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आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

187. गाली-गलौज सही है या गाली-गलौच?

‘गाली’ के बारे में तो सभी जानते हैं मगर ‘गाली’ से मिलता-जुलता एक और शब्द है जो अलग से तो इस्तेमाल नहीं होता और ‘गाली’ के बाद आता है, उसके बारे में भ्रम है कि वह ‘गलौ‘ है या ‘गलौ‘। आज की चर्चा इसी के बारे में है। रुचि हो तो आगे पढ़ें।

गाली-गलौज या गाली-गलौच – यह एक ऐसा सवाल था जो मुझे किशोरावस्था से परेशान किए हुए था। क्या मेरी तरह और भी लोग इस मसले पर परेशान हैं, यह जानने के लिए मैंने फ़ेसबुक पर एक पोल किया। उस पोल से पता चला कि 60% साथी गाली-गलौ को सही मानते थे जबकि 30% के अनुसार गाली-गलौ सही है।

इसी तरह आँख-मिचौनी और आँख-मिचौली में भी दुविधा होती थी। मगर आँख-मिचौनी/आँख-मिचौली का मामला थोड़ा आसान है क्योंकि अगर आप थोड़ा दिमाग़ लगाकर इसे ‘आँखें मींचने’ से जोड़ लें तो ‘आँख-मिचौनी’ ही पहली नज़र में सही लगता है। मगर ‘गलौज/गलौच’ में यह सुविधा नहीं है क्योंकि ‘गलौज’ या ‘गलौच’ कैसे या किस शब्द से बने हैं, यह जानने का कोई जुगाड़ नहीं है।

शब्दकोश में अलग से न ‘गलौज’ है, न ‘गलौच’। अधिकतर कोशों में ‘गाली’ के साथ लगा हुआ ‘गाली-गलौज’ ही मिलता है, ‘गाली-गलौच’ कहीं नहीं है (देखें चित्र)। ऐसे में यही मानना होगा कि ‘गाली-गलौज’ ही सही है।

अब जब अलग से ‘गलौज’ शब्द कहीं है नहीं तो यह शब्द पैदा कैसे हुआ? हिंदी शब्दसागर के अनुसार ‘गलौज’ शब्द ‘गाली’ के ध्वनि-अनुकरण में बना है। यानी गालियों के आदान-प्रदान के लिए एक जुमला बनाना था तो गाली से मिलता-जुलता एक शब्द बना दिया ‘गलौज’ और उसे गाली के बाद जोड़ दिया। अब ‘गाली-गलौज’ ही क्यों बना, ‘गाली-गलौच’ क्यों नहीं, इसका कोई जवाब फ़िलहाल मेरे पास नहीं है।

वैसे जब मैं इस शब्द पर सोच-विचार कर रहा था तो मेरे दिमाग़ में आया कि कहीं ‘ग़लीज़’ शब्द तो ‘गलौज’ का स्रोत नहीं है। ‘ग़लीज़’ का मतलब है गंदा, मैला और गालियाँ तो गंदी होती ही हैं। सो कहीं ‘गाली-ग़लीज़’ से तो गाली-गलौज नहीं बना। लेकिन मेरे इस अनुमान की पुष्टि करे, ऐसा कोई प्रामाणिक संदर्भ नहीं मिला। वैसे भी ‘गाली’ संस्कृत के ‘गालिः’ से आया है (देखें चित्र) जबकि ‘ग़लीज़’ अरबी शब्द है।

अब अगला प्रश्न। अगर ‘गाली-गलौज’ सही है तो उससे ‘गाली-गलौच’ कैसे और क्यों बना? और इतना प्रचलित हुआ कि आज की तारीख़ में 30% उसी को सही मानते हैं। यानी सवाल है कि गलौज का ‘ज’ ‘च’ में क्यों और कैसे बदला।

