मुहताज या मोहताज? जब इस विषय पर फ़ेसबुक पर एक पोल किया गया तो तीन-चौथाई के भारी बहुमत ने मोहताज को सही बताया। मुहताज के समर्थक बाक़ी 25% रहे। सही क्या है और क्यों है, इसपर हम नीचे विस्तार से बात करेंगे लेकिन हम मुहताज और मोहताज के साथ ऐसे और शब्दों पर भी चर्चा करेंगे जिसमें ‘मु’ और ‘मो’ यानी ‘उ’ और ‘ओ’ दोनों रूप चलते हैं। यानी एक तीर से कई शिकार।
हम जानते हैं कि उर्दू में कई शब्द हैं जिनके ‘उ’ और ‘ओ’ दोनों मात्राओं के रूप चल रहे हैं और हमें जानना है कि
- इसका कारण क्या है।
- हम कैसे जानें कि कहाँ ‘उ’ होगा और कहाँ ‘ओ’।
आगे बढ़ने से पहले हम ऐसे कुछ शब्दों से वाक़िफ़ हो जाते हैं। इनमें से कुछ हैं –
- मुहब्बत/मोहब्बत
- मुहम्मद/मोहम्मद
- मुहताज/मोहताज
- मुहाजिर/मोहाजिर
- मुहलत/मोहलत
- मुग़लाई/मोग़लाई
ऐसा नहीं है कि केवल ‘म’ से शुरू होने वाले शब्दों में यह चक्कर है। मैंने अपने पत्रकारीय जीवन में ऐसे कई शब्द देखे हैं जिनमें मेरी उर्दू की जानकारी के हिसाब से u होना चाहिए लेकिन अंग्रेज़ी स्पेलिंग में o होता था। जैसे
- हुस्नी/होस्नी (Hosni Mubarak) मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति।
- आयतुल्ला/आयतोल्ला (Ayatollah Khomeini) ईरान के धार्मिक नेता।
- उमर/ओमर (Omar Abdullah) जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री।
ऊपर जो भी शब्द दिए गए हैं, उनमें से अधिकतर अरबी के हैं और जहाँ तक अरबी का सवाल है तो प्राचीन अरबी में ‘ए’ और ‘ओ’ के लिए कोई वर्ण ही नहीं था। सिर्फ़ छह स्वर थे और उनको व्यक्त करने वाली मात्राएँ थीं – अ (फ़तहा)), आ (अलिफ़), इ (कसरा), ई (या), उ (दम्मा) और ऊ (वाव)। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि मूल अरबी में इन शब्दों का ‘उ’ से ही उच्चारण होता होगा।
अब दूसरी बात। इन शब्दों में ‘उ’ की मात्रा ‘ओ’ में क्यों और कैसे बदली?
