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94. ‘पूज्य’ और ‘पूजनीय’ के घालमेल से बना ‘पूज्यनीय’

पूज्य, पूजनीय और पूज्यनीय। इनमें से कौनसा शब्द सही है? जवाब है – पहले दो। तीसरा शब्द पूज्यनीय इन पहले दो शब्दों – पूज्य और पूजनीय – के घालमेल से बना है। रोचक यह है कि पूज्य और पूजनीय का एक ही अर्थ है और दोनों एक ही धातु से बने हैं लेकिन अलग-अलग तरीक़े से। वह तरीक़ा क्या है, जानने के लिए आगे पढ़ें।

जब मैंने पूजनीय और पूज्यनीय के बारे में फ़ेसबुक पर एक पोल किया तो मुझे आभास था कि पूजनीय के पक्ष में 80 से 90% तक वोटिंग होगी। अंत में जो नतीजा आया, वह 89% के आसपास है। यानी केवल क़रीब 11% लोग हैं जिनको इस शब्द के बारे में ग़लत जानकारी है।

जैसा कि आपमें से अधिकतर लोग जानते हैं, सही शब्द है पूजनीय जिसको कुछ लोग भ्रमवश पूज्यनीय लिख देते हैं हालाँकि जैसा कि हमारे पोल से पता चला, ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है।

मेरी समझ से पूजनीय को कुछ लोग पूज्यनीय इसलिए लिखते हैं कि पूजनीय के ही अर्थ वाला एक और शब्द है पूज्य। इस पूज्य और पूजनीय के घालमेल में कुछ पूज्यनीय लिखने या बोलने लगते हैं।

पूज्य और पूजनीय दोनों संस्कृत के पूज् धातु से बने हैं। पूज् धातु का अर्थ है आदर करना, श्रद्धा करना, पूजा करना आदि। पूज् में जब ‘य’ जुड़ा (संस्कृत व्याकरण की भाषा में ण्यत् प्रत्यय लगा) तो बना पूज्+य=पूज्य। इसी तरह पूज् में जब ‘अनीय’ जुड़ा (संस्कृत व्याकरण की भाषा में अनीयर् प्रत्यय लगा) तो बना पूज्+अनीय=पूजनीय।

इसी विधि से ये सारे शब्द भी बने –

  • मन् धातु से मान्य और माननीय
  • भुज् धातु से भोज्य और भोजनीय
  • शुच् धातु से शोच्य और शोचनीय
  • कम् धातु से काम्य और कमनीय
  • रम् धातु से रम्य और रमणीय
  • नम् धातु से नम्य और नमनीय

नमनीय से याद आया। जब हम किसी को पूजनीय मानते हैं तो उसके सामने नमन भी करते हैं, कोई-कोई तो ‘सौ-सौ बार’ नमन करते हैं, ख़ासकर सोशल मीडिया पर क्योंकि वहाँ सिर्फ़ लिखना काफ़ी है, वास्तव में झुकना नहीं पड़ता, इसलिए सौ बार क्या, लाख बार नमन कर लो या करवा, क्या फ़र्क पड़ता है!

ख़ैर, इस ‘सौ-सौ बार’ नमन करने के लिए जिस वाक्य का प्रयोग किया जाता है, वह ‘शत्-शत् नमन’ है या ‘शत-शत नमन’? इसके बारे में हम शब्द पहेली 43 में चर्चा कर चुके हैं। पढ़ना चाहें तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक या टैप करके पढ़ सकते हैं।

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