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आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

61. नीबू या नींबू – किसके रस से बनती है शिकंजी?

नीबू और नींबू में सही क्या है? जब इस विषय पर फ़ेसबुक पर एक पोल किया गया तो 74% के बहुत बड़े बहुमत ने नींबू को सही बताया है और वे सही हैं। लेकिन जिन 26% लोगों ने नीबू के पक्ष में वोट दिया है, क्या वे ग़लत हैं? जवाब नीचे खोजते हैं।

शब्दकोशों की मानें तो नीबू और नींबू दोनों सही हैं हालाँकि शब्दसागर में नींबू नहीं है, केवल नीबू है। प्लैट्स और बाहरी में दोनों हैं (देखें चित्र)। प्लैट्स में निम्बू भी दिया हुआ है।

अब प्रश्न केवल यह बचता है कि ज़्यादा सही कौन है – नीबू, नींबू या निम्बू?

जवाब पाने के लिए हमें शब्द के स्रोत पर जाना होगा। हिंदी शब्दसागर और प्लैट्स में इसका स्रोत दिया हुआ है – संस्कृत का निम्बूक (निम्बूकः)। मॉनियर विलियम्ज़ में निम्बू भी दिया हुआ है। शब्दसागर अरबी के लीमूँ को भी वैकल्पिक स्रोत मानता है (ऊपर का चित्र फिर से देखें)।

मूल शब्द है निम्बूक

पहले निम्बूक पर आएँ। निम्बूक से पहले निम्बू बना होगा, यह तो समझ में आता है। मगर निम्बू से नींबू बना या नीबू, यही बहस या चर्चा का विषय है।

आगे बढ़ने से पहले मैं एक बात स्पष्ट कर दूँ। इस पोस्ट में पंचमवर्णों यानी हिंदी वर्णमाला के पाँच वर्गों में से हर वर्ग के पाँचवें वर्ण – ङ्, ञ्, ण्, न् और म् – का कई बार ज़िक्र आएगा। ये जब स्वरयुक्त होते हैं जैसे ङ, ञ, ण, न और म, तब भी इन्हें पंचमवर्ण ही कहा जाता है। आपको आगे कोई भ्रम न हो, इसलिए बता दूँ कि मैं जब नीचे पंचमवर्णों का उल्लेख करूँगा तो उन्हें स्वरमुक्त ही समझें, स्वरयुक्त नहीं।

ऊपर आपने निम्बू और निम्बूक शब्द देखे। संस्कृत में इन्हें निंबू या निंबूक नहीं, निम्बू और निम्बूक ही लिखा जाता है यानी म् इस्तेमाल किया जाता है, बिंदी नहीं। पंचमवर्णों की जगह अनुस्वार या बिंदी का उपयोग हिंदी का अपना प्रयोग है। इसी कारण हिंदी में सम्बन्ध के लिए संबंध और गङ्गा के लिए गंगा लिखा जाता है।

दन्त बना दाँत, चन्द्र बना चाँद

अब आते हैं मूल बात पर। इन पाँचों वर्णों – ङ्, ञ्, ण्, न् और म् – से युक्त कुछ शब्द जब हिंदी में आए, तो उनमें एक ख़ास तरह का परिवर्तन आया, विशेषकर ‘अ’ स्वर से शुरू होने वाले शब्दों में। ऐसे शब्दों में देखा गया कि इनका शुरुआती ‘अ’ स्वर ‘आ’ में बदल गया। दूसरा परिवर्तन यह हुआ कि ‘अ’ स्वर के बाद वाला पंचमवर्ण (ङ्, ञ्, ण्, न् और म्) लुप्त हो गया लेकिन लुप्त होने के क्रम में उसने ‘अ’ स्वर (जो अब ‘आ’ हो चुका था) को अनुनासिक कर दिया यानी उसका उच्चारण ‘आँ’ हो गया। इस बदलाव का रूप आप नीचे दिए गए उदाहरणों से आसानी से समझ पाएँगे।