मेरे हिसाब से इसके दो कारण हो सकते हैं।
1. मात्राओं का अभाव
अरबी-फ़ारसी और उनसे निकली उर्दू में भी लिखते समय मात्राओं का इस्तेमाल अमूमन नहीं किया जाता। जैसे नीचे मैंने तीन शब्द उदाहरण के तौर पर दिखाए हैं – मोहताज, मुहाफ़िज़ और महब्बत। हिंदी में ये तीनों शब्द लिखने के लिए मोहताज में म के साथ ो की और मुहाफ़िज़ में म के साथ ु की मात्रा लगाई जाएगी जबकि महब्बत में कोई मात्रा नहीं लगाई जाएगी। लेकिन उर्दू में इन्हें लिखते समय मोहताज और मुहाफ़िज़ में ‘ो’ और ‘ु’ की मात्रा लगाने की कोई आवश्यकता महसूस नहीं की जाती।
मैंने ये तीनों शब्द प्लैट्स के शब्दकोश से कॉपी-पेस्ट किए हैं। आपमें से अधिकतर इन्हें पढ़ नहीं पाएँगे, लेकिन देख पा रहे होंगे कि तीनों शब्दों का आरंभिक रूप एक जैसा है – वह म (मीम) है लेकिन तीनों में से किसी में कोई मात्रा नहीं लगी है इसलिए सब एक जैसे दिख रहे हैं। हाँ, मोहताज में ‘ता’ और मुहाफ़िज़ में ‘हा’ के उच्चारण के लिए त और ह के साथ ा (अलिफ़) की मात्रा ज़रूर है। लेकिन मु, मो और फ़ि के मामलों में कोई मात्राएँ नहीं लगी हैं।
अब आप पूछेंगे कि जब मात्राएँ लिखी ही नहीं जातीं तो किसी को कैसे पता चलता होगा कि कहाँ ‘उ’ होगा, कहाँ ‘ओ’ या कहाँ कुछ भी नहीं। बात सही है। मैंने भी उर्दू जानने वाले कुछ मित्रों से यह सवाल किया। उनका जवाब यह है कि अंग्रेज़ी में जैसे हम P-U-T को पुट और B-U-T को बट बोलते हैं – उन्हें पट और बुट नहीं बोलते, वैसे ही जो सही उच्चारण जानते हैं, उन्हें इन शब्दों में कोई भ्रम नहीं होता चाहे उनमें कोई मात्रा लगी हो या नहीं।
मुझे बात में दम नज़र आया। याद आया कि आजकल सोशल मीडिया पर शब्दों को छोटा करके लिखने का चलन है – friend को frnd और great को gr8 लिखा जाता है लेकिन जो जानते हैं, वे समझ जाते हैं। उनको इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि इन शब्दों में कोई वावल नहीं है।
अंग्रेज़ी का एक और शब्द लेते हैं – MINUTE. इसके दो मतलब हैं और दो उच्चारण। मिनिट (मिनट) और माइन्यूट (सूक्ष्म)। जो इनका अर्थ नहीं जानते, वे भ्रमित हो सकते हैं कि किसी वाक्य में minute को मिनिट पढ़ा जाए या माइन्यूट। लेकिन जो जानते हैं, वे वाक्य और संदर्भ के हिसाब से समझ सकते हैं कि इसका वहाँ क्या अर्थ और उच्चारण होगा। मसलन wait a minute या minute particles में आप समझ सकते हैं कि कहाँ किसकी बात हो रही है।
लेकिन हर व्यक्ति इतना जानकार हो, यह ज़रूरी नहीं। संभव है कि मेरे जैसा कोई अनाड़ी कुछ शब्दों को नहीं समझे। बहुत समय तक मैं LOL का मतलब नहीं समझ पाया। मुझे बेटी से पूछना पड़ा। इसी तरह मुमकिन है कि जब अरबी के कुछ शब्द दूसरे देशों में गए हों तो वहाँ के निवासियों को इन लिखित शब्दों का सही उच्चारण समझ में नहीं आया हो और उन्होंने मात्राओं के अभाव में कुछ-का-कुछ समझ लिया हो और उनको वैसे ही बोलना शुरू कर दिया हो।
