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आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

150. तीरों के बिछौने को क्या कहेंगे – शरशय्या या शरशैया?

बिस्तर के लिए हिंदी में एक शब्द है जो शय्या और शैया दोनों तरह से लिखा जाता है। जो शय्या को सही बताते हैं, वे कहते हैं कि यह शब्द संस्कृत से आया है और वहाँ यह इसी तरह लिखा जाता है। उधर जो शैया को सही बताते हैं, उनके अनुसार शय्या का उच्चारण शैया जैसा ही है। वे अपने मत के पक्ष में मैया, गैया, भैया और नैया का उदाहरण देते हैं। आख़िर किसके मत में है ज़्यादा दम, जानने के लिए आगे पढ़ें।

जब मैंने शैया और शय्या के बीच फ़ेसबुक पोल किया तो 70% लोगों ने शय्या के पक्ष में वोट दिया।11% ने शैया को सही बताया था और 19% के अनुसार दोनों सही हैं।

शब्दकोशों की बात करें तो वे सभी शय्या को सही बताते हैं। संस्कृत कोश में तो शय्या है ही, हिंदी के कोशों में ही शय्या ही नज़र आता है (देखें चित्र)। ऐसे में बिना किसी हिचक के कहा जा सकता है कि शय्या सही है।

आप्टे के संस्कृत-हिंदी शब्दकोश में शय्या।
हिंदी शब्दसागर में शय्या।

चलिए, शय्या तो सही साबित हो गया लेकिन जो लोग शैया को या दोनों को सही मानते हैं, उनके मन में यह सवाल उठ सकता है कि जब मैया, गैया, भैया, नैया आदि सही हैं तो शैया क्यों नहीं। इसलिए नीचे हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि शय्या का मामला गैया, मैया, भैया और नैया आदि से अलग क्यों है।

कारण है इन शब्दों की उत्पत्ति। गैया, मैया, नैया और भैया जैसे शब्द एक तरह से बने हैं और शय्या दूसरी तरह से।

पहले गैया, मैया, भैया और नैया जैसे शब्द लेते हैं। ध्यान दीजिए कि

  1. इनमें से कोई भी संस्कृत का शब्द नहीं हैं हालाँकि इन सभी का मूल स्रोत संस्कृत ही है।
  2. इन सभी के ‘आई’ या ‘आय’ वाले रूप भी प्रचलित हैं यानी ऐसे शब्द जिनके अंत में ‘य’ अथवा ‘ई’ है। मुझे नहीं मालूम कि नीचे के सारे शब्द क्या अपने आय/आई वाले रूप से बने हैं मगर पहली नज़र में एक साझा ट्रेंड तो दिखता है।
  • गाय>गैया
  • माई>मैया
  • भाई>भैया
  • दाई>दैया
  • ठाँई>ठैयाँ
  • ढाई>ढैया
  • साँई>सैयाँ
  • पायँ>पैयाँ
  • नाय>नैया
  • कलाई>कलैया
  • बलाय>बलैया

लेकिन ‘शय्या’ के साथ ऐसा नहीं है। ‘शय्या’ ख़ालिस रूप से संस्कृत का शब्द है यानी तत्सम है। इसलिए मैया, गैया आदि की देखादेखी इसे शैया लिखना सही नहीं है। केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने वर्ष 2003 में देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी के मानकीकरण के लिए जिस अखिल भारतीय संगोष्ठी का आयोजन किया था, उसमें  जारी नियमावली में ख़ास तौर पर शय्या का उल्लेख करते हुए लिखा गया है : 

2.10.4 संस्कृत के तत्सम शब्द ‘शय्या’ को ‘शैया’ न लिखा जाए। 

लेकिन इसका एक दूसरा पक्ष भी है। कुछ लोग कह सकते हैं कि जब हम शय्या बोलते हैं तो हमारा उच्चारण बहुत-कुछ शैया (शइया) जैसा होता है, इसलिए हिंदी में शैया लिखने की मनाही नहीं होनी चाहिए।

बात काफ़ी हद तक सही भी है। ‘य’ और इ का बहुत क़रीबी संबंध है और यह जीभ की स्थिति के मामूली से अंतर पर निर्भर करता है कि आप ‘य’ बोलते हैं या ‘इ’। और यह बात हिंदी ही नहीं, बाक़ी भाषाओं में भी दिखती है। अंग्रेज़ी में Y सेमी-व़ावल है जिसका उच्चारण कहीं-कहीं य (Yes) और कहीं-कहीं इ (Cycle) के लिए होता है। उर्दू में भी छोटी ये (ې) का इस्तेमाल ‘य’ और ‘ई’ दोनों के लिए होता है। इसलिए शय्या के ‘य्’ को किसी की ज़बान अगर ‘इ’ में बदल दें तो उसका उच्चारण शइया हो जाएगा। यह वही उच्चारण है जो शैया का है। इस लिहाज़ से शैया को शय्या का तद्भव रूप माना जा सकता है।

जाते-जाते एक रोचक बात बता दूँ जो मेरी ऊपर की बात की पुष्टि करती है। हिंदी शब्दसागर के 1920 के संस्करण में शैया नहीं है, केवल शय्या है। मगर 1995 के संस्करण में कई जगहों पर शैया लिखा गया है (देखें चित्र)।

हिंदी शब्दसागर (1920) में देवोत्थान की एंट्री में शय्या लिखा हुआ है।
हिंदी शब्दसागर (1995) में देवोत्थान की एंट्री में में शैया लिखा हुआ है।

यानी शुरू के कोशकार केवल शय्या को सही मानते थे मगर बाद के कोशकारों/संपादकों ने शैया को भी स्वीकृति दे दी। इसका अर्थ यह हुआ कि पहले भले ही शय्या का ही प्रचलन था लेकिन बाद में शैया भी इस्तेमाल होने लगा, यहाँ तक कि एक प्रमुख शब्दकोश के कोशकार/संपादक भी शैया लिखने लगे।

ऐसे में कैसे कहा जाए कि शैया ग़लत है?

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