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एकला चलो

जाते-जाते वो उन्हें अपनी कहानी दे गया…

कोई व्यक्ति जब रिटायर होता है तो एक छोटा-सा फ़ेयरवेल मेल लिखता है जिसमें कुछ पुरानी बातें याद करता है और सबको धन्यवाद देता है। मैं जब 2018 में नवभारत टाइम्स वेबसाइट के संपादक के पद से रिटायर हुआ तो वही किया जो वहाँ रहते हुए किया था। अपने 34 साल के करियर में जो सीखा था, वह उस एक मेल में रख दिया। यदि आप पत्रकार हैं और नहीं भी हैं और जानना चाहते हैं कि मेरी समझ से एक अच्छे पत्रकार को क्या करना चाहिए और कैसा होना चाहिए तो यह फ़ेयरवेल मेल पढ़ सकते हैं।

नमस्ते,

16 मार्च को फ़ेयरवेल के दिन या शायद उसके अगले दिन एक साथी ने पूछा था, ‘सर, आप बाई-बाई वाला मेल तो लिखेंगे ना?’ मैंने कहा था, ‘पता नहीं।’ पता नहीं इसलिए कहा कि फ़ेयरवेल के आयोजन के बावजूद मुझे लग ही नहीं रहा था कि मैं इस संस्थान से अलग हो गया हूँ। पिछले बुधवार को मैंने अर्चना और प्रभाष को फोन करके एक फ़ोटो गैलरी बनाने को भी कहा। बाद में मुझे ख़्याल आया – अरे, यह मैं क्या कर रहा हूँ। अब मैं नवभारतटाइम्स.कॉम का संपादक नहीं हूँ। मैं कैसे कह सकता हूँ कि यह करो या वह मत करो?

अब एक सप्ताह बीत जाने के बाद यह आभास हो रहा है कि मैं अब वाक़ई रिटायर हो गया हूँ। अब मैं इस मानसिकता में आया हूँ कि आपसे अंतिम वार्तालाप कर सकूँ।

इस वार्तालाप में भी मैं आपको कुछ ज्ञान ही दूँगा – एक तरह से अपने पत्रकारिता जीवन से मिले ज्ञान का निचोड़ है। उम्मीद है, आप उससे लाभान्वित होंगे।

1. सोचें कि पाठक क्या-क्या जानना चाहता है

उन सबका जवाब देने की कोशिश करें

सबसे पहले स्टोरी के बारे में। कोई भी स्टोरी लिखें, चाहे वह राजनीति से संबंधित हो या फ़िल्म व खेल से, हमेशा यह ख़्याल रखें कि आप जिस विषय पर लिख रहे हैं, उसको लेकर किसी पाठक के मन में क्या-क्या और जिज्ञासाएँ हो सकती हैं और क्या आपने उन सारी जिज्ञासाओं का जवाब दे दिया है। कई बार ऐसा होता है कि मुद्दे से जुड़ी कई बातें ख़बर लिखने तक मालूम नहीं होती हैं। ऐसे में यह बताना उचित है कि इस बारे में अभी जानकारी नहीं मिली है या उसका इंतज़ार किया जा रहा है।

2. सबको सबकुछ नहीं मालूम

बेसिक जानकारी भी दें और बैकग्राउंडर भी

दूसरी बात, यह न समझें कि जो बात आप जानते हैं, वह पाठक भी जानता है। मुझे याद है कलकत्ता में रहते हुए मैंने ‘दल ख़ालसा’ के बारे में कई ख़बरें पढ़ी थीं मगर ‘ख़ालसा’ का मतलब शुद्ध या प्योर है, यह मुझे टाइम मैगज़ीन में छपे एक आर्टिकल से पता चला।

इसीलिए कोई भी नाम या अब्रीविएशन लिखते समय यह न सोचें कि सभी पाठकों को उसके फ़ुल फ़ॉर्म की जानकारी होगी। मेरी समझ से यदि बीजेपी या सीबीआई से संबंधित कोई स्टोरी हो और यह मालूम हो कि अधिकतर पाठक इनका फ़ुल फ़ॉर्म जानते होंगे, तब भी शुरुआती पैरे में भारतीय जनता पार्टी और ब्रैकिट में बीजेपी और केंद्रीय जाँच ब्यूरो और ब्रैकिट में सीबीआई लिखना चाहिए। आगे के पैरों में आप बीजेपी और सीबीआई लिख सकते हैं। सभी अच्छे अख़बार इसे फ़ॉलो करते हैं।

