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एकला चलो

चमत्कार! मेरी बेटी के पिगी ने भी दूध पिया

पिछले संडे अचानक एक प्लान सूझा। सोचा, मूर्तियों के दूध पीने का एक्सपेरिमेंट घर में क्यों नही ट्राइ किया जाए। अब घर में कोई मूर्ति तो थी नहीं, सो बेटी का एक खिलौना ले लिया। उसे अच्छे से धो-पोंछकर साफ किया। फिर दूध का एक कटोरा लिया और बैठ गए उसे दूध पिलाने। पत्नी से कहा, विडियो कैमरा ऑन करो। उसके बाद क्या हुआ, जानकर आप भी चौंक जाएँगे।

पिगी को दूध पिलाने का एक्सपेरिमेंट शुरू करने से पहले ही वाइफ़ को कह दिया था कि विडियो कैमरा ऑन कर दो – पता नहीं, कोई चमत्कार हो जाए और यह खिलौना सचमुच ही दूध पीने लगे! अगर विडियो होगा तो लोगों को दिखा तो सकेंगे वरना कोई मानेगा ही नहीं कि 25 अप्रैल 2010 को नोएडा के एक घर में एक खिलौने ने दूध पिया था।

मैंने खिलौने के मुँह पर दूध से भरा चम्मच रख दिया और कुछ ही पलों के बाद अपने-आप दूध कम होने लगा मानो खिलौना सचमुच दूध पी रहा है। ठीक वैसे ही जैसे कि कुछ साल पहले देश में हज़ारों मूर्तियों ने दूध पिया था। वैसे सच्चाई वही थी जो मूर्तियों के मामले में भी थी – कि दूध की धारा नीचे बह रही है और सारा दूध फैल रहा है। फर्क सिर्फ यह है कि मेरे एक्सपेरिमेंट में पिगी गुलाबी रंग का है और प्लेट सुनहरे पीले रंग की जबकि मूर्तियाँ और फ़र्श ज़्यादातर मार्बल के थे। इसीलिए यहाँ आप गिरा हुआ सफ़ेद दूध देख सकते हैं जबकि मंदिरों में आप नहीं देख पाते थे। यह सारा एक्सपेरिमेंट देखने के लिए नीचे के विडियो पर क्लिक/या टैप करें।

आज भी याद है मुझे 1995 में सितंबर महीने की 21 तारीख़। सुबह की बात थी। हमारे पड़ोसी दूध का बर्तन लेकर कहीं भागे जा रहे थे। मैंने पूछा तो कहने लगे, ‘चमत्कार हो रहा है। सारी मूर्तियाँ दूध पी रही हैं।’ मैं भी चौंका। सोचा, चलो, हम भी देखते हैं, क्या माजरा है। पास के एक मंदिर में गए। देखा तो मामला समझ में आ गया – आख़िर बीएससी (ऑनर्स) नक़ल मारके तो किया नहीं था। मैंने कुछ लोगों को समझाने की कोशिश की, ‘भाइयो, यह सरफ़ेस टेंशन और कैपिलरी फ़ोर्स का खेल है।’ लेकिन पब्लिक को ये शब्द समझ में कहां आते। मैंने एक और आसान उपाय सुझाया। कहा, ‘अगर यह मूर्ति वाक़ई दूध पी रही है तो यह स्ट्रॉ से भी पीएगी।’ एक उत्साही भाई साहब पास की कोल्ड ड्रिंक्स की दुकान से स्ट्रॉ ले आए। मैंने एक सज्जन से दूध से भरा गिलास लिया और उसमें स्ट्रॉ डारकर उसका एक सिरा मूर्ति के मुँह पर लगा दिया।

सब रुचि के साथ यह एक्सपेरिमेंट देखने लगे। दो-तीन मिनट तक हम खड़े रहे लेकिन दूध कम नहीं हुआ। होना ही नहीं था। फिर हम मंदिर के पिछवाड़े गए जहाँ नाली में सारा बहा हुआ दूध नज़र आ रहा था। कुछ लोग समझ गए और घर लौट गए लेकिन हमारे जाते ही दूध पिलाने का कार्यक्रम फिर शुरू हो गया।

यहाँ पर मैं अपने पाठकों से रिक्वेस्ट करता हूँ कि जिनको पूरी आस्था है कि मूर्तियाँ दूध पी सकती हैं और उन्होंने दूध पिया था, वे कृपया आगे न पढ़ें। मैं उनका समय नष्ट नहीं करना चाहता। लेकिन जो वाक़ई जानना चाहते हैं कि सालों पहले मूर्तियों ने और पिछले संडे को मेरी बेटी के खिलौने ने दूध कैसे पिया था, वे आगे पढ़ें। मैं उनको आसान भाषा में सारा मामला समझाने की कोशिश करूँगा।

  • जब दूध से भरा चम्मच किसी चीज़ से सटाया जाता है तो सरफ़ेस टेंशन की वजह से वह थोड़ा ऊपर आ जाता है। आप इस विडियो (और नीचे की तस्वीर) में देख सकते हैं कि जहाँ चम्मच और पिगी का मुँह सटा हुआ है, वहाँ दूध की सतह थोड़ी ऊपर उठी हुई है।
  • जैसे ही दूध का वह थोड़ा-सा हिस्सा ऊपर उठता है, वह चम्मच से बाहर निकलकर पिगी के शरीर से होता हुआ नीचे बहने लगता है। एक बार जो धारा नीचे बहनी शुरू हुई तो बाक़ी दूध भी (कैपिलरी ऐक्शन और साइफ़न के फ़ेडे के मुताबिक़) नीचे खिंचने लगता है।

आप खुद भी यह एक्सपेरिमेंट कर सकते हैं घर में। बस दो-तीन शर्तों को ध्यान रखें।

  • चम्मच पूरा भरा होना चाहिए।
  • चम्मच का सिरा मूर्ति के किसी भी निकले हुए हिस्से से सटा होना चाहिए जैसे नाक-होंठ आदि।
  • अगर मूर्ति या खिलौने में पहले से ही दूध की धार बनी होगी, तो यह दूध का चम्मच और जल्दी खाली होने लगेगा।

यह लेख 27 अप्रैल 2010 को नवभारत टाइम्स के एकला चलो ब्लॉग सेक्शन में प्रकाशित हुआ था। यह लेख उसका संशोधित रूप है।

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