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63. उत्तराखंड का प्रसिद्ध धाम, बदरीनाथ है या बद्रीनाथ?

उत्तराखंड में स्थित प्रसिद्ध धाम का नाम क्या है – बदरीनाथ या बद्रीनाथ? इसके बारे में फ़ेसबुक पर किए गए एक पोल में 78% के विशाल बहुमत ने कहा – बद्रीनाथ। बहुत कम लोगों यानी 22% ने कहा – बदरीनाथ। सही जवाब है बदरीनाथ। लेकिन क्यों, यह जानने के लिए हमें मालूम करना होगा कि बदरी का अर्थ क्या है।

नागरी प्रचारिणी सभा के हिंदी शब्दसागर के अनुसार बदरी का अर्थ है बेर। इस क्षेत्र में बेर का एक विशाल पेड़ था। इसी से इस तीर्थस्थल का नाम बदरिकाश्रम और यहाँ के अधिष्ठाता देवता का नाम बदरीनाथ पड़ा। संस्कृत के शब्दकोश में भी बदरीनाथ और बदरीनारायण ही हैं (नीचे दाएँ-बाएँ स्लाइड करके देखें बदरः, बदरिः, बदर और बदरीनाथ की प्रविष्टियाँ और अर्थ)।

महाभारत में भी इस तीर्थस्थल के लिए बदरी का कई बार ज़िक्र हुआ है। नीचे दो उल्लेख देखें।

इन श्लोकों और उनमें बदरी की वर्तनी से यह स्पष्ट हो गया कि मूल शब्द बदरी ही है। अब प्रश्न केवल यही है कि बदरी का बद्री कैसे हुआ। मेरे अनुसार उसका वही कारण है जिसका ज़िक्र मैंने पिछले पोस्ट में भी किया था। जिन्होंने वह पोस्ट नहीं पढ़ा था, उनके लिए उसे फिर से दोहरा देता हूँ।

जिनको नहीं मालूम, उनको बता दूँ कि बदरी को भले ही संस्कृत और हिंदी में एक ही तरह से लिखा जाता है लेकिन उसका उच्चारण दोनों भाषाओँ में अलग-अलग है। बदरी को जब संस्कृत में बोला जाएगा तो ‘ब’ और ‘द’ पर समान बल दिया जाएगा लेकिन जब हिंदी में बोला जाता है तो ‘ब’ को तो सस्वर (ब्+अ) बोला जाएगा लेकिन ‘द’ के साथ स्वर (द्+अ) होने के बावजूद उसका उच्चारण द् ही किया जाएगा। यह हिंदी का स्वभाव है कि यदि तीन वर्णों वाले किसी शब्द के बीच में कोई अ-स्वरयुक्त व्यंजन हो और उसके बाद ‘अ’ के अलावा कोई और स्वर हो तो उस बीच वाले वर्ण का व्यंजन जैसा ही उच्चारण होता है, स्वर के साथ नहीं। मसलन कमल और कमला को लें। कमल बोलते समय हम ‘म’ पर पूरा बल देते हैं – क+मल्। लेकिन कमला इस तरह बोलते हैं जैसे हम कम्ला बोल रहे हों – कम्+ला। दोनों शब्द बोलकर देखिए।

भाषा विज्ञान में इसे अ-लोप का सिद्धांत कहते हैं।

इस नियम को इस तरह समझें।

यदि किसी तीन वर्णों वाले शब्द में –

  • पहला वर्ण कुछ भी हो (जैसे क, गा, चि, ते, नो आदि)
  • दूसरा अ-स्वरयुक्त व्यंजन हो (जैसे क, ल, प, त आदि जिसमें कोई मात्रा न लगी हो)
  • तीसरा ‘अ’ के अलावा कोई भी स्वरयुक्त व्यंजन हो (जैसे ला, दे, सी आदि)

