सही क्या है – निबटना या निपटना? जब इसके बारे में एक फ़ेसबुक पोल किया गया तो आधे से अधिक यानी 54% ने निपटना को सही बताया जबकि 17% ने निबटना को। शेष 29% के अनुसार दोनों शब्द सही हैं। क्या बहुमत सही है? जानने के लिए पढ़ें आज की शब्दचर्चा।
निबटना और निपटना – ये दोनों शब्द हिंदी में चल रहे हैं। कुछ लोग निबटना को सही मानते हैं, कुछ निपटना को। कुछ दोनों को सही मानते हैं। ऐसे में यदि सही-ग़लत का निर्णय करना हो तो हमारे पास दो ही रास्ते हैं। एक प्रामाणिक शब्दकोशों का कि वे किसे सही बताते हैं। दूसरा प्रचलन का कि प्रचलन में कौनसा शब्द अधिक है।
जहाँ तक प्रचलन की बात है तो हमारे पोल के हिसाब से निपटना को ही सही माना जाना चाहिए क्योंकि आधे से अधिक लोगों ने उसके पक्ष में वोट दिया है। लेकिन क्या शब्दकोश भी इस राय से सहमत हैं?
नहीं। कोई भी शब्दकोश इन दोनों में से किसी एक को सही और दूसरे को ग़लत नहीं ठहराता। लेकिन प्राथमिकता के मामले में शब्दकोश बँटे हुए हैं। कुछ निबटना को प्राथमिकता देते हैं, कुछ निपटना को। हालाँकि एक मामले में इन सभी में एकता है कि वे इन दोनों शब्दों को अपने-अपने कोशों में जगह देते हैं।
जब किसी कोश में एक ही शब्द के दो या तीन रूप मौजूद हों तो उसका मतलब यह हुआ कि कोशकार मानता है कि इस शब्द के दोनों ही रूप चल रहे हैं लेकिन वह अकसर उनमें से किसी एक को प्रमुखता देता है।
प्रमुखता से आशय यह है कि दोनों में से किसी एक की एंट्री में शब्द का अर्थ बताया जाता है और दूसरे की एंट्री में उस पहली एंट्री की तरफ़ इशारा किया जाता है कि वहाँ जाएँ। मसलन शब्दसागर और ज्ञानकोश में निबटना की एंट्री में शब्दार्थ दिया हुआ है और निपटना की एंट्री में लिखा हुआ है – देखें निबटना। इसके विपरीत राजपाल के कोश में निपटना की एंट्री में शब्दार्थ दिया हुआ है और निबटना की एंट्री में लिखा हुआ है – देखें निपटना (देखें चित्र)।
शब्दसागर और ज्ञानकोश पुराने शब्दकोश हैं और राजपाल का नया। इन दोनों कोशों में अलग-अलग शब्द को प्रमुखता दिए जाने से यह पता चलता है कि पहले निबटना अधिक चलता होगा और आजकल निपटना अधिक चल रहा है। हमारे पोल का परिणाम भी यही ज़ाहिर करता है।
लेकिन पहले कौन बना – निबटना या निपटना? इसका जवाब हमें शब्दसागर में मिलता है।
हिंदी शब्दसागर के अनुसार यह बना है संस्कृत के निवर्त्तन से। निवर्त्तन से प्राकृत में हुआ निवट्टना और उससे हिंदी में हुआ निबटना (देखें चित्र)।
इसका मतलब यह हुआ कि हिंदी के हिसाब से मूल शब्द है निबटना। निबटना से ही बना है निपटना।
यदि आपकी यह जानने में रुचि हो कि निपटना से निपटना कैसे बना होगा तभी आगे पढ़ें वरना आज की चर्चा को यहीं समाप्त समझें। कारण, आगे की चर्चा कुछ लोगों के लिए उपयोगी हो सकती है लेकिन कई लोगों के लिए निरर्थक और बोझिल भी हो सकती हैं।
निबटना से निपटना क्यों बना, इसका विस्तृत और तार्किक जवाब कोई भाषा वैज्ञानिक ही दे सकता है। परंतु कुछ उदाहरणों से हम इस प्रक्रिया को यहाँ भी समझने की कोशिश कर सकते हैं।
आप जानते होंगे कि शब्दों के रूप में हम जिन ध्वनियों का उच्चारण करते हैं, उन सबकी प्रकृति एक जैसी नहीं होती। किसी के बोलने पर हमारी स्वर तंत्रियाँ काँपती हैं, किसी में नहीं काँपतीं। किसी के बोलने पर हवा रुकती है, किसी के बोलने पर हवा नहीं रुकती। किसी के बोलने पर हवा कम निकलती है, किसी के बोलने पर हवा अधिक निकलती है। हर ध्वनि के उच्चारण में जीभ और होंठों की भूमिका भी अलग-अलग होती है।
इन्हीं आधारों पर ध्वनियों यानी व्यंजनों का वर्गीकरण भी किया गया है। इनमें एक वर्गीकरण है – घोष और अघोष का। घोष ध्वनियाँ वे होती हैं जिनको बोलने पर हमारे गले में मौजूद स्वरतंत्रियाँ काँपती हैं। अघोष ध्वनियाँ वे होती हैं जिनको बोलने पर हमारे गले में मौजूद स्वरतंत्रियाँ नहीं काँपतीं।
- सारे स्वर, हर वर्ग के अंतिम तीन व्यंजन और य, र, ल, व और ह – ये घोष ध्वनियाँ हैं।
