Categories
आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

104. Prima Facie यानी प्रथमदृष्टया या प्रथमदृष्ट्या?

अंग्रेज़ी के Prima Facie (उच्चारण – प्राइमा फ़ेशी) का अर्थ होता है – पहली नज़र में। लेकिन इसका एक संस्कृतमूलक शब्द भी है जो ‘प्रथम’ और ‘दृष्टि’ से बना है। क्या आप जानते हैं वह शब्द? अगर हाँ तो बताइए, उसमें जो ‘ट’ आता है, वह पूरा है या आधा। यानी शब्द प्रथमदृष्टया है या प्रथमदृष्ट्या है? जब इसपर फ़ेसबुक पोल किया गया तो 53% ने दृष्टया और 47% ने दृष्ट्या के पक्ष में वोट दिया। सही क्या है और क्यों है, जानने के लिए आगे पढ़ें।

प्रथमदृष्टया और प्रथमदृष्ट्या के बारे में पोल करने से पहले मैं काफ़ी पसोपेश में रहा। कारण यह कि मुझे लगता था कि सही शब्द दृष्ट्या होना चाहिए लेकिन मेरे पास इसे साबित करने का कोई ज़रिया नहीं था। किसी भी प्रामाणिक हिंदी शब्दकोश में यह शब्द नहीं है। हो भी कैसे? यह संस्कृत का शब्द है और इसका इकलौता इस्तेमाल मैंने Prima Facie (प्राइमा फ़ेशी) के अनुवाद के तौर पर देखा है।

परेशानी की बात यह कि मेरे पास जो दो संस्कृत कोश हैं, उनमें भी यह शब्द नहीं है – न दृष्टया, न ही दृष्ट्या। हाँ, अंग्रेज़ी-हिंदी शब्दकोशों में यह शब्द है लेकिन वहाँ भी भ्रम की स्थिति है। ऑक्सफ़र्ड के अंग्रेज़ी-हिंदी कोश में दृष्टया है तो फ़ादर बुलके के अंग्रेज़ी-हिंदी कोश में दृष्ट्या (देखें चित्र)। ऐसे में किसको सही मानें?

अतएव किसी कोश के हवाले से मैं साबित नहीं कर सकूँगा कि दृष्ट्या सही है लेकिन व्याकरण के नियमों के हिसाब से सही शब्द दृष्ट्या ही है। इस नतीजे तक पहुँचने में मेरी मदद की है मेरे भाषामित्र Yogendranath Mishra ने। उनके अनुसार दृष्ट्या क्यों सही है, यह नीचे समझते हैं।

यह तो आप जानते ही हैं कि जिस शब्द पर हम चर्चा कर रहे हैं, वह संस्कृत के दृष्टि शब्द से बना है। संस्कृत में संज्ञा और सर्वनाम शब्द विभक्ति के हिसाब से अपना रूप बदलते हैं। हिंदी में भी ऐसा होता है जैसे लड़का लड़के हो जाता है जब उसके बाद ‘ने’, ‘को’ आदि लगते हैं – लड़के ने कहा, लड़के को दिया आदि।

संस्कृत का दृष्टि भी इसी तरह अलग-अलग विभक्तियों और वचनों के हिसाब से अपना रूप बदलता है। तृतीया (करण) विभक्ति और एकवचन के मामले में वह दृष्ट्या हो जाता है (देखें चित्र)।

यानी ‘प्रथम’ के साथ जो शब्द आता है, वह ‘दृष्ट्या’ दृष्टि शब्द का तृतीया एकवचन का रूप है। प्रथम दृष्ट्या यानी प्रथम दृष्टि से।

अगला सवाल : दृष्टा या द्रष्टा?

चलिए, दृष्ट्या का मामला तो सुलझ गया लेकिन दृष्टि और उसके मिलते-जुलते सृष्टि शब्द के साथ एक और विवाद जुड़ा हुआ है। विवाद इस बात का कि दृष्टि से दृष्टा बनेगा या द्रष्टा? इसी तरह सृष्टि से सृष्टा या स्रष्टा?

