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66. अश्वेतों के साथ भेदभाव नस्लीय है या नस्ली?

धर्म और नस्ल के आधार पर दुनिया के कई देशों में भेदभाव होता है। धर्म के आधार पर भेदभाव को हम धार्मिक भेदभाव कहते हैं लेकिन नस्ल के आधार पर भेदभाव को क्या कहेंगे – नस्लीय भेदभाव या नस्ली भेदभाव? इसके बारे में हुए फ़ेसबुक पोल में 69% के विशाल बहुमत ने कहा, नस्लीय, 31% ने कहा – नस्ली। सही क्या है और क्यों है, यह हम नीचे जानेंगे।

नस्ल से नस्ली बनेगा या नस्लीय, यह जानने के लिए हमें संज्ञा से विशेषण बनाने के तरीक़ों को समझना होगा। आप जानते ही हैं कि नस्ल संज्ञा है और संज्ञा से विशेषण बनाने के लिए हिंदी में कई तरह के प्रत्यय जोड़े जाते हैं। व्यापारिक और आत्मिक में ‘इक’ प्रत्यय है तो ज़हरीला, भड़कीला में ‘ईला’ प्रत्यय है। इसी तरह प्यासा और मैला में ‘आ’ प्रत्यय है। और भी बहुत सारे हैं लेकिन इन सभी प्रत्ययों में सबसे प्रमुख प्रत्यय हैं ईय (भारतीय) और ई (हिंदुस्तानी)। ‘ईय’ प्रत्यय के और उदाहरण है – राष्ट्र से राष्ट्रीय, तट से तटीय, संपादक से संपादकीय, दल से दलीय, संघ से संघीय आदि। उधऱ ‘ई’ प्रत्यय के कुछ और उदाहरण हैं समुद्र से समुद्री, परदेस से परदेसी, किताब से किताबी, स्कूल से स्कूली, पूर्व से पूर्वी आदि।

अब प्रश्न यह उठता है कि नस्ल से जब विशेषण बनाएँगे तो उसके पीछे ‘ई’ लगाएँ या ‘ईय’। नस्ल अकारांत शब्द हैं और हिंदी में ऐसे शब्दों के पीछे ‘ई’ और ‘ईय’ दोनों लगाने का चलन है, यह हमने ऊपर के शब्दों में देखा। यही कारण है कि कुछ लोग नस्ली लिखते हैं, कुछ और नस्लीय।

इऩ दोनों में से कौनसा सही है, इसके बारे में प्रामाणिक शब्दकोश हमारी मदद नहीं करते। हिंदी शब्दसागर या हरदेव बाहरी के शब्दकोश में नस्ल या नसल तो हैं लेकिन उनका विशेषण रूप नहीं है। यानी न वहाँ नस्ली है, न ही नस्लीय। इसलिए इस पर फ़ैसला करने के लिए हमें ख़ुद ही थोड़ा रिसर्च करना होगा कि हिंदी में किन संज्ञा शब्दों का विशेषण बनाते समय ‘ईय’ प्रत्यय लगता है और किन शब्दों में ‘ई’।

इसके लिए बहुत गहरे जाने की ज़रूरत नहीं है। आप ऊपर ‘ईय’ प्रत्यय वाले शब्दों को फिर से पढ़ें और ख़ुद भी ऐसे कुछ शब्दों को याद करें। आपको पता चलेगा कि ये सारे-के-सारे शब्द संस्कृत से आए हैं। शास्त्र से शास्त्रीय, वाष्प से वाष्पीय, दर्शन से दर्शनीय, मानव से मानवीय आदि। इनमें तद्भव, देशज या विदेशज शब्द आपको नहीं मिलेगा। अगर कोई हो तो वह अपवादस्वरूप ही होगा।

