जब मैंने गंद मचाने और गंध मचाने पर फ़ेसबुक पर पोल किया था तो 80% ने कहा था – गंद मचाना सही है। 20% की राय थी कि गंध मचाना सही है। सही क्या है, यह आप समझ ही गए होंगे लेकिन क्यों है, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।
गंध मचाना और गंद मचाने के बीच पोल काफ़ी हद तक एकतरफ़ा रहा जिसकी मुझे पहले से आशंका थी। इसीलिए मैं इस शब्द पर पोल करने से कतरा रहा था। परंतु पिछले सप्ताह फ़ेसबुक और यूट्यूब पर जब गंध मचाना शब्द का प्रयोग देखा (देखें चित्र) तो लगा, बहुत कम ही सही मगर कुछ लोग तो हैं, ख़ासकर सोशल मीडिया में, जो गंध मचाना लिखकर वाक़ई भाषा के मामले में गंद मचा रहे हैं। इसलिए मैंने पोल के लिए यही शब्द चुना।
कहने की ज़रूरत नहीं कि सही प्रयोग ‘गंद मचाना’ है जिसका अर्थ है कुछ ऐसा काम करना जिससे माहौल में गंद यानी गंदगी फैले। यहाँ गंद या गंदगी से आशय ऐसी किसी भी हरकत से हो सकता है जो सामाजिक, राजनीतिक, नैतिक या धार्मिक रूप से अप्रिय और अनुचित मानी जाती हो। यह बिल्कुल ही संभव है कि एक व्यक्ति या समुदाय या समाज के लिए जो गंदगी हो, दूसरे के लिए न हो।
गंद के साथ ‘मचाना’ क्यों?
लेकिन यह ‘गंद मचाना’ शब्द आया कहाँ से? शब्दकोशों में यह प्रयोग मुझे नहीं मिला। गंद फैलाना या गंदगी फैलाना तो ठीक है, लेकिन गंद मचाना! गंदगी के साथ ‘मचाना’ शब्द कहाँ से जुड़ा?
इसके लिए हमें ‘मचाना’ शब्द का अर्थ समझना होगा। ‘मचाना’ का सामान्य अर्थ है कोई ऐसा काम करना जिसका परिणाम शोरगुल या खलबली हो (देखें चित्र)।
‘मचाना’ के मूलार्थ में शोरशराबा होने के कारण शोर के साथ तो मचाना लगता ही है जैसे शोर मचाना लेकिन सकारात्मक तौर पर भी इसका इस्तेमाल होता है। मसलन किसी की शोहरत हो और इतनी हो कि लोग उसकी ज़ोर-शोर से चर्चा करें तब भी हम ‘धूम मच गई’ का इस्तेमाल करते हैं। इसी तरह कोई बहुत ज़्यादा हड़बड़ी कर रहा हो और बार-बार कह रहा हो – ‘जल्दी करो, जल्दी करो’, तो हम कहते हैं, बहुत हड़बड़ी या जल्दी मचा रहा है। बच्चे खेल-कूद के दौरान शोरगुल कर रहे हों तो उनके लिए भी ऊधम मचाना शब्द चलता है। बहुत ज़्यादा तोड़फोड़ या बहुत बड़े उलटफेर की क्रिया के लिए भी गदर मचाना शब्द चलता है। इसी तरह तूफ़ान मचाना भी एक आम प्रयोग है।
हो सकता है, इसी तरह कहीं कोई ऐसा काम हो रहा हो जो किसी एक समूह की दृष्टि से निंदनीय और अप्रीतिकर हो और इस काम की वजह से या उसके दौरान काफ़ी शोरशराबा भी हो रहा हो तो ऐसी अवस्था के लिए इस प्रकार का प्रयोग हो सकता है कि वहाँ काफ़ी गंद मची हुई है।
वैसे मैंने शब्दसगर में जब ‘मचाना’ शब्द का अर्थ और उसके प्रयोग देखे तो एक नई जानकारी मिली। जानकारी यह कि मचाना शब्द का एक स्वतंत्र अर्थ मैला करना और गंदा करना भी है (देखें चित्र)।
वैसे इस शब्द के साथ † का चिह्न दिया हुआ है जिसका अर्थ है कि यह प्रांतीय प्रयोग है। पुराने हिंदी शब्दसागर (1925) में यह एंट्री नहीं है। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि मचाना के इस अर्थ से हिंदी में कोई वाक्य कैसे बनेगा। आपमें से किसी को कोई आइडिया हो तो बताएँ।
गंद मचाना का गंध मचाना कैसे हुआ होगा?
अब अंत में बात उन लोगों के बारे में जो समझते हैं कि सही शब्द ‘गंध मचाना’ है। मुझे लगता है, ये लोग गंध का मतलब दुर्गंध समझते हैं और गंध मचाने का अर्थ उस काम से लेते हैं जो समाज में अशुद्ध आचार-विचार की दुर्(गंध) फैलाए। जिन साथियों ने गंध मचाना के पक्ष में वोट दिया है, वे ही इसके बारे में अधिक रोशनी डाल सकते हैं।लेकिन इसका एक भाषावैज्ञानिक पहलू भी है जो मेरे मित्र योगेंद्रनाथ मिश्र बताते हैं। जब मैंने उनसे पूछा कि ‘गंद मचाने’ में आया गंद कुछ लोगों की बोली में गंध कैसे हो गया होगा, तो उनका जवाब यह था।
- गंद शब्द का अंत संयुक्त व्यंजन (न्द) में होता है।
- संयुक्त व्यंजन के उच्चारण में बल थोड़ा अधिक लगता है।
- अधिक बल लगने से अल्पप्राण ध्वनि महाप्राण के रूप में उच्चरित होती है।
- ऐसे में द का उच्चारण ध के रूप में होने की संभावना बनी रहती है।
- असावधानीवश या जानकारी के अभाव में बहुत सारे लोग ‘गंद’ को ‘गंध’ बोलते होंगे और ऐसा ही लिखते होंगे।
- भाषा प्रवाह में ‘गंद’ का ‘गंध’ उच्चारण अधिक स्वाभाविक लगता है।
मिश्रजी की दलील के प्रमाण के तौर पर हम मिष्ट और रुष्ट जैसे शब्द देख सकते हैं जहाँ संयुक्ताक्षर में मौजूद ट (अल्पप्राण) ठ (महाप्राण) में बदल गया है – मिष्ट>मीठा और रुष्ट>रूठना।
जिन्हें अल्पप्राण और महाप्राण के बारे में मालूम न हो, उनको संक्षेप में बता दूँ कि अल्पप्राण ध्वनियों के उच्चारण में हवा कम निकलती है जबकि महाप्राण ध्वनियों के उच्चारण में हवा ज़्यादा निकलती है। अमूमन जिन ध्वनियों के साथ हकार की ध्वनि होती है, उनको महाप्राण और जिनके साथ नहीं होती, उनको अल्पप्राण कहते हैं। हकार को पहचानने का तरीक़ा यह है कि किसी व्यंजन वर्ण को रोमन में लिखें। जिसमें h लगता है, वह महाप्राण, जिसमें नहीं लगता, वह अल्पप्राण। च (Ch) और स (S) इसके अपवाद हैं जहाँ च (अल्पप्राण) में भी h लगता है जबकि स (महाप्राण) में h नहीं लगता है।
मिश्रजी के इस मामले में भिन्न विचार हैं लेकिन उसके बारे में चर्चा फिर कभी।