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228. सपत्नी का अर्थ पत्नी के संग या किसी की सौतन?

किसी को ‘परिवार के साथ’ आमंत्रित करना हो तो हम कहते हैं – ‘परिवार आएँ’। इसी तरह किसी को ‘पत्नी के साथ’ बुलाना हो तो क्या कहेंगे? ‘पत्नी’ आएँ? नहीं, ऐसा न करें क्योंकि शब्दकोशों के अनुसार ‘सपत्नी‘ का मतलब है सौत। यह मतलब किसी भी पत्नी को दुखी कर सकता है। ऐसे में किसी को ‘पत्नी के साथ’ बुलाना हो तो किस शब्द का प्रयोग किया जाएगा, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।

‘सपरिवार’ का मतलब परिवार के साथ, ‘सकुटुंब’ का अर्थ कुटुंब के साथ, ‘सदलबल’ के मायने दल-बल के साथ। लेकिन ‘सपत्नी’ का अर्थ ‘पत्नी के साथ’ नहीं, कुछ और होता है। क्या होता है, यह हम अंत में जानेंगे।

ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि किसी पुरुष को उसकी ‘पत्नी के साथ’ आमंत्रित करना हो तो क्या कहेंगे। संस्कृत और हिंदी शब्दकोशों के अनुसार इसके लिए सही शब्द है – सपत्नीक आएँ।

हिंदी शब्दसागर में ‘सपत्नीक’ का अर्थ।

यह ‘सपत्नीक’ ‘सपत्नी’ से ही बना है। अंतर बस यह हुआ है कि ‘सपत्नी’ के बाद एक ‘क’ लग गया है। क्यों लग गया है, यह समझने के दो तरीक़े हैं। पहला है हिंदी का आसान तरीक़ा जो उनके लिए है जिन्हें संस्कृत के नियमों की बेसिक जानकारी भी नहीं है। दूसरा है संस्कृत का कठिन तरीक़ा जो उनके लिए है जिन्हें संस्कृत के नियमों की कुछ-कुछ जानकारी है।

आसान तरीक़े से समझने के लिए कामताप्रसाद गुरु की शरण में जाते हैं जो अपने ग्रंथ ‘हिंदी व्याकरण’ में बहुब्रीहि समास के मामले में कुछ नियम समझाते हैं। इनमें से ये दो हमारे काम के हैं।

  1. सह और समान के स्थान में प्रायः ‘’ आता है। जैसे सादर, सविनय, सवर्ण, सजात, सरूप।
  2. किसी-किसी समास के अंत में ‘’ जोड़ दिया जाता है। जैसे सपत्नीक, शिक्षाविषयक, अल्पवयस्क, ईश्वरकर्तृक, सकर्मक, अकर्मक, निरर्थक।
  • पहला नियम वही बात कहता है जो हममें से कई लोग पहले से जानते हैं कि संस्कृत के शब्दों में जब ‘’ उपसर्ग आता है तो उसका मतलब ‘समान’ भी होता है और ‘साथ’ भी। यहाँ हम ‘पत्नी के साथ’ की बात कर रहे हैं, इसलिए ‘सपत्नी’ का अर्थ होगा ‘पत्नी के साथ’।
  • लेकिन दूसरा नियम कहता है कि कभी-कभी इस समास के अंत में ‘’ प्रत्यय जुड़ जाता है। इस सिलसिले में वह जो उदाहरण देते हैं, उनमें पहला उदाहरण ‘सपत्नीक’ का है (देखें चित्र)।

निष्कर्ष यह कि ‘पत्नी के साथ’ के अर्थ में पहले ‘सपत्नी’ ही बनता है मगर किसी ख़ास कारण से उसके अंत में ‘क’ लग जाता है और वह बन जाता है ‘सपत्नीक’।

दूसरे नियम को समझने के लिए हम गुरु जी के ही दिए एक अन्य उदाहरण पर विचार करते हैं। वह उदाहरण है – ‘अल्पवयस्क’ जिसका मतलब है वह, जिसकी उम्र कम हो। मेरी समझ से यह शब्द भी पहले ‘अल्प’ और ‘वयस्’ से ही बना होगा – अल्पवयस्। मगर बाद में ‘क’ जुड़ गया। हो गया ‘अल्पवयस्क’। आज की तारीख़ में हम कम उम्र वाले के लिए ‘अल्पवयस्क’ विशेषण का ही प्रयोग करते हैं, ‘अल्पवयस्’ का नहीं। इसी तरह से पत्नी के साथ के लिए ‘सपत्नीक’ का प्रयोग मान्य हैं, ‘सपत्नी’ का नहीं।

अब यह ‘क’ प्रत्यय क्यों किसी बहुब्रीहि समास में लगता है, इसका जवाब हमें गुरु जी नहीं देते। कारण, उनको नहीं लगा होगा कि हिंदी व्याकरण सीखने वालों के लिए यह जानना आवश्यक है।

