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आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

49. जो मुझे ‘दीख’ रहा है, आपको नहीं ‘दिख’ रहा?

दिखना या दीखना? यह एक ऐसा सवाल है जिसपर अधिकतर लोग कहेंगे, यह भी कोई पूछने की बात है। दिखना ही सही है। सभी यही लिखते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। एक समय था जब दीखना ही चलता था। आख़िर कैसे दीख का दिख हुआ, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।

जब दिखना और दीखना पर फ़ेसबुक पोल किया गया तो 88% ने दिख को सही बताया और केवल 12% का मानना था कि सही शब्द दीख है। स्पष्ट है कि विशाल बहुमत दिख को ही सही मानता है। लेकिन कुछ लोग हैं जो दीख को सही समझते हैं।

आख़िर सही क्या है? जवाब है – दोनों सही हैं। शब्दकोश भी दोनों को सही बताते हैं (देखें चित्र)।

लेकिन इससे तो हमारी क्लास ख़त्म नहीं होती। मेरी तरह आपके मन में भी यह जानने की इच्छा होगी कि आख़िर एक ही शब्द के ये दोनों रूप क्यों चल रहे हैं।

मैंने जो छोटा-मोटा अध्ययन किया, उससे पता चला कि पहले ‘दीख’ ही चलता था। कविताओं और काव्य ग्रंथों में ‘दीख’ ही लिखा गया है। तुलसीदास भी ‘दीख’ ही लिखते थे। प्रेमचंद की कहानियों में भी ‘दिख’ के बजाय ‘दीख’ ही नज़र आता है (देखें चित्र)।

रामचरितमानस में ‘दीख’ का प्रयोग।
मुंशी प्रेमचंद की रचना ‘यह मेरी मातृभूमि है‘ में पहिले और दीख का प्रयोग।

लेकिन धीरे-धीरे ‘दीख’ ‘दिख’ में बदलने लगा। कुछ लोग दिखाई देना, दिखलाना आदि के तर्ज़ पर ‘दीख’ में भी छोटी मात्रा लगाने लगे और वह ‘दिख’ बोला और लिखा जाने लगा। ऐसी स्थिति में कोशकारों ने भी दोनों रूपों को बराबर महत्व देते हुए दोनों को अपने कोशों में जगह दी।

जीभ का स्वभाव है कि वह भारी से हल्के की तरफ़ जाना चाहती है क्योंकि हल्का उच्चारण करने में उसे कम समय लगता है। कई बार तो इस चक्कर में वह मात्रा ही ग़ायब कर देती है। जैसे आप ऊपर प्रेमचंद की कहानी का हिस्सा देखें। इसमें ‘पहिले’ शब्द आया है। आज कोई पहिले नहीं बोलता। सभी पहले ही बोलते हैं। इसी तरह न कोई आज वापिस बोलता है, न बहिन। समय के साथ वापिस का वापस और बहिन का बहन हो गया।

‘दीखना’ का ‘दिखना’ भी इसी तरह हुआ है।

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