कमबख़्त एक आम गाली है लेकिन उतनी भारी-भरकम नहीं कि किसी को दी जाए तो बुरी लगे। लोग लंबी बीमारी तक के लिए भी कह देते हैं – कमबख़्त जाने का नाम नहीं ले रही। मगर इस कमबख़्त का अर्थ क्या है – बेईमान, बदमाश, धोखेबाज़, बदनीयत या कुछ और? जानने के लिए आगे पढ़ें।
कमबख़्त ‘कम’ और ‘बख़्त’ से मिलकर बना है। ‘कम’ और ‘बख़्त’ दोनों फ़ारसी शब्द हैं। कम का अर्थ तो आप जानते ही हैं – थोड़ा; बख़्त का मतलब होता है भाग्य। इसलिए कम+बख़्त का मतलब हुआ वह जिसका कम भाग्य हो – भाग्यहीन या अभागा (देखें चित्र)।
‘कम’ से बनने वाले और भी बहुतेरे शब्द हैं जो हिंदी में इस्तेमाल होते हैं। कमज़ोर, कमउम्र, कमअक़्ल, कमसिन, कमज़ात आदि। इस लिस्ट में एक और शब्द शामिल है जो इस्तेमाल तो कम होता है मगर है बहुत दिलचस्प – कमख़ाब जिसे किमख़ाब भी कहते हैं। कमख़ाब, आप जानते ही होंगे, एक रंगीन बेल-बूटेदार रेशमी कपड़े का नाम है।
मैंने पता लगाने की कोशिश की कि इसे कमख़ाब क्यों कहते हैं क्योंकि कम+ख़ाब का मतलब हुआ जिसमें कम ख़ाब (सपना/नींद) आए। मुझे जो जानकारी मिली, वह यह कि इसमें इतने बूटे होते हैं कि इसपर सोने से नींद नहीं आती। इसलिए कमख़ाब। कमख़ाब नाम की यह व्याख्या मुझे तुक्का अधिक लगती है।
आपमें से कुछ लोग सोच रहे होंगे कि सपने के लिए सही शब्द तो ‘ख़्वाब’ है तो मैं ‘ख़ाब’ क्यों लिख रहा हूँ। इसका कारण यह कि ‘ख़्वाब’ को ‘ख़ाब’ भी बोला/लिखा जाता है।
ख़्वाब और ख़ाब ने मुझे किशोरावस्था से परेशान कर रखा था। कारण, कुछ गानों में मुझे ख़्वाब नहीं, ख़ाब सुनाई देता था। मसलन मुकेश का गाया एक हिट गाना है – मैं तो एक ख़्वाब हूँ। इस गाने में मुकेश मुझे साफ़-साफ़ ‘ख़ाब’ बोलते सुनाई देते थे। ‘मेरे मेहबूब’ का शीर्षक गीत जो मुझे हमेशा से बहुत ही पसंद रहा है, उसमें रफ़ी साहब भी ‘ख़ाब’ ही बोलते सुनाई देते हैं – ऐ मेरे ख़ाब की ताबीर, मेरी जाने ग़ज़ल। इसके अलावा ‘तीन देवियाँ’ का एक सुपरहिट गाना है – ख़्वाब हो तुम या कोई हक़ीकत… उसमें किशोर कुमार भी ख़ाब ही बोलते सुनाई देते हैं।
उलझन इसलिए ज़्यादा थी कि जो शब्दकोश मेरे पास थे, उन सबमें ‘ख़्वाब’ ही था। ऐसे में मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या इतने मशहूर गायक ‘ख़्वाब’ का ग़लत उच्चारण कर रहे हैं या मेरे कान ही ग़लत सुन रहे हैं।
इस उलझन का समाधान हाल ही में हुआ जब प्लैट्स के शब्दकोश में मैंने ख़्वाब के साथ-साथ ख़ाब भी पाया (देखें चित्र)।
मैं चाहता हूँ कि आप भी यूट्यूब पर ये तीनों गाने सुनें (लिंक ऊपर दिए हुए हैं) और मुझे बताएँ कि मुकेश, रफ़ी और किशोर क्या वाक़ई ‘ख़ाब’ बोल रहे हैं या मुझे ही ग़लत सुनाई देता है। जिन्हें न मालूम हो, उन्हें बता दूँ कि अरबी-फ़ारसी परिवार के शब्दों में शुरू में संयुक्ताक्षर नहीं होते। ख़्वाब, ख़्वाहिश जैसे शब्द अपवाद हैं।
ख़्वाब और ख़ाब पर विस्तार से चर्चा एक अलग पोस्ट में भी की गई है। रुचि हो तो पढ़ें।