कॉमन सेंस तो यही कहता है कि दृष्टि से दृष्टा बनना चाहिए और सृष्टि से सृष्टा लेकिन होता है द्रष्टा और स्रष्टा (देखें चित्र)। क्यों, यह नीचे समझते हैं।

दरअसल द्रष्टा या स्रष्टा दृष्टि या सृष्टि से नहीं बने हैं। वे बने हैं दृश् और सृज् से जिनसे दृष्टि और सृष्टि भी बने हैं। इसे यूँ समझिए कि आपके घर में स्टील की थाली, कटोरी और ग्लास हैं। लेकिन स्टील की कटोरी स्टील की थाली से नहीं बनी है, न ही स्टील का ग्लास स्टील की कटोरी से बना है। कोई किसी दूसरे से नहीं बना है लेकिन फिर भी सबमें समानता है। समानता इसलिए कि वे सब एक ही स्टेनलेस स्टील से बने हैं। इसलिए तीनों का रंग एक है मगर तीनों का रूप एक नहीं।

फिर से दृष्टि और द्रष्टा पर आते हैं। ये दोनों ही दृश् धातु से बने हैं। दृश् में क्तिन् (ति) प्रत्यय लगा तो दृष्टि बना और दृश् में तृच् (तृ) प्रत्यय लगा तो द्रष्टा नहीं, द्रष्टृ बना।

जी हाँ, देखने वाले के लिए संस्कृत का जो शब्द है, वह द्रष्टृ है, द्रष्टा नहीं (देखें चित्र)। तो फिर हिंदी में हम द्रष्टा क्यों चलाते हैं? आइए, नीचे समझते हैं।

जैसे हिंदी में ‘देखने वाला’ शब्द बहुवचन में अथवा उसके बाद ‘ने’, ‘का’ आदि लगने पर ‘देखने वाले’ हो जाता है (देखने वाले ने कहा, देखने वाले का बयान), वैसा ही परिवर्तन संस्कृत में भी होता है। क्या परिवर्तन होता है, यह हम नीचे योगेंद्र जी की भाषा में समझते हैं। वे लिखते हैं – 

‘द्रष्टृ दृश् धातु से बना संज्ञा प्रातिपदिक है। इस प्रातिपदिक के फिर रूप बनते हैं – द्रष्टा (एकवचन) द्रष्टारौ (द्विवचन), द्रष्टारः (बहुवचन)। इनमें से द्रष्टा रूप हिंदी में इसलिए चलता है कि हिन्दी में ऋकारांत शब्दों (प्रातिपदिकों) के प्रथमा एकवचन के रूप ही मूल शब्द के रूप में ग्रहण किए गए हैं। कुछ प्रचलित उदाहरण देखिए।

  • पितृ – पिता
  • मातृ – माता
  • भ्रातृ – भ्राता
  • जामातृ – जामाता
  • विधातृ – विधाता
  • द्रष्टृ – द्रष्टा
  • स्रष्टृ – स्रष्टा

हम संस्कृत में पितृ होते हुए भी हिंदी में पिता बोलते-लिखते हैं, मातृ की जगह माता लिखते-बोलते हैं। उसी तरह द्रष्टृ की जगह द्रष्टा और स्रष्टृ की जगह स्रष्टा। संस्कृत के ऋकारांत शब्द सिर्फ़ समास में चलते हैं – भ्रातृभाव, पितृसत्ता।’

ऊपर जो हमने चर्चा की, उसे संक्षेप में इस तरह समझ सकते हैं।

  1. दृष्टि (नज़र) और द्रष्टृ (देखने वाला) – ये दोनों संस्कृत के दृश् धातु से बने हैं। वचनों और विभक्तियों के हिसाब से इन शब्दों के रूप बदलते हैं। 
  2. दृष्टि अपने तृतीया एकवचन रूप में दृष्ट्या हो जाता है जिससे प्रथम दृष्ट्या बना है।
  3. द्रष्टृ का प्रथमा एकवचन रूप है द्रष्टा। हिंदी में संस्कृत के ऋकारांत शब्दों के प्रथमा एकवचन रूप को ही अपनाया गया है जैसे मातृ का माता और पितृ का पिता। द्रष्टृ भी ऋकारांत है और इसीलिए उसके भी प्रथमा एकवचन रूप द्रष्टा को हिंदी में अपनाया गया है।
  4. इसी तरह सृज् धातु से सृष्टि और स्रष्टृ बने हैं। हिंदी में स्रष्टृ का प्रथमा एकवचन रूप स्रष्टा चलता है।

दो और सवाल

अब केवल दो सवाल रह जाते हैं। एक का जवाब मेरे पास है, दूसरे का नहीं। दूसरे का इसलिए नहीं कि अगर मैं उसका जवाब खोजने बैठूँगा तो मुझे संस्कृत के कई सारे नियम पहले तो ख़ुद समझने पड़ेंगे और फिर आपको समझाने पड़ेंगे। मेरे ख़्याल से उसके लिए अभी अवकाश नहीं है।

पहला सवाल यह कि जब धातु दृश् और सृज् हैं तो उनके बाद क्तिन् (ति) प्रत्यय लगने पर श् ष् में क्यों बदल जाता है। दूसरे शब्दों में – दृश् से दृश्ति और सृज् से सृज्ति क्यों नहीं होता?