यानी हमारी पहली परिकल्पना यह कि अरबी भाषा में मात्राएँ न लिखी जाने के कारण अरब के बाहर जब लिखित रूप में ये शब्द गए तो लोगों ने कुछ-का-कुछ समझ लिया और इससे नए-नए रूप बने।
2. बोलने का अलग तरीक़ा
दूसरा संभावित कारण भाषा वैज्ञानिक है। हम जानते हैं कि अलग-अलग इलाक़े, जाति और नस्ल के लोग कुछ शब्दों का अलग तरह से उच्चारण करते हैं। ‘उ’ के ‘ओ’ में बदलने का भी संभवतः यही कारण है। ‘उ’ और ‘ओ’, ये दोनों ध्वनियाँ मुँह के पिछले हिस्से से निकलती हैं लेकिन ‘उ’ के मामले में मुँह काफ़ी हद तक बंद रहता है जबकि ‘ओ’ बोलते समय कम बंद। अब अगर बोलते समय मुँह कुछ ज़्यादा खुल जाए और जीभ का मूवमेंट थोड़ा इधर-उधर हो जाए तो ‘उ’ का ‘ओ’ हो सकता है। अरब के बाहर के कई देशों और इलाक़ों में ऐसा ही हुआ है।
मिसाल के तौर पर हम ईरान (फ़ारस) का मामला लेते हैं जहाँ की भाषा में ‘ए’ और ‘ओ’ की ध्वनियाँ पहले से थीं। जब इस्लाम के साथ अरबी के शब्द फ़ारसी में आए तो उनका भी रूप बदला। यह बदलाव कब हुआ, इसके बारे में फ़ारसी भाषा के जानकार बताते हैं कि 800 से 900 हिजरी के बीच फ़ारसी के कई शब्दों में ‘आ’ की ध्वनि ‘ऐ’ में, ’इ’ की ध्वनि ‘ए’ में और ‘उ’ की ध्वनि ‘ओ’ में बदल गई। मिसाल के तौर पर शाह का शैह, किताब का केताब और मुहलत को मोहलत हो गया। जिन शब्दों के उच्चारणों में अंतर आया, वे सारे के सारे बाहर के यानी अरबी के नहीं थे। फ़ारसी के अपने शब्दों में भी यह रूपांतर हुआ। नीचे के सारे शब्द फ़ारसी के अपने हैं और देखिए, इनमें कैसे ‘उ’ का ‘ओ’ हो गया है।
- कुह का कोह
- ख़ुदा को ख़ोदा
- चाबुक का चाबोक
- सुरमा का सोरमा
यानी हमारी दूसरी परिकल्पना यह कि ग़ैर-अरब देशों में बोलने के तरीक़ों में अंतर या बदलाव के कारण ‘उ’ वाले शब्द ‘ओ’ में बदल गए।
3. हिंदी में क्या बोलें और लिखें?
अब रहा हमारा मूल सवाल कि अगर अरबी का मुहताज फ़ारसी में मोहताज हो गया तो हमें हिंदी में क्या बोलना-लिखना चाहिए!
बात केवल मुहताज की नहीं है, ऐसे और सभी शब्दों की है जिनमें ‘उ’ और ‘ओ’ के तौर पर दो विकल्प मौजूद हैं। मुहम्मद या मोहम्मद? मुहलत या मोहलत? मुहब्बत या मोहब्बत?
मैंने बहुत सोचा-विचारा कि इसके बारे में कोई राय दूँ। लेकिन ख़ुद को इस मामले में अयोग्य पाता हूँ। इसलिए यह आप पर ही छोड़ता हूँ। आप जो रूप पसंद करें, उसका इस्तेमाल करें। वैसे अपनी बात कहूँ तो मैं ‘उ’ वाले रूप इस्तेमाल करना चाहूँगा – मुहताज, मुहम्मद, मुहलत, मुहब्बत…
वैसे आपको बताऊँ, ‘मद्दाह’ के शब्दकोश के अनुसार मुहब्बत भी पूरा सही नहीं है। सही है महब्बत।
जाते-जाते मैं यह स्पष्ट करना चाहूँगा कि ऐसा नहीं है कि आधुनिक अरबी-फ़ारसी या उर्दू में अलग-अलग स्वरों को दर्शाने के लिए मात्राएँ नहीं हैं। वे हैं। हर स्वर के लिए अलग-अलग चिह्न है। क़ुरआन में तो ये सारे चिह्न इस्तेमाल भी किए जाते हैं ताकि कोई नादानी में आयतों का अशुद्ध उच्चारण न कर बैठे। लेकिन बाक़ी मामलों में उनकी उपेक्षा की जाती है यानी उनका इस्तेमाल नहीं किया जाता।