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164. शहादत का मूल अर्थ क़ुर्बानी नहीं है, क्या है?

शहीद और शहादत के अर्थ तो आप जानते ही होंगे। शहीद यानी वह व्यक्ति जिसने अपने राष्ट्र, देश, समुदाय, विचारधारा या आदर्श  के लिए अपनी जान क़ुर्बान कर दी हो और शहादत का अर्थ है उसकी वह क़ुर्बानी। लेकिन शहीद और शहादत का एक और अर्थ है जिसका बलिदान या क़ुर्बानी से कोई लेना-देना नहीं। बल्कि शुरू-शुरू में शहीद और शहादत का यही अर्थ चलता था और आज भी अदालतों में वही अर्थ चलता है। बलिदान का अर्थ तो बाद में आया।  क्या था शहीद और शहादत का मूल अर्थ, जानने के लिए आगे पढ़ें।

शहीद अरबी का शब्द है और इसका मूल अर्थ है गवाह। इसी से बने शहादत शब्द का अर्थ है गवाही। बाद में इसे बलिदानी और बलिदान के अर्थ में भी इस्तेमाल किया जाने लगा। लेकिन सोचने की बात यह है कि गवाह और गवाही का बलिदान से क्या संबंध है। क्यों गवाह और गवाही के अर्थ वाला शहीद और शहादत शब्द बाद में बलिदानी और बलिदान के लिए इस्तेमाल होने लगा। आज की इस चर्चा में हम इसी विषय पर बात करेंगे।

हो सकता है, आप जानते या न भी जानते हों, हर भाषा में शब्द धातुओं से बनते हैं जिनका कोई मौलिक अर्थ होता है। उन धातुओं में उपसर्ग या प्रत्यय लगाकर अलग-अलग शब्द बनाए जाते हैं। जैसे संस्कृत के दृश् धातु का संबंध ‘देखने’ से है। सो इससे देखने से जुड़े तरह-तरह के शब्द बनते हैं जैसे दर्शन, द्रष्टा, दृष्टि। इसी तरह नृत् धातु नाचने के अर्थ से जुड़ा हुआ है और इससे नृत्य, नर्तन, नर्तक, नर्तकी आदि शब्द बनते हैं।

अरबी में भी ऐसे धातु होते हैं जो अधिकतर तीन व्यंजनों के योग से बनते हैं। जैसा कि ऊपर लिखा, हर धातु का एक ख़ास अर्थ होता है और उसी धातु से उस अर्थ से जुड़े अलग-अलग शब्द बनते हैं। मसलन क-त-ब एक धातु है जिसका संबंध लिखने से है। इसी से किताब (पुस्तक), क़ुतुब (किताबें), कातिब (लेखक), मकतूब (चिट्ठी या संदेश) और मकतब (पाठशाला) बनते हैं।

इसी तरह श-ह-द एक धातु है जिसका संबंध देखने से है। इसी से बने शहीद (साक्षी) और शहादत (साक्ष्य)। शहीद शब्द का क़ुरआन में भी कई जगहों पर ज़िक्र है मगर बलिदान के अर्थ में नहीं, केवल गवाह या प्रतिनिधि के अर्थ में। सलाम सेंटर, बेंगलुरु के अनुसार क़ुरआन में शहीद शब्द का इन अर्थों में इस्तेमाल हुआ है।

1. जो व्यक्ति किसी जाति की ओर से जाति के प्रतिनिधि के रूप में किसी मामले में गवाही दे। (क़ुरआन – 28:75)

2. जिस चीज़ की गवाही दी जा रही हो अर्थात् जिसकी सूचना लोगों को दी जा रही हो, उस चीज़ और लोगों के बीच जो व्यक्ति वास्ता या माध्यम बन रहा हो। (क़ुरआन – 2:143)।

3. वह व्यक्ति जो किसी चीज़ को पूरी तरह जानता हो और इस सिलसिले में वह गवाह और सनद हो। (क़ुरआन – 29:52)

