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47. इस रहस्यमय जगत में ‘रहस्यमयी’ कुछ भी नहीं

रहस्यमय कथा या रहस्यमयी कथा? आप कहेंगे, रहस्यमयी कथा क्योंकि कथा स्त्रीलिंग है। अगर उपन्यास होता तो होता रहस्यमय उपन्यास। वैसे ही जैसे लड़का के साथ अच्छा और लड़की के साथ अच्छी लगता है! सही कह रहे हैं आप। लेकिन आपने एक बात मिस कर दी। अच्छा के अंत में ‘आ’ की मात्रा है, रहस्यमय के अंत में ‘अ’ है। क्या आपने सुंदरी लड़की कभी सुना है?

जब मैंने फ़ेसबुक पर एक पोल में पूछा कि रहस्यमय कथा लिखना सही है या रहस्यमयी कथा तो एक-तिहाई यानी 34% ने कहा – रहस्यमय जबकि दो-तिहाई यानी 66% ने कहा – रहस्यमयी। बहुमत इस बार फिर ग़लत साबित हुआ क्योंकि सही है रहस्यमय। कारण हम नीचे समझेंगे लेकिन उससे पहले यह जानने की कोशिश करेंगे कि इतना बड़ा तबक़ा रहस्यमयी का इस्तेमाल आख़िर क्या सोचकर कर रहा है।

मेरी समझ से इसके दो मुख्य कारण हैं। यदि कोई तीसरा या चौथा कारण हो तो आप नीचे कॉमेंट में लिखकर बताएँ, मेरा ज्ञानवर्धन होगा।

रहस्यमयी का (विशेषण के तौर पर) इस्तेमाल दो तरह के लोग करते हैं। पहले वे जो समझते हैं कि पुल्लिंग में रहस्यमय होगा और स्त्रीलिंग में रहस्यमयी। जैसे रहस्यमय पर्वत और रहस्यमयी नदी (देखें चित्र)।

इन्हें लगता है कि जैसे ‘अच्छा’ लड़का, ‘अच्छी’ लड़की होता है, वैसे ही पुल्लिंग में ‘रहस्यमय’, स्त्रीलिंग में ‘रहस्यमयी’। लेकिन यहाँ ध्यान में रखना है कि ‘अच्छा-अच्छी’ वाला नियम केवल आकारांत (‘आ’ की मात्रा से अंत होने वाले) विशेषणों में होता है, अकारांत में नहीं। मसलन लंबा-लंबी, चौड़ा-चौड़ी, दाहिना-दाहिनी, दुबला-दुबली आदि। मगर रहस्यमय के अंत में ‘आ’ नहीं, ‘अ’ (य) है यानी वह अकारांत है।

दूसरी तरह के लोग वे हैं जो दोनों ही मामलों में रहस्यमयी लिखते हैं। रहस्यमयी बंगला, रहस्यमयी दुनिया, रहस्यमयी आवाज़ें, रहस्यमयी व्यक्तित्व, रहस्यमयी पत्थर (देखें चित्र)।

मेरी समझ से इनके ज़ेहन में जंगली जानवर, पापी इंसान, दोषी मनुष्य, सुखी परिवार जैसे उदाहरण रहते होंगे। जैसे जंगल से जंगली बना, पाप से पापी बना, दोष से दोषी बना, सुख से सुखी बना तो ऐसे लोगों को शायद लगता है कि रहस्यमय से रहस्यमयी बनता होगा। लेकिन यहाँ एक पेच जिसको वे मिस कर जाते हैं।

जंगल से जंगली और सुख से सुखी बने और सही बने क्योंकि जंगल और सुख संज्ञाएँ हैं और अकारांत संज्ञा में ‘ई’ की मात्रा लगाने से विशेषण बनाना नियमानुसार ही है। लेकिन रहस्यमय तो संज्ञा नहीं है, विशेषण है। विशेषण से विशेषण कैसे बनेगा? क्या सुंदर से सुंदरी बनेगा? क्या शुभ से शुभी बनेगा?

सुंदर और शुभ की ही तरह रहस्यमय एक अकारांत विशेषण है; और अकारांत विशेषण हमेशा एक जैसे रहते हैं – स्त्रीलिंग या पुल्लिंग के अनुसार उनमें कोई बदलाव नहीं होता। क्या हम कभी लिखते हैं सुंदरी लड़की, सुंदरी तस्वीर? नहीं, हम सुंदर लड़की, सुंदर तस्वीर ही लिखते हैं। इसी तरह क्या हम शुभी दिवाली या शुभी होली कभी लिखते हैं? नहीं, हम शुभ दिवाली और शुभ होली ही लिखते हैं। सुंदर और शुभ की तरह रहस्यमय भी हमेशा रहस्यमय ही रहेगा चाहे उसके बाद कोई स्त्रीलिंग शब्द हो या पुल्लिंग, जैसा कि आप नीचे चित्र में लिखा देख सकते हैं (रहस्यमय स्थान, रहस्यमय नदी)।

रहस्यमय से मिलता-जुलता एक और शब्द है जिसमें इसी तरह की ग़लती कुछ लोग करते हैं। वह है – निर्दय जिसे लोग निर्दयी कर देते हैं। निर्दय भी विशेषण के तौर पर हमेशा निर्दय ही रहेगा – निर्दय (न कि निर्दयी) समाज, निर्दय (न कि निर्दयी) प्रशासन। क्यों? क्योंकि सुंदर, शुभ और रहस्यमय की तरह यह भी अकारांत विशेषण है जो दोनों लिंगों में एक जैसा रहता है।

लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि रहस्यमयी और निर्दयी कोई शब्द ही नहीं होते। होते हैं मगर उनका इस्तेमाल विशेषण के तौर पर नहीं, संज्ञा के तौर पर होता है। जैसे एक वाक्य देखें – राजकुमार ने कहा, ‘हे रहस्यमयी, तुम कहाँ से आई हो?’। यहाँ रहस्यमयी का अर्थ है रहस्य में लिपटी एक स्त्री। यहाँ कोई स्त्री है जिसको रहस्यमयी कहकर संबोधित किया जा रहा है। ‘रहस्यमयी’ के बाद कोई और संज्ञा नहीं है। इसलिए यहाँ रहस्यमयी का संज्ञा के तौर पर प्रयोग सही है। इसी तरह दुर्गा को करुणामयी भी कहते हैं।

इसी तरह कोई कहे – ‘ओ निर्दयी, क्या मेरे आँसू देखकर भी तेरा मन नहीं पिघलता!’ तो यह भी सही है। यहाँ ‘निर्दयी’ ईश्वर के लिए आया है और आप देख रहे होंगे कि निर्दयी के बाद कोई संज्ञा नहीं है।

यानी आज का सबक़ यह कि अकारांत विशेषणों में लिंग के आधार पर कोई परिवर्तन नहीं होता इसलिए रहस्यमय रहस्यमय ही रहेगा, रहस्यमयी नहीं होगा चाहे उसके बाद की संज्ञा पुल्लिंग हो या स्त्रीलिंग। इस नियम के चार उदाहरण ऊपर दिए गए हैं – सुंदर, शुभ, रहस्यमय और निर्दय। कुछ और उदाहरण आप भी सोचिए और उनपर यह नियम आज़माइए। यदि कोई अपवाद मिले तो बताइए। ज़रूरी हुआ तो इस नियम पर फिर विचार करेंगे।

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