इसका जवाब मुझे नहीं मालूम था। योगेंद्र जी ने इसके बारे में यह बताया –

धातु के अंत में चकार, छकार, जकार तथा शकार हो और बाद में किसी भी वर्ग का पहला, दूसरा, तीसरा या चौथा वर्ण हो तो चकार, छकार, जकार तथा शकार के स्थान पर षकार का आदेश हो जाता है। इसका सूत्र है – व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां षः 8।2।36।

दृश्+क्तिन् और सृज्+क्तिन् में श् और ज् के बाद त् है (क्तिन् के क् तथा त् की इत्संज्ञा होने से लोप हो जाता है। बचता है ति।) और ये श् और ज् ऊपर के सूत्रानुसार ष् में बदल जाते हैं।

इसलिए दृश्+ति>दृष्+ति=दृष्टि और सृज्+ति>सृष्+ति=सृष्टि।

लीजिए, एक और उपप्रश्न पैदा हो गया। दृष्+ति और सृष्+ति से तो दृष्ति और सृष्ति होना चाहिए। ये दृष्टि और सृष्टि क्यों हो गए?

इसका जवाब आसान है। चूँकि ष् मूर्धन्य है, इसलिए उसके बाद (मूर्धन्य) ट ही आएगा। मूर्धन्य समझते हैं न? जीभ के तालू के और भीतर मूर्धा को स्पर्श करने से जो ध्वनि निकले, वह मूर्धन्य है। अगर अब भी समझ न आए तो आप बस कुछ शब्दों परे ग़ौर कर लें। इन सबमें ष् के बाद ट ही है जैसे राष्ट्र, मिष्टान्न, भ्रष्ट, कष्ट। इसी तरह से दृष्टि और सृष्टि।

दूसरा सवाल जिसका जवाब मेरे पास नहीं है लेकिन जो आपके दिमाग़ में भी होगा, वह यह कि जब दृश् धातु से दृष्टि बनता है तो उसी दृश् से द्रष्टृ (द्रष्टा) क्यों हो जाता है? वहाँ भी दृष्टा क्यों नहीं होता? इसी तरह सृज् से सृष्टा क्यों नहीं होता? एक वाक्य में कहें तो दृश् और सृज् में जो ृ (ऋ) की मात्रा है, वह द्रष्टृ (द्रष्टा) और स्रष्टृ (स्रष्टा) में अ की मात्रा में क्यों बदल जाती है?

ज़रूर इसका भी कोई नियम होगा। लेकिन पोस्ट लिखे जाने तक मैं इसका जवाब नहीं खोज पाया। अगर आपमें से कोई इसका जवाब दे सके तो मुझ जैसे जिज्ञासुओं का भला होगा।

पसंद आया हो तो हमें फ़ॉलो और शेयर करें

One reply on “104. Prima Facie यानी प्रथमदृष्टया या प्रथमदृष्ट्या?”

बहुत सुंदर जानकारी। यहीं आप द्रष्‍टव्‍य और दृष्‍टव्‍य पर भी चर्चा कर सकते थे। इन दोनों को लिखने में भी कन्‍फ्यूजन होता है।
पितृ – पिता, मातृ – माता, भ्रातृ – भ्राता, जामातृ – जामाता, विधातृ – विधाता, द्रष्टृ – द्रष्टा, स्रष्टृ – स्रष्टा के अतिरिक्‍त दातृ, व्‍याख्‍यातृ, कर्तृ, ध्‍यातृ, होतृ, धातृ, नेतृ, भोक्‍तृ आदि शब्‍दों से दाता, व्‍याख्‍याता, कर्ता, ध्‍याता, होता, धाता, नेता, भोक्‍ता जैसे रूप बनेंगे।

अपनी टिप्पणी लिखें

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Social media & sharing icons powered by UltimatelySocial