- हर वर्ग के पहली दो ध्वनियाँ और श, ष, स – ये अघोष ध्वनियाँ हैं।
इन अघोष और घोष ध्वनियों के संयोग से ही शब्दों की रचना होती है। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि जब दो विपरीत प्रकृति की ध्वनियाँ आसपास आ जाती हैं तो बोलने के दौरान एक ध्वनि दूसरे को प्रभावित करती है। जैसे अघोष ध्वनि के पास घोष ध्वनि हो तो दोनों एक-दूसरे को अपने रंग में रंगने की कोशिश करती हैं। कभी कोई सफल होती हैं, कभी कोई। कभी कोई भी नहीं होती और दोनों अपने मूल रूप में रहती हैं।
जैसे भक्त को लीजिए। भक्त में पहली (भ) ध्वनि घोष है जबकि दूसरी (क्) और तीसरी (त) ध्वनियाँ अघोष। लेकिन पहली ध्वनि ने दूसरी (स्वरमुक्त) ध्वनि क् को घोष कर दिया। वह बन गई ग और शब्द का नया रूप बना भगत। यही प्रकट के साथ हुआ। प्रकट में अघोष (प्), घोष (र), अघोष (क), अघोष (ट) का क्रम है। यहाँ भी दूसरी ध्वनि र (घोष) ने तीसरी ध्वनि क (अघोष) को घोष कर दिया और वह बन गया ग। प्रकट से प्रगट।
लेकिन ऐसा नहीं है कि घोष ध्वनियाँ ही अघोष ध्वनि को प्रभावित करती हैं और उन्हें घोष बना देती हैं। निबटना में इसका ठीक उलटा हुआ है। निबटना में ध्वनियों का क्रम इस प्रकार है – न-ब-ट-न यानी घोष-घोष-अघोष-घोष। यहाँ तीसरी ध्वनि ट (अघोष) ने दूसरी ध्वनि ब (घोष) को प्रभावित किया और उसे अघोष (प) बना डाला। नया शब्द बना निपटना।
ऐसे और भी शब्द हैं जहाँ हम इस तरह का घोष परिवर्तन देखते हैं। कंकण का कंगन, मकर का मगर आदि।
अंग्रेज़ी में भी इस घोष परिवर्तन के चलते ड के ट होने की रोचक मिसालें हैं हालाँकि वहाँ केवल उच्चारण बदलता है, स्पेलिंग नहीं बदलती। मसलन हम भारतीय Missed को मिस्ड कहते हैं लेकिन इसका सही उच्चारण है – मिस्ट। चूँकि स् अघोष (voiceless) है सो उसने ड (घोष/voiced) को अघोष कर डाला। हो गया मिस्ट।
क, च, थ, प, फ़, श, स (याद रखने का तरीक़ा – कैश पचास काफ़ी था) – इन सात ध्वनियों (सारी अघोष) के बाद जब D (ड) आता है तो वह ट हो जाता है। कुछ उदाहरण देखें।
- Booked=बुक्ट, Parked=पार्क्ट
- Reached=रीच्ट, Snatched=स्नैच्ट
- Topped=टॉप्ट, Jumped=जंप्ट
- Laughed=लाफ़्ट, Stuffed=स्टफ़्ट
- Pushed=पुश्ट, Finished=फ़िनिश्ट
- Missed=मिस्ट, Passed=पास्ट
- Toothed=टूथ्ट
इन सबमें ड का घोष उच्चारण ट के अघोष उच्चारण में बदल गया। लेकिन जैसा कि ऊपर लिखा, शब्द की स्पेलिंग नहीं बदली। लेकिन एक ऐसा उदाहरण भी है जहाँ उच्चारण के साथ शब्द की स्पेलिंग भी बदली।
वह शब्द है Sugar (शुग्अ/शुगर)। Sugar के अर्थ वाले और उससे मिलते-जुलते कई रूप हमें अन्य भाषाओं में मिलते हैं – फ़्रेंच (Sucre), इतालवी (Zucchero), लैटिन (Succarum), अरबी (सुक्कर), फ़ारसी (शकर) और संस्कृत (शर्करा)। इन सभी में बीच में क है लेकिन अंग्रेज़ी में ग हो गया और स्पेलिंग भी बदल गई।
चलिए, फिर से अपने मूल प्रश्न पर आते हैं। आज की चर्चा का निष्कर्ष यही कि निबटना मूल शब्द है। उसी से निपटना बना है। दोनों शब्द प्रचलन में हैं और दोनों ही सही हैं। आप जो चाहें इस्तेमाल कर सकते हैं।
अंग्रेज़ी में कब D का उच्चारण ट हो जाता है, इसके बारे में विस्तार से जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक या टैप करें।
2 replies on “263. निबटना या निपटना, सही क्या और क्यों?”
नमस्कार श्रीमान जी , आपकी सभी पोस्ट अत्यंत ज्ञानवर्धक होती हैं इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ,
मेरा एक प्रश्न है – ना पावना प्रमाण पत्र एवं अदेयता प्रमाण पत्र में क्या अंतर है?
कृपया अनुरोध है की ज्ञानवर्धन करने की कृपा करें .
नमस्ते। मेरी समझ से दोनों का एक ही अर्थ है। ये दोनों No Dues Certificate के हिंदी पर्याय हैं। ना पावना का अर्थ है इस सज्जन से मेरा कोई पावना नहीं है। अदेयता का भी वही अर्थ है कि इस सज्जन की तरफ़ से कोई रक़म देय नहीं है। ना पावना प्रमाणपत्र का प्रयोग मुझे नेट पर नहीं मिला।