लेकिन आपमें ऐसे कई लोग होंगे जो जानना चाहते होंगे कि अच्छे-भले ‘सपत्नी’ शब्द के बाद ‘क’ लगाने की ज़रूरत क्यों पड़ी। सो मैंने संस्कृत के जानकारों के एक समूह में यह सवाल पूछ लिया। प्रश्न का जवाब देते है डॉ. आर. एन शुक्ल ने बताया कि बहुब्रीहि समास के अंत में उरसादि, इन्, इकार, उकार, ऋकार या स्त्रीलिंग इकार, उकारादि होने पर ‘कप्’ प्रत्यय होता है (देखें चित्र)। इसमें आए ‘कप्’ प्रत्यय से विचलित न हों। इसका अर्थ ‘क’ ही समझें।

डॉ. शुक्ल ने हमें बताया कि बहुब्रीहि समास में अंत में ‘क’ कब जुड़ता है। जब मैंने उनसे कुछ और उदाहरण चाहे तो उन्होंने ये चार उदाहरण दिए।

  • व्यूढोरस्कः (चौड़ी छाती वाला) व्यूढं उरो यस्य सः (विशाल है छाती जिसकी) व्यूढ+उरस्+कप् (क) = व्यूढोरस्क।
  • प्रियसर्पिष्कः – प्रियं सर्पिः (घृतं) यस्य सः (घी है प्रिय जिसको) प्रियसर्पिस्(ष्)+कप् = प्रियसर्पिष्कः।
  • सुश्रीका – सु शोभना श्रीः शोभा यस्याः सा सुश्रीका।
  • सुपत्रकः – सुष्ठु पत्रं अस्य सुपत्र+कप्=सुपत्रक = सहिंजन।

मैं तो संस्कृत के मामले में सिफ़र हूँ इसलिए बहुत कम ही समझ पाया। हाँ, इतना पता चला कि क (कप्) प्रत्यय लगाकर संस्कृत में ‘सपत्नीक’ की तरह और भी बहुत सारे शब्द बनते हैं। कुछ उदाहरण गुरु जी की लिस्ट में भी आप देख सकते हैं।

अब आती है बारी एक रोचक जानकारी देने की।

जानकारी यह कि शब्दकोशों के अनुसार ‘सपत्नी’ का अर्थ है सौत। कारण यह कि ‘स’ का मतलब ‘साथ’ के अलावा ‘समान’ भी होता है जैसा कि गुरु जी ने बहुब्रीहि समास से जुड़े पहले विशेष नियम के सिलसिले में बताया है (देखें चित्र)।

हिंदी शब्दसागर में ‘सपत्नी’ का अर्थ।

सो सपत्नी का मतलब हुआ जिसका पति समान हो यानी सौत। हिंदी का सौत इसी सपत्नी से बना है।

शुक्ल जी ने ‘सपत्नी’ की व्युत्पत्ति को इस तरह समझाया –

  • सपत्नी – समानः=एकः एव पतिः यस्याः सा (बहु०स०) ङीप् न आदेश सपत्नी (शब्दभेद की दृष्टि से संज्ञा शब्द)=सहपत्नी, सौतन।

‘सपत्नी’ और ‘सपत्नीक’ की व्युत्पत्ति और अर्थ जानने-समझने के बाद इस चर्चा का अंत करूँ, इससे पहले मेरे ज़ेहन में एक प्रश्न उठ रहा है। एक ऐसा प्रश्न जो किसी और के भी दिमाग़ में आ सकता है। प्रश्न यह कि ‘सपत्नीक’ सही है, इसमें कोई संदेह नहीं लेकिन ‘सपत्नी’ क्यों ग़लत है? ‘स’ के एक अर्थ (समान) से यदि उसका मतलब सौत निकलता है तो ‘स’ के दूसरे अर्थ (साथ) से उसका मतलब ‘पत्नी के साथ’ भी तो निकलता है। वैसे भी ‘सपत्नीक’ ‘सपत्नी’ से ही बना है!

फिर ‘सपत्नी’ लिखना या बोलना क्यों ग़लत होना चाहिए? संस्कृत में न सही, हिंदी में तो लिखा ही जा सकता है!

इसका मेरे पास फ़िलहाल वही जवाब है जो अल्पवयस्क के मामले में कहा था। अल्पवयस् का वही अर्थ है जो अल्पवयस्क का है। लेकिन प्रचलन में अल्पवयस्क ही है। इसी तरह सकर्मक और अकर्मक शब्द ही चलते हैं, सकर्म और अकर्म नहीं, भले ही उनका मतलब वही हो। उसी तरह से ‘सपत्नी’ का एक अर्थ भले ही ‘पत्नी के साथ’ हो मगर व्याकरण की दृष्टि से ‘सपत्नीक’ ही सही है और प्रचलित भी।

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