विद्वता सही है या विद्वत्ता? इसपर मैंने दो अलग-अलग समय में अलग-अलग मंचों पर पोल किया और दोनों का नतीजा तक़रीबन एक जैसा निकला। सवाल था कि विद्व के बाद त् की ध्वनि एक बार है (विद्वता) या दो बार (विद्वत्ता)। जुलाई 19 में किए गए पोल में 66% ने विद्वता को सही बताया तो सितंबर 21 में किए गए पोल में 62% ने। इसी तरह पहले पोल में 34% ने विद्वत्ता को सही बताया था तो ताज़ा पोल में 38% ने। सही क्या और क्यों है, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।
विद्वता और विद्वत्ता में सही है विद्वत्ता। यानी विद्व के बाद त् की ध्वनि दो बार। क्यों, यह नीचे समझते हैं।
विद्वत्ता इसलिए सही है कि संस्कृत का शब्द है विद्वत् जिसमें -त्व या -ता लगाकर भाववाचक संज्ञा बनती है। -त्व लगा तो विद्वत्त्व (विद्वत्+त्व) हो गया, -ता लगाया तो विद्वत्ता (विद्वत्+ता) हो गया। यह उसी तरह से है जैसे महत् में -त्व लगाया तो महत्त्व (महत्+त्व) और -ता लगाया तो महत्ता (महत्+ता) हो गया। महत्ता को कोई महता नहीं बोलता लेकिन विद्वत्ता को अधिकतर लोग विद्वता कहते हैं जैसा कि हमारे दोनों पोलों से भी ज़ाहिर हुआ।
कारण यह है कि कौनसा शब्द कैसे बना है, इसकी जानकारी अकसर हमें नहीं होती। हमने विद्वान शब्द सुना होता है जिसमें त् कहीं नहीं है। इसीलिए जब भाववाचक संज्ञा बनाते हैं तो विद्व में -ता लगाकर विद्वता बना देते हैं जैसे शुद्ध में -ता लगाकर शुद्धता बना देते हैं, पवित्र में -ता लगाकर पवित्रता बना देते हैं।
अब सवाल यह है कि आख़िर हमें कैसे पता चले कि शब्द विद्व नहीं, विद्वत् है – हर व्यक्ति तो संस्कृत का पंडित नहीं हो सकता। मगर इसके लिए संस्कृत या अरबी-फ़ारसी का पंडित होना क़तई ज़रूरी नहीं है। करना बस यह है कि जो भी शब्द हम पढ़ते-लिखते हैं, उनपर रुककर ग़ौर किया जाए। मैं भी संस्कृत का पंडित नहीं हूँ लेकिन मुझे विद्वत् शब्द की जानकारी थी क्योंकि विद्वत् परिषद या विद्वज्जन (विद्वत्+जन=विद्वज्जन) जैसे शब्द मेरी नज़रों से गुज़र चुके थे और वे मेरी स्मृति में थे। वैसे एक बात बताऊँ, संस्कृत का ऑनलाइन शब्दकोश में विद्वस् है। विद्वस् की एंट्री में लिखे हुए को जितना मैं समझ पाया, उसके अनुसार विद्वस का ही संज्ञारूप है विद्वत् (देखें चित्र)।
कुछ साथी जो लगातार मेरे साथ जुड़े हुए हैं, वे आज के पोस्ट में मुझे ‘महत्त्व’ लिखते देख सवाल कर सकते हैं कि मैंने अपने ‘तत्वाधान या तत्वावधान‘ वाली चर्चा में ‘महत्व’ लिखने का समर्थन किया था और आज यहाँ ‘महत्त्व’ लिख रहा हूँ।
मुझे याद है, ’तत्वावधान’ और ‘तत्वाधान’ पर हुए पोल के दौरान एक सज्जन ने तत्वावधान (तत्+वावधान) को ग़लत बताते हुए कहा था कि तत्त्वावधान (तत्+त्वावधान) होना चाहिए। इसी सिलसिले में महत्त्व शब्द पर भी बात हुई। मैंने उस पोस्ट में शब्दकोश के हवाले से महत्व का पक्ष लिया था। आज भी विद्वत्त्व और महत्त्व के मामले में मैं महत्व और विद्वत्व के पक्ष में हूँ। ऊपर मैंने महत्त्व और विद्वत्त्व इसलिए लिखा ताकि आपको पता रहे कि ये शब्द किससे बने हैं।
लेकिन यह सवाल जायज़ है कि जब मैं विद्वत्ता को सही बता रहा हूँ क्योंकि वह विद्वत् के साथ -ता जुड़ने से बना है तो महत्त्व को भी सही बताना चाहिए क्योंकि वह भी महत् के साथ -त्व जुड़ने से बना है।
इसका जवाब यह है कि हम चाहे विद्वत्त्व लिखें या और विद्वत्व, उच्चारण में कोई अंतर नहीं दिखता लेकिन विद्वता और विद्वत्ता बोलने में अंतर दिखता है। इसी तरह महत्त्व और महत्व के उच्चारण में अंतर नहीं दिखता लेकिन महता और महत्ता में अंतर दिखता है।
इसी कारण हिंदी के जाने-माने शब्दकोश भी महत्व और विद्वत्व में सिंगल ‘त’ और विद्वत्ता और महत्ता में डबल ‘त’ अपनाने का सुझाव देते हैं (देखें चित्र)।
बाक़ी जो महत्त्व और विद्वत्त्व लिखते हैं, वे भी अपने जगह पर पूरी तरह सही हैं और मेरी उनसे कोई बहस नहीं है।
ऊपर मैंने तत्वावधान और तत्वाधान का उल्लेख किया। इन दोनों में सही क्या है, यदि आपके मन में इसके बारे में कोई संदेह हो तो नीचे दिए गए लिंक पर पढ़कर उसे दूर कर सकते हैं –