  • दंत (दन्त) का दाँत – न् ग़ायब, द का दाँ।
  • अंत्र (अन्त्र) का आँत – न् ग़ायब, अ का आँ।
  • पंक्ति (पङ्क्ति) का पाँत – ङ् ग़ायब, प का पाँ।
  • कंटक (कण्टक) का काँटा – ण् ग़ायब, क का काँ।
  • चंद्र (चन्द्र) का चाँद – न् ग़ायब, च का चाँ।
  • पंच (पञ्च) का पाँच – ञ् ग़ायब, प का पाँ।
  • तंतु (तन्तु) का ताँत – न् ग़ायब, त का ताँ।
  • ग्रंथि (ग्रन्थि) का गाँठ – न् ग़ायब, ग्र का गाँ।
  • कंपन (कम्पन) से काँपना – म् ग़ायब, क का काँ।

कहीं-कहीं इस ट्रेंड के कुछ अपवाद भी देखे जा सकते हैं। जैसे यंत्रणा (यन्त्रणा) से यातना बना, याँतना नहीं। इसी तरह दंशन से डसना बना, डाँसना नहीं। और तो और, एक उदाहरण तो मुझे ऐसा मिला जहाँ यह ट्रेंड विपरीत दिशा में दिखा। जैसे संस्कृत का वानर हिंदी में बंदर (बन्दर) हो गया।

संस्कृत के कई शब्द ऐसे भी हैं जहाँ शुरुआती ‘अ’ स्वर के बाद कोई पंचमवर्ण नहीं था। फिर भी हिंदी में आने पर शुरुआती स्वर दीर्घ होने के साथ अनुनासिक भी हो गया। कुछ उदाहरण देखें।

  • अक्षि से आँख
  • पक्ष से पाँख
  • कक्ष से काँख
  • सर्प से साँप

इन उदाहरणों की मदद से आप यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि संस्कृत के ‘अ’ स्वर से शुरू होने वाले शब्द जिनके बाद पंचमवर्ण होता है (या कभी-कभी नहीं भी होता), वे जब हिंदी में आते हैं तो कई मामलों में ‘अ’ का ‘आ’ में परिवर्तन हो जाता है और पंचमवर्ण की जगह शुरुआती स्वर अनुनासिक हो जाता है।

शृङ्ग बना सींग, विंश बना बीस

अब प्रश्न यह है कि यदि ‘इ’ स्वर से शुरू होने वाले शब्दों में भी ‘इ’ के बाद पंचमवर्ण हो तो क्या वहाँ भी यही ट्रेंड दिखता है? यानी क्या वहाँ भी ‘इ’ का ‘ई’ में (यानी ह्रस्व स्वर का दीर्घ स्वर में) परिवर्तन हो जाता है और पंचमवर्ण के बदले ई स्वर अनुनासिक हो जाता है? अगर हाँ तो निम्बूक से नीँबू बनता दिखता है, नीबू नहीं।

मैंने ऐसे कुछ शब्दों की लिस्ट बनाई जिनमें शुरुआती स्वर ‘इ’ का था। मैंने यह पता लगाने की कोशिश की कि जिन शब्दों में शुरुआती ‘इ’ स्वर के बाद कोई पंचमवर्ण होता है, वहाँ क्या बदलाव होता है और जहाँ पंचमवर्ण नहीं होता, वहाँ क्या बदलाव होता है। मुझे मिश्रित नतीजे मिले।

(क) जहाँ इ-स्वर के बाद पंचमवर्ण/अनुस्वार था :

1. शुरुआती स्वर दीर्घ हुआ, अनुनासिक भी हुआ।

  • पिंड (पिण्ड) से पींड
  • सिंचन (सिञ्चन) से सींचना
  • शृंग (शृङ्ग) से सींग
  • हिंगु (हिङ्गु) से हींग

2. शुरुआती स्वर दीर्घ हुआ मगर अनुनासिक नहीं हुआ।

  • विंश से बीस
  • त्रिंश से तीस
  • शिंबी (शिम्बी) से छीमी

(ख) जहाँ इ-स्वर के बाद पंचमवर्ण/अनुस्वार नहीं था :

