हाल ही मेरी नज़र एक फ़ेसबुक पोस्ट पर पड़ी जिसमें कइयों, ढेरों, बहुतों और अनेकों को ग़लत बताया गया था। उस पोस्ट पर कॉमेंट करने वाले अधिकतर लोग भी लेखिका से सहमत दिख रहे थे। असहमति जताने वाले भी एक-दो लोग थे मगर वे यह बता नहीं पा रहे थे कि यदि अनेकों, बहुतों आदि सही हैं तो किस आधार पर। आज की हमारी चर्चा इसी विषय पर है। क्या अनेकों और बहुतों का प्रयोग वाक़ई ग़लत है? अगर हाँ तो प्रसिद्ध वैयाकरण कामताप्रसाद गुरु और लेखक विष्णु प्रभाकर इन्हें सही कैसे बता रहे हैं? रुचि हो तो पढ़ें।
बहुतों के बारे में फ़ेसबुक पोस्ट की लेखिका का जो मत था, वही मत अधिकतर लोगों का है। मैंने इसके बारे में हिंदी कविता के मंच पर जो पोल किया, उसमें भी 79% ने बहुतों को ग़लत प्रयोग बताया। केवल 21% का मत था कि बहुतों सही है।
चलिए, आगे बढ़ने से पहले प्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर की मशहूर किताब ‘आवारा मसीहा’ का यह पेज देख लेते हैं जिसमें उन्होंने बहुतों का प्रयोग किया है। वे लिखते हैं – बहुतों का नाम लेकर जो प्रश्न तुमने किया है, उसका उत्तर तुम्हें मिलेगा। (देखें चित्र)।
विष्णु प्रभाकर जी ने अपनी किताब में ‘बहुतों’ का जिस तरह इस्तेमाल किया है, वह मुझे कहीं से भी नहीं खटकता। क्या आपको खटकता है? अगर नहीं तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि बहुतों लिखना सही है?
जी हाँ, सही है। मगर केवल कुछ ख़ास परिस्थितियों में। वे ख़ास परिस्थितियाँ क्या हैं, इसपर हम नीचे चर्चा करेंगे।
हम सब जानते हैं कि कई, बहुत, अनेक मूलतः अकारांत विशेषण हैं जिनके रूप कभी भी नहीं बदलते। जैसे सुंदर हमेशा सुंदर रहता है। सुंदर लड़की (स्त्रीलिंग एकवचन), सुंदर तस्वीरें (स्त्रीलिंग बहुवचन), सुंदर दृश्य (पुल्लिंग एकवचन), सुंदर घोड़े (पुल्लिंग बहुवचन)। इसी तरह अमीर भी विशेषण है और वह हमेशा एकरूप रहता है – अमीर आदमी, अमीर औरत, अमीर लोग।
लेकिन सुंदर का सुंदरी तो होता है। मसलन कोई कह सकता है, हे सुंदरी, तुम्हारा नाम क्या है। यहाँ सुंदर का सुंदरी हुआ है मगर इसलिए हुआ है कि यहाँ सुंदरी विशेषण नहीं, संज्ञा का काम कर रहा है। यहाँ सुंदरी का मतलब है सुंदर लड़की, युवती या स्त्री। यदि कहा जाता – हे सुंदर, तुम्हारा नाम क्या है तो स्पष्ट नहीं होता कि यह बात किसी लड़की, युवती या स्त्री से कही जा रही है। इसलिए सुंदर का सुंदरी हो गया।
इसी तरह जब कहा जाता है कि ‘बहुतों’ ने यह बात कही है तो यहाँ बहुतों विशेषण का नहीं, संज्ञा का काम कर रहा है। बहुतों का अर्थ है – बहुत-से लोगों। इसमें लोगों छुपा/मिला हुआ है, ठीक वैसे ही जैसे सुंदरी में स्त्री छुपी/मिली हुई है। जिस तरह सुंदर में ‘ई’ लगकर सुंदरी बना है ताकि वह सुंदर स्त्री का अर्थ दे, वैसे ही बहुत में ‘ओं’ लगकर बहुतों बन रहा है ताकि वह बहुत-से लोगों का अर्थ दे। इसी तरह कई से कइयों हो सकता है – कइयों (कई लोगों) को मेरी यह बात नहीं जँचेगी, अनेक से अनेकों हो सकता है – अनेकों (अनेक लोगों) का यह भी मानना हो सकता है। ये सारे प्रयोग सही है।
निष्कर्ष यह कि कई, बहुत, अनेक आदि जब संज्ञा के तौर पर इस्तेमाल होंगे तो उनका कइयों, बहुतों और अनेकों के रूप में प्रयोग हो सकता है और ये प्रयोग ग़लत नहीं हैं।
हाँ, जब वे विशेषण के रूप में प्रयुक्त होंगे तो उनका हमेशा अकारांत रूप ही इस्तेमाल होगा सिवाय कुछ मामलों के।
मसलन किसी को अनेक तरह की बीमारियाँ हैं। हम सामान्यतः कहेंगे – उसे अनेक बीमारियाँ हैं। अब अगर कोई कहे – उसे अनेकों बीमारियाँ हैं तो क्या यह ग़लत होगा? इसी तरह कोई लिखे कि उस लेख में तो ढेरों ग़लतियाँ हैं तो क्या यह भी अशुद्ध प्रयोग है?
