आप जानते होंगे कि हिंदी में कई शब्द ऐसे हैं जो संस्कृत से आए हैं। कुछ अपने शुद्ध रूप में तो कुछ अपना रूप बदलकर। जैसे ग्राम और गाँव, पत्र और पत्ता, दुग्ध और दूध। हिंदी में ये दोनों ही तरह के शब्द चलते हैं – शुद्ध यानी तत्सम और परिवर्तित यानी तद्भव। लेकिन एक शब्द ऐसा है जो देखने-पढ़ने से लगता है बिल्कुल संस्कृत शब्द जैसा मगर है नहीं। वह है संगठन। संगठन जैसा कोई शब्द संस्कृत में नहीं है और जो है या जिससे यह शब्द बना है, उसके बारे में 90% को मालूम ही नहीं। क्या है वह शब्द, जानने के लिए आगे पढ़ें।
जब मैंने फ़ेसबुक पर पूछा कि संस्कृत का ऐसा कौनसा शब्द है जिसका अर्थ है ‘किसी साझा उद्देश्य से बना कोई समूह’ तो 90% ने संगठन के पक्ष में मतदान किया। दूसरे विकल्प संघटन के पक्ष में केवल 10% वोट पड़े।
सही जवाब है संघटन या संघटना। दरअसल संस्कृत में संगठन जैसा कोई शब्द ही नहीं है। देखने-सुनने में यह संस्कृत से आया शब्द लगता है क्योंकि इसके आगे सम् उपसर्ग है लेकिन सम् उपसर्ग जिससे जुड़ रहा है, वह गठन शब्द संस्कृत का नहीं है (देखें चित्र)। अगर संस्कृत में गठन होता, तभी उससे संगठन बनता। जब माँ ही नहीं है तो बेटी कहाँ से होगी?
जैसा कि ऊपर बताया, सही शब्द है संघटन हालाँकि संस्कृत के शब्दकोशों में मुझे यह शब्द नहीं मिला। वहाँ दिखे संघटना, संघट्टनम् और संघट्टना (देखें चित्र)। ये सारे शब्द संभवतः संघट् से बने हैं जिसका अर्थ है – मिलना, जमा होना। इसी आधार पर संघटना, संघट्टनम् और संघट्टना के अर्थ दिए गए हैं – संयोग, एकजुटता, इकाई आदि।
हाँ, हिंदी शब्दसागर में संघटना के साथ संघटन भी है। इसके अनुसार दोनों का अर्थ एक ही है। इसमें संघटना को स्त्रीलिंग बताया गया है जिससे प्रतीत होता है कि संघटन और संघटना में केवल लिंग का अंतर है।
आपको संघटन या संघटना शब्द अजीब लग रहा होगा लेकिन एक बार इससे मिलते-जुलते शब्द ‘संघ’ पर विचार करेंगे तो यह अजीब नहीं लगेगा। एक समूह के अर्थ में संघ शब्द का हम अकसर इस्तेमाल करते हैं – संघ, परिसंघ, महासंघ। भारत ख़ुद एक संघीय राज्य है। मगर संघटना शब्द हमारे लिए इतना अपरिचित है कि हम धोखा खा जाते हैं।
वैसे यदि आप महाराष्ट्र में रहते हैं तो यह शब्द उतना अपरिचित भी नहीं होना चाहिए। वहाँ संगठन नहीं, संघटना ही लिखा जाता है जैसे शेतकरी संघटना, कामगार संघटना आदि। मुझे लगा था कि दो तरह के साथी संघटना के पक्ष में वोट दे सकते हैं। एक, जो संस्कृत जानते हैं और दो, जो महाराष्ट्र में रहते हैं।
अब संगठन के बारे में कुछ बातें। आख़िर यह शब्द कैसे बना? इसके बारे में कोशकार भी सुनिश्चित नहीं हैं। क्या यह संघटन में मौजूद घ और ट के बीच हकार की अदला-बदली के कारण हुआ जिसमें महाप्राण ‘घ’ अपना हकार खोकर अल्पप्राण ‘ग’ में बदल गया और अल्पप्राण ‘ट’ (घ वाले) हकार से मिलकर महाप्राण ‘ठ’ में बदल गया?
सं(घ+ट)न>सं(ग+ह+ट)न>सं(ग+ट+ह)न>सं(ग+ठ)न
ऐसी अदला-बदली हम डफली और ढपली में देख चुके हैं (ड>ढ और फ>प) और शब्दचर्चा 102 (ठंडा या ठंढा) में इसकी चर्चा भी कर चुके हैं।
शब्दसागर ने एक संभावना यह भी जताई है कि संगठन शब्द संघटन से न बनकर हिंदी के गठन शब्द से पहले सम् उपसर्ग लगने से बना हो।
चाहे जो हो, कोशकार ने संघटन को ही सही माना है और संगठन का अर्थ बताते हुए विशेष तौर पर यह टिप्पणी में लिखा है कि संगठन संस्कृत का शब्द नहीं है और सही संस्कृत शब्द संघटन ही है (देखें चित्र)।
संघटन शब्द के बारे में जब शब्दसागर के कोशकार ने अपना मत दे दिया तो मेरे लिए कुछ और कहने की ज़रूरत नहीं है। हाँ, इस आधार पर संगठन को अब ग़लत भी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि यह बहुत अधिक प्रचलित हो गया है। हम केवल यह कह सकते हैं कि संगठन हिंदी का शब्द है जो (संभवतः) संस्कृत के संघटन से बना है। यानी जिस तरह से हम गाँव, दूध और पत्ता जैसे शब्दों का हिंदी में इस्तेमाल कर रहे हैं, वैसे ही संगठन का भी प्रयोग करने में कोई त्रुटि नहीं है।
2 replies on “111. संगठन और संघटन, क्या सही, क्या ग़लत?”
आभार सर । मैंने हमेशा संगठन ही लिखा था । आपने विस्तृत जानकारी दी है । दिमागी परतें खुल रही हैं आपके लेखों से ।
मैं अपनी कृतज्ञता प्रकट करती हूं ।
उत्तम विश्लेषण।
आपके द्युतिमान भविष्य-हेतु मांगलिक कामना है।