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आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

128. दूध के बर्तन पर क्या रखना, ढकना या ढँकना?

एक शब्द है ढक्कन (संज्ञा) जिसके बारे में किसी को कोई भी भ्रम नहीं है। लेकिन जब इसके क्रिया रूप की बात होती है तो दिमाग़ पसोपेश में पड़ जाता है कि ढकना लिखें या ढँकना। जैसे खाने-पीने की चीज़ों को हमेशा ‘ढकना’ चाहिए या ‘ढँकना’ चाहिए? यह शब्द संज्ञा के तौर पर भी ढक्कन की जगह इस्तेमाल होता है। उसमें क्या ‘ढकना’ होगा या ‘ढँकना’? इन्हीं सब सवालों का जवाब खोजने के लिए यह क्लास तैयार की है। रुचि हो तो पढ़ें।

जब मैंने फ़ेसबुक पर एक पोल के ज़रिए जानना चाहा कि हिंदी समाज में ढकना और ढँकना के बीच कौनसा रूप ज़्यादा प्रचलित है तो पता चला कि 53% लोग मानते थे कि संज्ञा के तौर पर यानी ढक्कन के अर्थ में ढकना सही है लेकिन जब उसे क्रिया के तौर पर इस्तेमाल करना हो तो ढँकना लिखना चाहिए। मसलन दूध के बर्तन को ढँक दो। इसके विपरीत 12% लोगों की राय थी कि संज्ञा के तौर पर ‘ढँकना’ और क्रिया के तौर पर ‘ढकना’ सही है। 35% लोगों का मत था कि ‘ढकना’ ही सही है चाहे वह संज्ञा के तौर पर इस्तेमाल हो या क्रिया के तौर पर। नीचे देखें वोटिंग का नतीजा।

ढक्कन के लिए ढकना लिखें या ढँकना?

पोल के नतीजे से निष्कर्ष निकलता है कि 53+35 यानी 88% इस बात पर एकमत हैं कि संज्ञा रूप तो ‘ढकना’ ही है। विवाद केवल क्रिया रूप के बारे में है जहाँ 18% के अंतर से बहुमत ‘ढँकना’ को सही मानता है।

आइए, पहले पता करते हैं कि शब्दकोश क्या बताते हैं। शब्दकोश एकमत से ढकना को सही बताते हैं – चाहे वह संज्ञा हो या क्रिया। यानी शब्दकोशों के फ़ैसले के अनुसार उन 35% साथियों का मत सही है जिन्होंने चौथे विकल्प के पक्ष में वोट किया था।

लेकिन ऐसा भी नहीं कि वे ढँकना को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर देते हों। इन्हीं शब्दकोशों में ढँकना भी है लेकिन उसमें ढकना की एंट्री पर जाने का इशारा किया हुआ है (देखें चित्र)।

इससे प्रतीत होता है कि कोशकार भी जानते और मानते हैं कि समाज में दोनों रूप चल रहे हैं या चल रहे थे – ढकना और ढँकना। मगर वे ‘ढकना’ को वरीयता और मान्यता देते हैं। क्यों? यही एक सवाल है जिसको हमें जाँचना है। इस प्रयास में हमें ढकना/ढँकना के और रूपों को भी दायरे में रखना होगा जिनसे ये शब्द बने होंगे या जो शब्द इनसे बने होंगे। मसलन ढक/ढँक, ढक्कन, ढाँकना आदि।

सबसे पहले यह जानना होगा कि यह ‘ढकना’ या ‘ढँकना’ शब्द आया कहाँ से और वहाँ उसका क्या रूप है। हिंदी शब्दसागर की ‘ढाँकना’ की एंट्री में लिखा है कि यह संस्कृत के ‘ढक’ से आया है (देखें चित्र)।

वैसे संस्कृत कोश में मुझे ढक नहीं मिला। वहाँ मुझे ढक्का और ढक्कनम् मिले। ढक्का का मुख्य मतलब बड़ा ढोल है लेकिन उसका एक और अर्थ विलोपन यानी ग़ायब होना भी है। ढक्कनम् का अर्थ है दरवाज़ा बंद किया जाना (देखें चित्र)।