नहीं। ये प्रयोग भी सही हैं। जब हम कहते हैं कि उसे अनेक बीमारियाँ हैं तो हमारा आशय होता है कि उसे चार-पाँच बीमारियाँ हैं जिन्हें गिना जा सकता है। जब हम कहते हैं कि उसे अनेकों बीमारियाँ हैं तो बीमारियाँ की संख्या अनिश्चित और अगणनीय हो जाती है। दूसरे शब्दों में अनेकों बीमारियाँ कहते ही बीमारियों की संख्या में अतिशय वृद्धि हो जाती है। साथ ही अनिश्चितता भी आ जाती है।
इसी तरह जब हम कहते हैं कि उसके लेख में ढेरों ग़लतियाँ हैं तो हमारा मतलब होता है कि उसके लेख में पाँच-दस नहीं, कई सारी ग़लतियाँ हैं। इससे ग़लतियों की अत्यधिक मात्रा का ज्ञान होता है। इसलिए ढेरों ग़लतियाँ भी सही प्रयोग है।
अगर आपमें से किसी को मेरी बात का भरोसा नहीं हो रहा तो साथ का चित्र देखें। ख़ुद कामताप्रसाद गुरु ने इस तरह के प्रयोगों को उचित बताया है।
कई बार कुछ प्रयोग हमें व्याकरण के नियमों के विपरीत दिखते हैं और हम इन्हें सीधे ग़लत ठहरा देते हैं। मगर हमेशा वे ग़लत नहीं होते। हमें देखना होगा कि वाक्य में उसका प्रयोग किस रूप में हो रहा है तथा इस प्रयोग से वाक्य के अर्थ में कैसा बदलाव आ रहा है। यदि वह परिवर्तन उचित और वांछित है तो वह प्रयोग भी सही है।
लेकिन इसके लिए गहरे चिंतन-मनन और विचार-विमर्श की ज़रूरत होती है। दिमाग़ और कान खुले रखने की ज़रूरत होती है। अपनी बात कहने की ललक के साथ दूसरे की बात सुनने के धैर्य की भी आवश्यकता होती है।
हमेशा की तरह मेरी आज की चर्चा में भी मेरे भाषामित्र योगेंद्रनाथ मिश्र का महत्वपूर्ण योगदान है।
3 replies on “214. बहुतों, अनेकों आदि का प्रयोग क्या ग़लत है?”
अनेकों का प्रयोग है जैसे ( उस ने जीवन में अनेकों गलतियां की हैं)
कईयों का प्रयोग जैसे ( मुझे इस सच के बारे में कईयों ने बताया है)
हम बोलते हैं श्री कृष्ण के अनेकों नाम है।जो गलत माना जाता है। श्री कृष्ण के अनेक नाम हैं।सही होता है। ऐसा क्यों पहले को भी सही मान सकते हैं क्या।
दोनों सही हैं। कृष्ण के अनेक नाम हैं, यह कहने का अर्थ है कि कृष्ण के दस-बीस-पचीस नाम हैं और उनकी गिनती हो सकती है, उनके नाम लिखे जा सकते हैं। कृष्ण के अनेकों नाम हैं का अर्थ है कि उनके इतने सारे नाम हैं कि गिनती नहीं हो सकती, उनकी सूची बनाई तो वह भी बहुत लंबी होगी।