इसी तरह जब भी कोई ख़बर लिखें, ख़बर के बीच में या अंत में संक्षेप में उससे जुड़ा बैकग्राउंड अवश्य दें और यह लिखते हुए ‘ज्ञातव्य है या उल्लेखनीय है’ आदि का प्रयोग न करें। लिखें, ‘आपको मालूम होगा कि… या आपको बता दें कि…’। इससे पाठक को लगता है कि आप उससे सीधे बात कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर मायावती और अखिलेश के साथ-साथ आने के बारे में लिखी गई कोई भी ख़बर इस ज़िक्र के बिना पूरी नहीं होती कि इससे पहले भी बीएसपी और एसपी 1993 में एक हुए थे और फिर किस कारण अलग हुए। भले ही दो या तीन लाइनों में हो मगर यह बैकग्राउंड अवश्य हो।

3. भाषाई शुद्धता का ख़्याल रखें, नामों का भी

आप घ़लत लिखेंगे तो लाखों लोग ग़लत सीखेंगे

अब भाषा के बारे में। भाषा के बारे में बहुत सारी बातें पहले भी कह चुका हूँ। नामों के मामले में पूरी सतर्कता बरतें कि वह मूल नाम के अधिक से अधिक क़रीब हो। हमारे समय में यह सुविधा नहीं थी कि अंग्रेज़ी में लिखे किसी नाम का उच्चारण पता कर सकें लेकिन इंटरनेट के कारण अब यह बहुत ही आसान है। कई शब्दकोश हैं, यूट्यूब है, उच्चारण की वेबसाइटें हैं। उनका उपयोग करें। फ़नेटिक चिह्नों के बारे में जानें।

यदि प्रभाष किसी साथी की सेवा लेकर नामों का उच्चारण कोश बनवा सके तो यह बहुत ही काम की चीज़ होगी। या फिर हर सेक्शन अपने-अपने क्षेत्र के लोगों के नामों के उच्चारण की लिस्ट बनाए तो भी यह काम हो सकता है। मैं अपने समय में यह काम नही करवा सका।

अंग्रेज़ी के शब्दों की लिस्ट भी अपडेट करते रहें। टीम में से कोई एक यह ज़िम्मेदारी ले सकता है।

राजेश जी के कहने पर मैंने ‘क्या करें और क्या न करें’ की एक लिस्ट बनाई थी। वह अलग से भेज रहा हूँ। उसे पढ़ें और सेव कर लें। इस लिस्ट को बढ़ा भी सकते हैं।

4. शिफ़्ट इंचार्ज के रूप में पंच परमेश्वर हैं आप

ना काहू दे दोस्ती, ना काहू से बैर

अगली बात पेशागत ईमानदारी के बारे में। ब्लॉग लिखते समय आप चाहे किसी का भी समर्थन या विरोध करें लेकिन ख़बर बनाते समय और उसे साइट पर लगाते समय आप भूल जाएँ कि आप किस व्यक्ति, पार्टी या विचारधारा के समर्थक हैं। जब आप कॉपी एडिटर या शिफ़्ट इंचार्ज की कुर्सी पर हैं तो आप प्रेमचंद की कहानी ‘पंच परमेश्वर‘ के अलगू चौधरी और जुम्मन शेख़ हैं जो पंच की कुर्सी पर बैठते ही भूल गए कि कौन उनका दोस्त है और कौन दुश्मन। जिसने भी यह कहानी न पढ़ी हो, वह इसे अवश्य पढ़े

5. ग़लती हो तो शर्मिंदगी हो…

यह शर्मिंदगी आपको ज़िम्मेदार बनाएगी

एक बात उन मेल्ज़ के बारे में जो मैं लगातार लिखता था जब भी साइट पर कोई ग़लती देखता था। कई बार यह भी पूछता था कि यह ग़लती किसने की। मैं ऐसा क्यों करता था? क्या किसी को अपमानित करने के लिए? इसका जवाब देने के लिए मैं अपना ही एक अनुभव बताता हूँ। यह तब की बात है जब मैं ख़ुद एक कॉपी एडिटर था। मैंने एजंसी की एक कॉपी एडिट करके टोकरी में डाल दी थी जहाँ से वह कंपोज़िटरों के पास जानी थी। तभी चीफ़-सब वहाँ आए और कॉपी पढ़ी। उसमें दो-चार जगहों पर ग़लतियाँ छूटी हुई थीं। उन्होंने कहा, ‘इसमें तो कई ग़लतियाँ है। किसने किया?’