समय के साथ शब्दों की ध्वनियों में परिवर्तन के तो कई उदाहरण हमारे सामने हैं (जैसे क>ग – भक्त का भगत, य>ज – यमुना का जमुना, श>स – श्वास का साँस आदि) लेकिन ज>च परिवर्तन के उदाहरण मुझे खोजने पर भी नहीं मिले। हम लोग स्कूल में ‘बैज’ को ‘बैच’ बोलते थे लेकिन वह शायद अज्ञान के चलते होता था क्योंकि तब हमें बैज (badge) की स्पेलिंग नहीं मालूम थी।

कहने का अर्थ यह कि घोष ध्वनि ‘ज’ के अघोष ध्वनि ‘च’ में बदलने (अघोषीकरण) का कोई कारण और उदाहरण मैं नहीं पता कर सका। अगर आपको ऐसे उदाहरण याद आते हों तो बताएँ। मेरी जानकारी में वृद्धि होगी और इस दिशा में और सोच-विचार कर पाऊँगा।

‘गाली-गलौज’ की बात आए तो गौतम बुद्ध का एक क़िस्सा याद न आए, यह हो नहीं सकता। आपमें से अधिकतर ने वह कहानी सुनी होगी कि कैसे किसी व्यक्ति ने गौतम बुद्ध को अपशब्द कहे और बुद्ध के कुछ सवालों ने कैसे उसे निरुत्तर कर दिया। रजनीश सहित कई लोगों ने यह कहानी बदल-बदलकर सुनाई है लेकिन ‘अक्कोस सुत्त’ में उसका जो वर्णन है, उसका संक्षेपण मैं यहाँ उन लोगों के लिए प्रस्तुत करना चाहूँगा जिन्होंने यह कहानी नहीं सुनी है।

हम जानते हैं कि गौतम बुद्ध पुरोहितवाद, कर्मकांड और जातिवाद के विरुद्ध थे। अतः ब्राह्मणों का उनसे नाराज़ होना स्वाभाविक ही था। ऐसे में एक बार जब वे राजगृह में ठहरे हुए थे तो एक नाराज़ ब्राह्मण उनके पास आया और उसने उन्हें काफ़ी अपशब्द कहे। जब वह गालियाँ देते-देते थक गया तो गौतम बुद्ध ने उससे एक सवाल पूछा, ‘जब तुम्हारे घर अतिथि आते होंगे तो क्या तुम उनकी आवभगत करते हुए उन्हें स्वादिष्ट व्यंजन अर्पित करते हो?’

ब्राह्मण ने कहा, ‘जी हाँ, मैं उन्हें स्वादिष्ट व्यंजन अर्पित करता हूँ।’

बुद्ध ने पूछा, ‘और अगर उसमें से कुछ वे बिना खाए छोड़ देते होंगे तो तुम उनका क्या करते हो?’

ब्राह्मण ने कहा, ‘तब वे मेरे पास ही रह जाते हैं।’

बुद्ध बोले, ‘इसी तरह तुमने मेरे प्रति जो अपशब्द कहे, जो गालियाँ दीं, जो ताने कसे, वे मैंने ग्रहण नहीं किए तो वे किसके पास रहे?’

स्पष्ट है, ब्राह्मण यह तर्क सुनकर अवाक रह गया और उनसे अपने कहे की माफ़ी माँगी।

आज के सोशल मीडिया के दौर में जब कोई किसी पर भी किसी ख़ास पार्टी का ‘दलाल’ या सीधे-सीधे ‘देशद्रोही’ होने का आरोप लगा देता है, तब बुद्ध की यह कथा और उसका संदेश काफ़ी उपयोगी हो सकता है।

अगर आप गौतम बुद्ध की वह कथा मूल रूप में पढ़ना चाहते हैं तो इस लिंक पर जा सकते हैं। 

ऊपर गौतम बुद्ध का ज़िक्र आया है। बुद्ध का एक और नाम है, वह दीपंकर है या दीपांकर? इसपर हम पहले चर्चा कर चुके हैं। रुचि हो तो पढ़ें।

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