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आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

30. जैसे पीढ़ा पुल्लिंग है, वैसे संविधान पीठ भी पुल्लिंग है

हिंदी में पीठ के दो अर्थ हैं। एक हमारे धड़ के पीछे का हिस्सा और दूसरा कोई पीढ़ा, आसन, चौकी, बेंच आदि। पहले वाले अर्थ में पीठ स्त्रीलिंग है मसलन ‘मेरी’ पीठ में दर्द हो रहा है। लेकिन बेंच या पीढ़े के अर्थ वाला पीठ पुल्लिंग है। कराण जानने के लिए आगे पढ़ें।

अयोध्या मामले पर फ़ैसला जिस संविधान पीठ की तरफ़ से आया था, वह संविधान पीठ पुल्लिंग है या स्त्रीलिंग? यही सवाल मैंने एक फ़ेसबुक पोल में पूछा था। पोल में भाग लेने वाले 79% लोगों ने कहा – स्त्रीलिंग। 21% ने कहा – पुल्लिंग। परिणाम मेरी उम्मीद (या आशंका) के क़रीब ही रहा। छह महीने पहले जब संविधान पीठ का गठन हुआ था, तब मैंने एक और मंच पर यही सवाल पूछा था और वहाँ 82% ने पीठ को स्त्रीलिंग बताया था।

पीठ पुल्लिंग है, ख़ासकर बेंच के अर्थ में।

जैसा कि शुरू में बताया, पीठ के दो अर्थ हैं। एक, हमारे धड़ का पीछे वाला हिस्सा। यह स्त्रीलिंग है।

लेकिन पीठ का एक और अर्थ है – लकड़ी, पत्थर या धातु का बना बैठने का आधार या आसन। पीढ़ा। चौकी आदि। वह पुल्लिंग है (देखें चित्र)।

उपदेश, शिक्षा आदि देने के स्थान को भी पीठ कहते हैं। जैसे शंकराचार्य ने देश के चार भागों में चार पीठ बनाए (न कि पीठें बनाईं)। इसी तरह कोर्ट में किसी केस की सुनवाई के लिए न्यायाधीशों की जो टीम बनाई जाती है, उसे भी पीठ कहते हैं। यानी सही यह है – सुप्रीम कोर्ट के पाँच-सदस्यीय पीठ ने अयोध्या मामले पर सर्वसम्मत निर्णय दिया।

संविधान पीठ में आया पीठ संस्कृत के पीठम् से बना है और इसी से बना है पीढ़ा जो ख़ुद भी पुल्लिंग है (देखें चित्र)।

उधर धड़ के पिछले हिस्से के लिए जिस पीठ शब्द का इस्तेमाल होता है, वह भी संस्कृत से ही उपजा है लेकिन उसका पितृ शब्द है पृष्ठ। पृष्ठ (संस्कृत में पृष्ठम्) का तद्भव रूप है पीठ।

यानी दोनों शब्द हिंदी में एक ही तरह से बोले और लिखे जाते हैं लेकिन दोनों संस्कृत के दो अलग-अलग शब्दों (पीठम् और पृष्ठम्) से निकले हैं – और इसीलिए दोनों के अर्थ अलग हैं और लिंग भी।

संविधान पीठ प्रचलन में स्त्रीलिंग कैसे हुआ, यह समझना आसान है। पृष्ठ से बने पीठ (बैक) शब्द का इस्तेमाल ज़्यादा होता है और पीठम् से बने पीठ (बेंच या सीट) शब्द का बहुत कम, इसलिए दूसरे वाले पीठ के इस्तेमाल का वक़्त जब आया तो पत्रकार भाइयों ने उसे भी स्त्रीलिंग ही बना दिया और वही पाठकों में भी प्रचलित हो गया। एक कारण यह भी हो सकता है कि पीठ का अंग्रेज़ी पर्याय बेंच हिंदी में स्त्रीलिंग है (कोर्ट की बेंच)। इस कारण भी ख़बर का अनुवाद करते समय भाइयों ने न्यायालय के पीठ को स्त्रीलिंग बना दिया हो।

दो लिंग वाले और कुछ शब्द

पीठ के अलावा हिंदी के कुछ और शब्द हैं जिनमें अर्थ के आधार पर लिंगभेद है। ये शब्द हैं – कल, टीका, कोटि, यति, विधि, बाट, शान, शाल आदि।

  • यति (संन्यासी-पु. और विराम-स्त्री.)
  • विधि (ब्रह्मा-पु. और प्रणाली-स्त्री.)
  • बाट (बटखरा-पु. और मार्ग, प्रतीक्षा-स्त्री)
  • शान (हथियार-औज़ार तेज़ करने का पत्थर-पु. और ठाठ-बाट-स्त्री.)
  • शाल (कक्ष, एक प्रकार का पेड़-पु. और गरम चादर-स्त्री.)।

इन सारे शब्दों में भ्रम होने की संभावना कम है क्योंकि इन सभी शब्दों का दूसरे अर्थों में हम कम ही इस्तेमाल करते हैं। लेकिन कल, टीका और कोटि में भ्रम हो सकता है। इसलिए उनको नीचे वाक्य-सहित समझाने की कोशिश की है।

  • कल (अगला दिन) पुल्लिंग – तुम्हारा कल क्या इस जन्म में कभी आएगा?
  • कल (चैन, आराम, पेच-पुर्ज़ा) स्त्रीलिंग – रोगी को अभी कल पड़ी है। उसने जैसे ही कल ठीक की, पानी बहना बंद हो गया।
  • टीका (तिलक, भेंट) पुल्लिंग – पंडित ने यजमान के माथे पर टीका लगाया।
  • टीका (टिप्पणी, अर्थ) स्त्रीलिंग – रामायण की टीका पढ़कर ही मैं उसके श्लोकों का अर्थ समझ पाता हूँ।
  • कोटि (करोड़) विशेषण – बाढ़पीड़ितों की मदद करने वालों को कोटि-कोटि धन्यवाद।
  • कोटि (श्रेणी) स्त्रीलिंग – मेहमानों को अपनी-अपनी कोटि के हिसाब से अलग-अलग कमरे दे दिए गए।

बहुमत का फ़ैसला मान लिया जाए?

कुछ लोगों का कहना है कि यदि समय के साथ-साथ उपयोग के क्रम में किसी शब्द की वर्तनी या लिंग बदल जाए तो उसी को सही मान लेना चाहिए जो बहुमत के द्वारा बोला-लिखा जाता है। जैसे आत्मा को शुरू-शुरू में संस्कृत की तरह पुल्लिंग लिखा जाता था, अब वह स्त्रीलिंग रूप ही चल रहा है और शब्दकोश भी उसे स्त्रीलिंग ही बता रहे हैं। तो क्या इसी तरह संविधान पीठ को भी स्त्रीलिंग ही मान लिया जाना चाहिए क्योंकि तीन-चौथाई से ज़्यादा लोग उसे स्त्रीलिंग मान रहे हैं?

इस बारे में फ़िलहाल मैं कोई राय नहीं बना पाया हूँ क्योंकि यदि बहुमत के हिसाब से ही एकाधिक रूपों में चल रहे किसी शब्द की वर्तनी या लिंग तय होना है तो मुझे पोल के अगले दिन कोई पोस्ट लिखने की ज़रूरत ही नहीं है, बस परिणाम बता देना है जैसे चुनाव आयोग करता है। वह यह नहीं कहता कि कौनसा उम्मीदवार सबसे अच्छा है। वह यही बताता है कि बहुमत ने इस उम्मीदवार को चुना है और वही अगले पाँच साल के लिए आपका सेवक (मालिक) है।

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