ढक्का (ग़ायब होना) और ढक्कनम् (दरवाज़ा बंद करना) – इन दोनों का आशय किसी चीज़ को हमारी आँखों से छुपाना ही है। सो यह माना जा सकता है कि हिंदी के सारे शब्द – ढक/ढँक, ढकना/ढँकना/ढाँकना और ढक्कन इन्हीं दो शब्दों से आए हैं हालाँकि यहाँ उसका अर्थ कुछ बदल गया है।

आप यह भी ध्यान दे रहे होंगे कि ढक्का या ढक्कनम् में ‘ढ’ पर कोई अनुस्वार (ङ्, ञ्, ण्, न् या म्) नहीं है जिससे हिंदी में ढँकना बनने की संभावना बनती हो। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि ढकना ही सही है और मूल के ज़्यादा क़रीब है।

परंतु यहाँ एक पेच है। यह सही है कि संस्कृत के ऐसे कई शब्द हैं जिनमें शुरुआती अकार वर्ण के साथ लगी अनुस्वार की ध्वनि हिंदी में अनुनासिक बन जाती है जैसे दंत (दन्त) से दाँत, ग्रंथि (ग्रन्थि) से गाँठ, कंटक (कण्टक) से काँटा आदि। लेकिन यह भी सही है कि अनुनासिक ध्वनि बनने के लिए संस्कृत के शब्द में अनुस्वार होना ज़रूरी नहीं है। मसलन अक्षि से आँख बना, सत्य से साँच बना, पक्ष के पाँख बना हालाँकि यह परिवर्तन सीधे-सीधे नहीं हुआ है। यानी सत्य से साँच बनने के बीच सत्त और सच्च बना – फिर साँच बना। इसी तरह पक्ष से पाँख बनने से पहले वह पक्ख बना, फिर पाँख बना।

इसका मतलब मैं यह समझता हूँ कि संस्कृत के अकार से शुरू होने वाले शब्द जब हिंदी में आकार में परिवर्तित होते हैं तो उसके साथ अनुनासिक ध्वनि लगने की आम प्रवृत्ति है। दंत से दाँत और पक्ष से पाँख – दोनों में मैं यही प्रवृत्ति देखता हूँ हालाँकि एक में संस्कृत शब्द के शुरू में अनुस्वार है (दंत), दूसरे में नहीं है (अक्षि)। इस आधार पर ढक्का से ढाँक बनना कोई मुश्किल बात नहीं भले ही ढ के साथ कोई नासिक्य ध्वनि (अनुस्वार) न हो।

बहुत संभव है कि संस्कृत से हिंदी में दोनों शब्द आए होंगे और उनके रूप इस तरह से बदले होंगे – ढक्कनम् से ढक्कन और ढक्का से ढाँक। ढक्कन संज्ञा के रूप में चला और ढाँक क्रिया के रूप में। इसी ढाँक से ढाँकना बना जो अब भी क्रिया के रूप में चल रहा है।

रहा सवाल कि यह कि अपने पोल का शब्द – ढकना/ढँकना – किससे बना तो मैं इसके बारे में पक्के तौर पर कुछ भी कह नहीं सकता। ढक्कन से भी बना हो सकता है – ढक्कन>ढक्कना>ढकना और ढाँकना से भी – ढाँकना>ढँकना>ढकना।

जो हो, आज की तारीख़ में ढकना ही प्रचलित है। हाँ, ढाँकना (क्रिया) के मामले में ढाकना नहीं चलेगा। वैसे भी आकार से शुरू होने वाले शब्दों के साथ अनुनासिक ध्वनि का संबंध लंबा टिकता है। यह तो केवल अकार से शुरू होने वाले शब्द हैं जो अक्सर अनुनासिक ध्वनि से अपनी पीछा छुड़ा लेते हैं (बाँट>बटाई, पाँच>पचमेल, दाँत>दतुवन आदि)। ऐसा वे क्यों और कब करते हैं, इसके बारे में भाषामित्र योगेद्रनाथ मिश्र ही कुछ प्रकाश डाल सकते हैं।

ढक्कन की बात हुई तो एक ख़ास बर्तन की भी बात कर लेते हैं जिसमें सब्ज़ी आदि पकाई जाती है, पूड़ियाँ तली जाती हैं। उसे क्या कहते हैं – कड़ाही या कढ़ाही? जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएँ।

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