अब प्रश्न यह उठता है कि गवाह या प्रतिनिधि के अर्थ वाला शहीद कब और कैसे उन लोगों के लिए इस्तेमाल होने लगा जिन्होंने धर्म के लिए होने वाले युद्ध में अपनी जान दे दी।

इसके बारे में कोई एक राय नहीं है और केवल अटकलें लगाई जाती हैं। मसलन कहा जाता है कि जब कोई अल्लाह की ख़ातिर अपनी जान देता है तो फ़रिश्ते उसके इस काम को देख रहे होते हैं और वे बाद में उसके पक्ष में ‘गवाही’ देकर जन्नत में उसका स्थान सुरक्षित करते हैं। एक अटकल तो उसे शहद से जोड़ देती है और कहती है कि शहीदों की क़ब्रें मधुमक्खी के छत्ते जैसी दिखती हैं, इसीलिए उन्हें शहीद कहा जाता है। देखें चित्र जिसमें इस तरह के अनुमान दिए गए हैं।

जो सबसे ज़्यादा स्वीकृत मत है, उसके अनुसार अल्लाह के मार्ग में प्राण देने वाले को इसलिए शहीद कहा जाता है कि वह अपने प्राण देकर इस बात की ‘गवाही’ देता है कि जिस चीज़ पर ईमान लाने का उसे दावा था, वास्तव में दिल में उसे सत्य मानता था। सलाम सेंटर द्वारा प्रकाशित क़ुरआन में पारिभाषिक शब्दावली की सूची में यही लिखा गया है।

शब्दों के उद्गम पर बड़े पैमाने पर काम कर चुके और ‘शब्दों का सफ़र’ के लेखक अजित वडनेरकर भी तक़रीबन इसी अनुमान का समर्थन करते हुए लिखते हैं – ‘इस्लामी दर्शन के मुताबिक संघर्ष के दौरान अगर कोई व्यक्ति बलिदान देता है, तब वह एक प्रतिमान स्थापित करता है। वह स्वयं एक मिसाल बनता है उस सत्य की जिसकी ख़ातिर उसने जंग लड़ी। वह व्यक्ति अपने उद्देश्य की शहादत यानी गवाही है। इसलिए ऐसा व्यक्ति शहीद यानी ईश्वर की गवाही या ईश्वर का साक्षी माना जाता है।’

इस शब्द पर खोजबीन करते हुए एक रोचक बात मुझे यह पता चली कि अंग्रेज़ी में बलिदानी के अर्थ में जो Martyr शब्द चलता है, वह जिस मूल ग्रीक Martur शब्द से बना है, उसका अर्थ भी साक्षी ही था। यानी शहीद और Martyr – इन दोनों शब्दों का मूल अर्थ एक ही था – साक्षी।

शहीद और शहादत से मिलते-जुलते दो और शब्द हैं जो हिंदी में ख़ूब चलते हैं – शहद और शोहदा। वे भी क्या इसी श-ह-द धातु से बने हैं और यदि हाँ तो ये शब्द भला कैसे बने? इनका तो साक्षी या बलिदानी के अर्थों से कोई संबंध नहीं है। वैसे रामचंद्र वर्मा का उर्दू-हिंदी कोश शोहदा को अरबी का नहीं, फ़ारसी का शब्द बताता है – शुहदा। हिंदी शब्दसागर में उसे अरबी मूल का बताया गया है। इनके बारे में कभी कुछ पता चला तो भविष्य में चर्चा करेंगे।

जाते-जाते एक आख़िरी बात। शुरू-शुरू में भले ही शहीद के दोनों अर्थ चलते हों मगर आज की तारीख़ में हिंदी और उर्दू में बलिदानी के लिए शहीद और गवाह के लिए शाहिद शब्द चलता है। फ़ारसी में शाहिद का अर्थ बहुत सुंदर और प्रेमिका भी है।

अब तो आप जान गए होंगे कि शाहिद कपूर के माता-पिता ने जब उनका यह नाम रखा होगा तो क्या सोचकर रखा होगा।

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