कारण क्या है? कारण यह कि ‘ईय’ प्रत्यय संस्कृत की ही देन है। चूँकि संस्कृत में संज्ञा से विशेषण बनाने के लिए ‘ईय’ प्रत्यय लगता है सो संस्कृत के ये शब्द जब हिंदी में आए तो उनमें भी ‘ईय’ प्रत्यय लगा।

अब आते हैं ‘ई’ प्रत्यय वाले शब्दों पर। संस्कृत के शब्दों में जब ‘ई’ प्रत्यय लगता है तो वह अकसर पुल्लिंग को स्त्रीलिंग करने का काम करता है। जैसे दास से दासी, पुत्र से पुत्री, मानव से मानवी, देव से देवी आदि। लेकिन हिंदी में यह ‘ई’ प्रत्यय किसी शब्द का स्त्रीलिंग रूप बनाने के साथ-साथ विशेषण बनाने के मामले में भी इस्तेमाल होता है जैसा कि हमने ऊपर कुछ शब्दों में देखा। इस तरह के कुछ और उदाहरण हैं –

अभिमान से अभिमानी, क्रोध से क्रोधी, दाम से दामी, घमंड से घमंडी, दफ़्तर से दफ़्तरी, देश से देशी, पहाड़ से पहाड़ी आदि।

ऊपर के शब्दों में हर तरह के शब्द हैं। कुछ संस्कृत से सीधे आए हैं, कुछ अपना रूप बदलकर आए हैं और कुछ विदेशी भाषाओं से आए हैं।

इसका मतलब क्या हुआ? मतलब यह हुआ कि संज्ञा से विशेषण बनाने के क्रम में ‘ईय’ प्रत्यय केवल संस्कृत मूल के शब्दों में लगता है लेकिन ‘ई’ प्रत्यय हर तरह के शब्दों में लगाया जा सकता है।

अब नस्ल क्या है? नस्ल संस्कृत का शब्द तो नहीं है, अरबी का है। फ़ारसी या उर्दू के माध्यम से हिंदी में आया है। ऐसे में अगर हम उसका विशेषण बनाएँगे तो नस्ली होना चाहिए, नस्लीय नहीं। उर्दू में भी उसे नस्ली ही कहते हैं (देखें चित्र)। लेकिन हिंदी में कई लोग अनजाने में नस्लीय लिख देते हैं। लोग ही क्यों, वर्धा का शब्दकोश बनाने वाले महाशय ने भी नस्ली की जगह नस्लीय को जगह दी है (देखें चित्र)।

यह नस्लीय शब्द आज हिंदी में इतना प्रचलित हो गया है कि हमारे पाठकों में से दो-तिहाई से ज़्यादा ने नस्लीय को ही सही ठहराया है।

नस्लीय की तरह ही एक शब्द है बजटीय। बजट का विशेषण बनाते समय भी पत्रकार भाई बजटीय (भाषण) कर देते हैं (देखें चित्र) जबकि उसे आसानी से बजट भाषण लिखा जा सकता है। कई लिखते भी हैं। इसी तरह नस्लीय समानता की जगह नस्ली समानता होना चाहिए।

चूँकि ये दोनों शब्द चल पड़े हैं, इसलिए कई लोग इनको स्वीकारने के पक्ष में होंगे। ऐसा हो तो भी नस्लीय और बजटीय जैसे शब्द अपवाद ही कहे जाएँगे क्योंकि ज़्यादातर विदेशज शब्दों में ‘ई’ प्रत्यय ही लगता है, ‘ईय’ नहीं। हम भारत से भारतीय लिखते हैं लेकिन हिंदुस्तान से हिंदुस्तानीय नहीं लिखते, हिंदुस्तानी ही लिखते हैं – हिंदुस्तानी सिनेमा। इसी तरह मानव से मानवीय बनता है लेकिन इन्सान से इन्सानीय नहीं करते, इन्सानी ही लिखते हैं – इन्सानी रिश्ते। फिर नस्ल से नस्लीय क्यों जबकि नस्ली का विकल्प मौजूद है।

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