वह दृश्य मुझे आज भी याद है। मैं इतना शर्मिंदा था कि नज़रें नहीं उठा पा रहा था।

क्यों? इसलिए कि मैंने वह काम ठीक से नहीं किया था जिसके लिए मुझे अपॉइंट किया गया था और जिसके लिए मुझे वेतन दिया जाता था।

जब भी मैं पूछता था कि यह किसने किया तो मेरे दो मक़सद होते थे। एक, यदि उसने जानकारी न होने कारण यह ग़लती की है तो उसे वह जानकारी दी जाए और दो, यदि उसने जानकारी के बावजूद यह ग़लती की है तो उसके मन में वही ग्लानिभाव उत्पन्न हो जो मेरे मन में सालों पहले उत्पन्न हुआ था और हर बार उत्पन्न होता है जब-जब मैं कोई ग़लती करता हूँ।

6. अख़बार पढ़ें – पहले पन्ने से आख़िरी पन्ने तक

हर विषय में अपडेट रहना ज़रूरी है

जानकारी न होने के कारण कई ग़लतियाँ होती हैं। मुझसे भी हुई हैं। यह तब की बात है जब फ़रदीन के पास कोकेन पाया गया था। एजंसी की स्टोरी आई और मैंने साइड में रख दी क्योंकि मुझे पता नहीं था फ़रदीन कौन हैं। आधे घंटे के बाद न्यूज़ एडिटर मेरे पास आए और पूछा, ‘क्या फ़रदीन की कोई स्टोरी आई है?’ मैंने कहा, ‘हाँ।’ वह चौंके, ‘आपने बताया नहीं!’ और तब मैं समझा कि फ़रदीन वाली ख़बर कितनी महत्वपूर्ण है।

हमारे यहाँ भी जब कलबुर्गी की हत्या हुई थी तो शिफ़्ट इनचार्ज ने उस ख़बर को इग्नोर कर दिया था यह कहकर कि ऐसी हत्याएँ तो होती ही रहती हैं। यह इसलिए कि उसे नहीं मालूम था कि कलबुर्गी कौन हैं। इसलिए ज़रूरी है कि हम लगातार अपडेटिड रहें। और अपडेटिड रहने का एक ही तरीक़ा है कि कुछ अच्छे अंग्रेज़ी और हिंदी अख़बार रोज़ पढ़े जाएँ – पहले पन्ने से लेकर आख़िरी पन्ने तक। राजनीति, खेल, फ़िल्म, टेक, बिज़नस – हर फ़ील्ड की हेडलाइन्स अवश्य देखें और उनका इंट्रो ज़रूर पढ़ें। सुबह की शिफ़्ट हो तो शाम को पढ़ें। मैं बीएससी (ऑनर्स) हूँ, वह भी बॉटनी में। लेकिन एक पत्रकार और संपादक केवल इसलिए बन पाया कि 9-10 साल की उम्र से अख़बार पढ़ता आया था। सुबह मुझे सोते से जगाने का एक ही तरीक़ा था कि मेरे कानों तक अख़बार की फड़फड़ाहट पहुँचा दी जाए।

7. अपने काम से प्यार करें, काम काम नहीं लगेगा

आपका काम ही आपका भविष्य तय करेगा

और अंत में काम के बारे में। मैंने कहीं पढ़ा था – यदि आप अपने काम से प्यार करते हैं तो आपको ज़िंदगी में एक दिन भी काम नहीं करना पड़ेगा। अपने काम से प्यार करें, शब्दों से प्यार करें, ख़बरों से प्यार करें, अपनी साइट और कंपनी से प्यार करें और ड्यूटी के दौरान अपने काम में अपना सबकुछ झोंक दें। जब रात को सोएँ तो आपको यह संतोष होना चाहिए कि कंपनी और संपादक ने आपको जिस काम के लिए रखा है, आपको जो काम दिया है, वह आपने अपनी दक्षता का पूरा इस्तेमाल करते हुए और पूरी ईमानदारी से किया है।

अब यहाँ यह प्रश्न उठता है कि यह कैसे तय हो कि आपने अपना काम ईमानदारी से किया है। इस सिलसिले में एक उदाहरण देता हूँ। एक साथी की रविवार को बिज़नस में ड्यूटी थी। मैंने देखा, उसने केवल दो स्टोरीज़ बनाई हैं। साढ़े आठ घंटे की शिफ्ट में दो स्टोरीज़! मैंने उससे पूछा तो उसने कहा कि संडे को ज़्यादा स्टोरीज़ नहीं होतीं।

यह जवाब संतोषजनक नहीं था। मैंने उससे कहा, ‘यदि ऐसा है तो हमें संडे को बिज़नस पेज पर कोई साथी नहीं रखना चाहिए।’ मैंने उसे समझाया, ‘यदि तुम ख़ाली बैठे हो तो इससे बड़ा अपराध नहीं हो सकता। तुम शिफ़्ट इंचार्ज से कहकर किसी और सेक्शन का काम ले सकते थे या इंग्लिश ईटी से ही कई अच्छी स्टोरीज़ का अनुवाद कर सकते थे।’

