह उसे भी पूर्वशब्द के साथ मिलाकर लिखने का नियम है (जैसे PS:, Note: , Add: आदि)। अंग्रेज़ी की देखादेखी हिंदी की किताबों में भी उसे पिछले शब्द के साथ मिलाकर ही लिखा जाता है जिससे पुनश्च जैसे शब्दों के उच्चारण में गड़बड़ी हो जाती है। मेरे विचार से हिंदी के मामले में इसमें अपवाद किया जाना चाहिए और कोलन के चिह्न को पिछले शब्द से मिलाकर नहीं, दूर रखकर लिखा जाए यथा पुनश्च :।
पुनश्च का अर्थ क्या है?
शब्दकोशों से मुझे सही शब्द का पता तो मिल गया लेकिन उसके अर्थ ने मुझे काफ़ी परेशान किया। हम जानते हैं कि पुनश्च पुनः और च के मिलने से बना है। विसर्ग संधि के नियमानुसार जब विसर्ग के बाद च आता है तो वह (विसर्ग) श् में बदल जाता है। इसीलिए पुनः और च मिलकर पुनश्च हुआ।
लेकिन इस आधार पर इसका अर्थ निकालने बैठते हैं तो बड़ी अजीब स्थिति हो जाती है। पुनः का अर्थ तो है – फिर, दुबारा लेकिन च का क्या अर्थ निकालें? शब्दकोशों में च के कई अर्थ दिए हुए हैं – और, दोनों, अन्यथा, किंवा, लेकिन, बल्कि, यद्यपि-तथापि, बावजूद आदि-आदि। हरदेव बाहरी ने यहाँ च का अर्थ ‘और’ लिया है तथा इसी आधार पर पुनश्च का अर्थ बताया है – और फिर – And Again (देखें चित्र)।
लेकिन पुनश्च के इस अर्थ से मुझे समस्या है। समस्या यह है कि अगर पुनः का अर्थ ‘फिर’ है और च का अर्थ ‘और’ है तो इस शब्द का अर्थ होना चाहिए फिर (पुनः) और (च), न कि और (च) फिर (पुनः)। पुनः से बनने वाले अन्य कई शब्दों में अर्थ इसी क्रम से निकलता है। पुनर्विवाह यानी फिर (पुनः) से विवाह, पुनर्जन्म यानी फिर (पुनः) से जन्म, पुनर्नवा यानी फिर (पुनः) से नया (नवा)। ऐसी स्थिति में पुनश्च का अर्थ होना चाहिए फिर और।
परंतु पुनश्च जिन अर्थों में इस्तेमाल होता है, उसमें फिर और का अर्थ ठीक नहीं बैठता। शायद यही कारण है कि हिंदी शब्दसागर के कोशकारों ने पुनश्च के अर्थ में च के अर्थ को पूरी तरह गोल कर दिया है। शब्दसागर के अनुसार पुनश्च का अर्थ है पुनः, फिर (देखें चित्र)।
च का ज़िक्र आया तो मुझे संस्कृत की एक बहुत लोकप्रिय स्तुति याद आ गई जिसमें इसका प्रयोग हुआ है। उसका हिंदी में अनुवाद भी हुआ है और लता मंगेशकर की आवाज़ में एक फ़िल्म में वह संगीतबद्ध भी हुआ है। क्या आप याद कर पा रहे हैं? यदि हाँ तो नीचे कॉमेंट में बताइए।