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139. गुणों में है जो चरम, वह परम् है या परम?

परमेश्वर, परमात्मा, परमार्थ, परमाणु आदि में जो शुरुआती शब्द है, वह क्या है – परम या परम्। आप कहेंगे, इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है। सही है, परमेश्वर या परमात्मा में तो कोई अंतर नहीं पड़ेगा लेकिन जब आप पूज्य या पिता से पहले यह शब्द लगाएँगे तो आपको तय करना होगा कि परम् लिखें या परम। जब मैंने फ़ेसबुक पर यही सवाल किया तो पता चला कि मामला बराबर का है। तक़रीबन आधे परम् को सही बताते हैं, आधे परम को। अब सही क्या है, जानना है तो आगे पढ़ें।

परम् और परम पर जब मैंने #शब्दपोल 139 करने का इरादा किया था तो मुझे पता था कि परम् को सही बताने वाले कई लोग होंगे। मगर उनका बहुमत होगा, इसका अंदाज़ा मुझे नहीं था।

यह पोल मैंने तीन मंचों पर किया था। हिंदी कविता सहित दो मंचों पर नतीजा क़रीब-क़रीब एक जैसा आया। 53% ने परम् को सही बताया था, 47% ने परम को (देखें चित्र)। एक तीसरे मंच पर नतीजा बिल्कुल उलटा था – 25% बनाम 75% यानी वहाँ परम के समर्थक बहुत अधिक थे। लेकिन वहाँ वोट बहुत ही कम पड़े थे। अगर ज़्यादा वोट पड़ते तो वहाँ भी संभवतः यही परिणाम आता जो हिंदी कविता पर आया है।

सही है परम, यह मैं केवल शब्दकोशों के आधार पर कह सकता हूँ (देखें चित्र) क्योंकि संस्कृत के बारे में मेरी जानकारी शून्य ही समझिए। हाँ, हिंदी का विद्यार्थी रहा हूँ सो जानता हूँ कि परमेश्वर शब्द परम और ईश्वर (अ+ई=ए)  की संधि से ही बन सकता है। अगर शब्द परम् होता तो परम् और ईश्वर मिलकर परमीश्वर होता जैसे अन् और ईश्वर मिलकर अनीश्वर होता है।

इसी परम से परमात्मा (परम+आत्मा), परमाणु (परम+अणु), परमार्थ (परम+अर्थ) और परम गति, परम प्रिय, परम पिता आदि बने हैं। 

और इसी से बना है परमब्रह्म। मुझे नहीं मालूम ‘परमब्रह्म’ और ‘परब्रह्म’ एक ही हैं या अलग-अलग। पहली दृष्टि में दोनों समानार्थी दिखते हैं मगर परब्रह्म कैसे बना है, यह मैं समझ नहीं पाया। आपको याद होगा कि ‘गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः’ वाली स्तुति में ‘परब्रह्म’ का उपयोग हुआ है।

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः, गुरुः साक्षात्‌ परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

परम् और परम पर खोजबीन के दौरान मैंने पता करने की कोशिश की कि क्या परम् भी कोई शब्द या उपसर्ग है। दो शब्द मिले। एक तो था परंपर/परंपरा जिससे हम सब परिचित हैं। इसका मतलब दिया हुआ है एक-के-बाद-एक निरंतर चलने वाली शृंखला। मगर एक और शब्द मिला परंतप (देखें चित्र) जिसका प्रयोग भगवद्गीता में भी हुआ है।

आप्टे के संस्कृत कोश के अनुसार परंतप (उच्चारण – परन्तप्अ) का अर्थ है – दूसरों (शत्रुओं) को संताप (कष्ट) देने वाला, विजेता । लेकिन इंटरनेट पर कहीं-कहीं इसका एक और अर्थ भी है – तप द्वारा अपनी इंद्रियों को वश में करने वाला। मुझे नहीं पता क्या परंतप से ऐसा अर्थ निकलता है। संस्कृत के जानकार ही बता पाएँगे।

परम् और परम की तरह लोगों को शत् और शत पर भी भ्रम हो जाता है। इन दोनों में क्या सही है, इसपर पहले चर्चा की थी। रुचि हो तो पढ़ सकते हैं। लिंक आगे दिया हुआ है।

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