कुछ शब्द ऐसे होते हैं जो बोलचाल में कम इस्तेमाल होते हैं मगर लिखने में उनका प्रयोग होता है। आज की चर्चा एक ऐसे ही एक शब्द के बारे में है जो संस्कृत से आया है और जिसका अर्थ है शाम का वक़्त। कुछ लोग इसे सायंकाल लिखते हैं और कुछ लोग सांयकाल। यानी कुछ लोग ‘सा’ पर बिंदी लगाते हैं तो कुछ लोग ‘य’ पर। आख़िर सही क्या है, इसी पर है आज की चर्चा। साथ ही इसके उच्चारण पर भी की गई है बात की गई है। रुचि हो तो आगे पढ़ें।
जब मैंने सायंकाल और सांयकाल पर एक फ़ेसबुक पोल किया तो क़रीब 72% ने सायंकाल के पक्ष में वोट किया जबकि सांयकाल को सही बताने वाले शेष 28% रहे।
सही है सायंकाल जो बना है सायम् (शाम) और काल (समय) के जुड़ने से। वैसे ‘सायं’ और ‘सायंकाल’ दोनों का अर्थ एक ही है। जैसे हम कहें कि ‘शाम’ को मिलो या ‘शाम के वक़्त’ मिलो तो दोनों का एक ही अर्थ होगा। वैसे लेखन में सायं/सायम् का अकेले में प्रयोग मैंने कम ही देखा है। जब भी देखा है सायंकाल या सायंकालीन के यौगिक रूप में देखा है।
यह सायम् शब्द किशोरावस्था से ही मेरे लिए एक पहेली बना हुआ था क्योंकि यह शाम से बहुत मिलता-जुलता है। मैं सोचता था कि क्या सायम् से ही शाम बना है या शाम श्याम (काला) से बना है। तब पता नहीं था कि शाम फ़ारसी से आया है और यह भी नहीं मालूम था कि संस्कृत और फ़ारसी के बीच में कैसा बहनापा है।
अब प्रश्न केवल यह बचता है कि सायंकाल का उच्चारण क्या होगा। कई लोग इसका उच्चारण सायँकाल की तरह करते हैं – सायँ+काल लेकिन यह ग़लत है क्योंकि सायंकाल के ‘य’ पर चंद्रबिंदु नहीं, अनुस्वार है। अनुस्वार इसलिए कि यहाँ सायम् और काल की संधि हुई है और व्यंजन संधि के एक नियम के अनुसार ‘म्’ का उच्चारण ङ् हो जाएगा। उच्चारण होगा – सायङ्काल।
किसी संधि के दौरान म् का उच्चारण क्या होगा, यह उसके ठीक बाद वाले वर्ण पर निर्भर करता है कि वह स्पर्श वर्ण है, अंतस्थ है या ऊष्म है। कवर्ग से पवर्ग तक के वर्ण स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं और उसके बाद के अंतस्थ (य, र, ल और व) तथा ऊष्म (श, ष, स और ह) कहलाते हैं। इनके बारे में नियम आप नीचे देख सकते हैं।
चूँकि सायंकाल में सायम् के बाद काल के रूप में ‘क’ की ध्वनि है इसलिए ‘म्’ कवर्ग (क-ख-ग-घ-ङ) के पाँचवें (अनुनासिक) वर्ण ‘ङ्’ में बदल जाएगा। लिखा जाएगा सायंकाल और बोला जाएगा सायङ्काल। इस (सा)यंका(ल) में यंका (यङ्का) का उच्चारण वैसा ही होगा जैसा कि हम लंका (लङ्का) का करते हैं। सायंकालीन का उच्चारण भी सायङ्कालीन होगा न कि सायँकालीन।
मुझे लगता है कि उच्चारण के भ्रम के कारण ही सायंकाल का उच्चारण पहले सायँकाल हुआ और समय के साथ अनुनासिक ध्वनि (चंद्रबिंदु) खिसककर पहले वाले स्वर यानी ‘सा’ पर चली गई। फलतः कुछ लोग इसे साँयकाल बोलने लगे। चूँकि चंद्रबिंदु का चलन इधर कम हो गया है तो वह साँयकाल सांयकाल लिखा जाने लगा।
आज ज़्यादा कुछ है नहीं बताने लायक़। अगर आपमें से किसी को अनुस्वार के अलग-अलग उच्चारण के बारे में भ्रम हो तो क्लास 6 में हुई चर्चा से लाभ उठा सकते हैं। लिंक नीचे है –
2 replies on “192. शाम का वक़्त यानी सायंकाल या सांयकाल?”
अँग्रेज़ी के शब्दों में
अंतस्थ वा ऊष्म वर्ण हो तो अनुस्वार लगाना ठीक है क्या ?
जैसे — सेंसर , ट्रांसफॉर्मर
अंग्रेज़ी में नासिक्य ध्वनि के लिए n और m लगाया जाता है। नियम यह है कि m के बाद p, ph, f या b (म के अलावा पवर्ग की कोई भी ध्वनि) हो तो अनुस्वार लगेगा। कोई और लेटर या ध्वनि हो तो नहीं लगेगा।
n के मामले में नियम बिल्कुल उलट है। n के बाद p, ph, f, b या m हो तो अनुस्वार नहीं लगेगा (न या न् लिखा जाएगा), कोई और लेटर हो तो अनुस्वार लगेगा।
Sensor या Transformer में n के बाद s है, इसलिए अनुस्वार लगा सकते है। लेकिन Inform में n के बाद f है सो अनुस्वार नहीं लगेगा। उसे इन्फ़ॉर्म लिखा जाएगा।