1. शुरुआती स्वर दीर्घ हुआ, अनुनासिक भी हुआ।

  • विद्ध से बींधना
  • छिक्का से छींक
  • क्षिप्त से छींट
  • निद्रा से नींद
  • इषिका से सींक

2. शुरुआती स्वर दीर्घ हुआ मगर अनुनासिक नहीं हुआ।

  • भिल्ल से भील
  • भिक्षा से भीख

ऊपर (क) के तहत हमने दोनों प्रवृत्तियाँ देखीं। हमारे पास 1. पिण्ड से पींड का उदाहरण भी है और 2. विंश से बीस का भी। इसलिए हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते कि निम्बूक से नींबू बना या नीबू। पींड का उदाहरण लें तो नींबू बना होगा, बीस की मिसाल लें तो नीबू बनता दिखता है।

प्राकृत से भी हमें कोई मदद नहीं मिलती जहाँ इसका रूप णिम्बुओ था । इसलिए निष्कर्ष यही कि नींबू भी सही माना जाए और नीबू भी। वैसे चूँकि ‘न’ ख़ुद ही नासिक्य (नासिका=नाक) ध्वनि है इसलिए आप उसके साथ लगे ‘ई’ स्वर को अनुनासिक बनाने के लिए चंद्रबिंदु (ँ) या (इन दिनों टाइपिंग की सुविधा के लिए) बिंदी लगाएँगे तो भी ‘नी’ जैसी ही ध्वनि निकलेगी। दूसरे शब्दों में नीँबू/नींबू या नीबू का एक ही उच्चारण होगा (बोलकर देखिए)। ध्यान दीजिए, नीँबू/नींबू का उच्चारण नीम्बू जैसा नहीं है क्योंकि नीँ/नीं में (ईंट में मौजूद) ईं (ई+ँ) की ध्वनि है, ईम् की नहीं।

हो सकता है कि इसी वजह से निम्बूक से पहले नीँबू/नींबू बना हो जो बाद में नीबू हो गया हो क्योंकि नीँबू/नींबू और नीबू के उच्चारण में कोई अंतर नहीं था।

ऊपर मैंने अरबी के लीमूँ शब्द की चर्चा की थी और कहा था कि शब्दसागर के अनुसार यह संभावना भी बनती है कि नींबू/नीबू लीमूँ से आया हो। सुनने में अजीब लगता है लेकिन यदि बाँग्ला में नींबू/नीबू का पर्याय जानेंगे तो आश्चर्य नहीं होगा। वहाँ इसे लेबु कहते हैं (देखें चित्र)। इसी तरह गुजराती में इसे लीम्बु बोला जाता है (देखें चित्र)। तो यह लेबु और लीम्बु कहाँ से आए? क्या निंबूक और लीमूँ के संकरण से। यह काम मैं भाषाशास्त्री योगेंद्रनाथ मिश्र जैसे लोगों पर छोड़ता हूँ।

शिकंजी बना है सिंकजबीन से

यह पोस्ट बहुत लंबा हो गया है, फिर भी जाते-जाते शिकंजी शब्द पर संक्षिप्त चर्चा से ख़ुद को रोक नहीं पा रहा। शिकंजी को कहीं-कहीं शिकंजवी, शिकंजबी और शिकंजबीन भी कहा जाता है और यह बना है फ़ारसी के सिकंजबीन से (देखें चित्र)।

सिकंजबीन यानी सिरका+अंजबीन। सिरका का अर्थ तो आप जानते ही होंगे – धूप में पकाकर खट्टा किया हुआ ईख, अंगूर, जामुन आदि का रस; अंजबीन का अरबी में अर्थ है शहद। सिरके और शहद को मिलाकर बना एक पेय जिसका नाम हुआ सिकंजबीन जो समय के साथ कई-कई रूप बदलता हुआ अब शिकंजी कहा जाता है। वैसे शिकंजी कहें या सिकंजबीन, गरमी के मौसम में मिल जाए तो तरावट आ जाती है!

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