तो बीच वाले ‘अ’ स्वर का उच्चारण नहीं होगा।

इस नियम को समझने के लिए कमला (कम्ला) के बाद कुछ और उदाहरण देखते हैं।

  • ज+न+ता : उच्चारण जन्ता।
  • वि+न+ती : उच्चारण विन्ती।
  • न+क़+ली : उच्चारण नक़्ली।
  • आ+ल+सी : उच्चारण आल्सी।
  • ध+र+ती : उच्चारण धर्ती।

हिंदी में बीच के ‘अ’ स्वर का लोप केवल तीन वर्णों वाले शब्दों में नहीं होता। तीन से ज़्यादा वर्णों वाले शब्दों में भी अकसर ‘अ’ स्वर लुप्त हो जाता है और केवल व्यंजन की ध्वनि बोली जाती है। जैसे सरकार का उच्चारण सर्कार् (सर्+कार्)। पलटन का उच्चारण पल्टन (पल्+टन्)।

मामला सिल्अबल यानी शब्दांशों का है

दरअसल सारा मामला शब्दांशों (syllables) का है (जिन्हें तकीनीकी भाषा में अक्षर कहते हैं) कि हम किसी शब्द को किस तरह स्वरों के आधार पर तोड़कर बोलते हैं। इस मामले में संस्कृत के नियम अलग हैं, हिंदी के अलग। इसी कारण हिंदी में बीच में और आख़िर में आने वाले ‘अ’ स्वर का उच्चारण कई अवसरों पर नहीं होता जैसा कि हमने ऊपर तीन और चार वर्णों वाले शब्दों में देखा।

अब अंतिम प्रश्न जो इस यक्षप्रश्न से जुड़ा हुआ है कि क्या उच्चारण के आधार पर हम किसी शब्द की स्पेलिंग बदल सकते हैं? अगर हम धरती को धर्ती बोलें तो क्या उसे वैसे लिख भी सकते हैं? कमला को कम्ला लिखें तो क्या सही होगा? अगर नहीं तो बदरी को बद्री लिखना भी सही नहीं है।

लेकिन लिखा तो जा रहा है। और इतने बड़े पैमाने पर लिखा जा रहा है कि आपको अधिकतर जगहों पर बद्री ही लिखा मिलेगा, बदरी नहीं। मीडिया में भी नवभारत टाइम्स और एनडीटीवी जैसी कुछ ज़िम्मेदार साइटों के अलावा बाक़ी में बद्रीनाथ ही लिखा जा रहा है (देखें चित्र)। हमारे पोल में भी तीन-चौथाई से ज़्यादा ने बद्री को ही सही बताया।

एक सवाल आपमें से कुछ लोगों के दिमाग़ में आ सकता है। अगर धरती को धर्ती बोलने और कमला को कम्ला बोलने के बावजूद उसकी वर्तनी वैसी की वैसी रही तो फिर बदरी की स्पेलिंग बद्री क्यों हुई?

मेरे ख़्याल से इसका कारण यह है कि धरती लिखते समय हममें से कई जानते हैं कि यह धरित्री से बना है – धरित्री>धरत्ती>धरती। कमला लिखते समय हम जानते हैं कि यह कमल से बना है। लेकिन बदरी का अर्थ बहुत कम लोग जानते हैं (क्या आप जानते थे?) इसलिए संस्कृत नहीं जानने वाले लोगों ने जब इस शब्द के हिंदी उच्चारण के प्रभाव में यह शब्द लिखा तो उनकी क़लम से बद्री ही निकला, बदरी नहीं। धीरे-धीरे वही प्रचलित हो गया।

जिस तरह बदरी का बद्री बना, उसी तरह एक और शब्द ने हिंदी उच्चारण के चलते अपना रूप बदल दिया है। वह शब्द है अर्थी जो असल में अरथी है। अरथी का अर्थ क्या है, उसपर बात की है शब्द पहेली 65 में। रुचि हो तो पढ़ सकते हैं।

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