मैंने cmsanalytics में देखा है कि साढ़े आठ घंटे की एक शिफ़्ट में एक ही सेक्शन में एक साथी दस-बारह स्टोरीज़ ट्रांसलेट कर लेता है और दूसरा साथी केवल चार-पाँच स्टोरीज़ ही बना रहा होता है। जब ऐसा होगा तो DE या EE उसी व्यक्ति को मिलेगा जिसने ज़्यादा ख़बरें बनाई होंगी। ये बातें महत्वपूर्ण हैं और आपका भविष्य इसी से तय होगा।

8. छोटे-बड़े किसी से दुर्व्यवहार न करें

हो जाए तो बिना संकोच माफ़ी भी माँगें

जाते-जाते एक बात व्यवहार के बारे में भी। मुझे नहीं मालूम, इन सालों में मेरा व्यवहार कैसा रहा। किसी ने फ़ेयरवेल के दौरान कहा था कि मेल में मैं बहुत सख़्त नज़र आता था लेकिन व्यक्तिगत मुलाक़ात में मैं आत्मीयता से बात करता था।

यदि ऐसा था तो मैं इसे अच्छा ही कहूँगा। लेकिन दो अनुभवों का उल्लेख यहाँ करना ज़रूरी समझता हूँ। एक, जब आइटीओ में एक इंटर्न की ग़लती पर मैं बिफर उठा था, सरेआम उसे बुरी तरह डाँट दिया था। उसके बाद जब अपने कैबिन में आया तो मैंने ख़ुद से पूछा, यह मैं क्या कर रहा हूँ? ‘आजतक‘ के न्यूज़रूम के जिस डाँट-डपट और चीख-चिल्लाहट के माहौल से दुखी होकर मैं यहाँ आया हूँ, आज वही मैं ख़ुद कर रहा हूँ। मैंने तुरंत एक मेल किया और उस इंटर्न से माफ़ी मांगी। उसके बाद ही मुझे शांति मिली।

एक और अनुभव है हाल का। स्वाति मिश्रा ने दुनिया में रहते हुए एक महत्वपूर्ण ख़बर मिस कर दी थी। उसने सोचा कि मैं बाद में बनाऊँगी और फिर भूल गई। मैंने फ़ोन पर उसे दस मिनट तक इतनी बुरी तरह डाँटा कि थोड़ी देर बाद प्रभाष ने मुझसे पूछा, ‘क्या आपने स्वाति से कुछ कहा है? वह बिल्कुल रुआँसी हो रही है।’

सच यह भी है कि स्वाति को डाँटने के बाद मैं भी अपने कमरे में रो रहा था यह सोचकर कि मैंने किस तरह उसका दिल दुखाया। अभी यह अनुभव लिखते समय भी मेरी आँखों से आँसू टपक रहे हैं।

और भी ऐसे कुछ वाक़ये होंगे जब मैंने कभी किसी को बुरा-भला कहा होगा और उसका दिल दुखाया होगा। उसके लिए मैं तहेदिल से माफ़ी माँगता हूँ।

आप सबसे अब रोज़ मुलाक़ात नहीं होगी लेकिन कभी मन हुआ तो फ़ोन कर लीजिएगा। अब तो मेरे पास टाइम ही टाइम है। कभी सपनों में भी आ जाइएगा जैसे कि आज प्रभाष आया था। पीठ पर कोई भारी-भरकम बैग था और एक ठुँसी हुई बस में सवार था। बैग में खाने-पीने का कोई सामान था, शायद सत्तू। फिर हम दोनों आगे चले पैदल… आगे का याद नहीं, शायद सपना टूट गया।

अंत में ‘निकाह’ का यादगार गीत गुनगुनाते हुए विदा लेता हूँ – बीते हुए लम्हों की कसक याद तो होगी, ख़्वाबों ही में हो चाहे मुलाक़ात तो होगी

नीरेंद्र

पुनश्च – कोशिश की है कि यह मेल नवभारत टाइम्स ऑनलाइन के उन सभी साथियों तक पहुँचे जिनके साथ मैंने पिछले 11 सालों में काम किया है। जो मुझसे पहले ही कहीं और जा चुके थे, उनके जीमेल अड्रेस खोजे। कुछ के मिले, कुछ के नहीं मिले। जिनके नहीं मिले, वे यह न समझें कि मैंने उनको भुला दिया। विदा।

यह मेल 26 मार्च 2018 को नवभारत टाइम्स ऑनलाइन के पूर्व संपादक नीरेंद्र नागर ने अपने पूर्व सहकर्मियों को लिखा था। यहाँ उसे मामूली संपादन के साथ हूबहू प्रस्तुत किया गया है। मूल पत्र में उपशीर्षक नहीं थे।

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