Categories
आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

17. उर्दू के एक आसान नियम से जानें – यानी/यानि में कौन सही

अर्थात के लिए उर्दू का एक शब्द है जिसे यानी और यानि दोनों तरह से लिखा जाता है। इनमें से कौनसा सही है, यह जानने के लिए आपको किसी शब्दकोश के पन्ने पलटने की ज़रूरत नहीं अगर आपको उर्दू का एक आसान-सा नियम मालूम हो।

जब मैंने फ़ेसबुक पर पूछा कि यानि और यानी में कौनसा सही है तो आधे से कुछ ज़्यादा (53%) लोगों ने कहा – ‘यानि’ सही है और आधे से कुछ ही कम लोगों (47%) का मत था कि ‘यानी’ सही है। आप देख सकते हैं कि मुक़ाबला कितना कड़ा है और भ्रम कितना ज़्यादा है।

यानि और यानी पर भ्रम का सबसे बड़ा कारण यह है कि नामी-गिरामी साइटों पर भी ग़लत उच्चारण चल रहा है। और तो और, कुछ शब्दकोशों में भी ग़लत उच्चारण आ गया है।

लेकिन ग़लत शब्द है कौनसा – यानि या यानी? सही है यानी जैसा कि आपको हिंदी-उर्दू के प्रामाणिक शब्दकोशों में मिलेगा (देखें चित्र)।

वैसे मेरी समझ से तो किसी को शब्दकोश देखने की ज़रूरत ही नहीं है क्योंकि यानि अरबी मूल का उर्दू शब्द है और इसी कारण यानि सही हो ही नहीं सकता। क्यों नहीं हो सकता? इसलिए कि उर्दू के किसी भी शब्द के अंत में छोटी इ लगती ही नहीं, हमेशा बड़ी ई होती है। इसी तरह उर्दू शब्दों के अंत में छोटा उ भी नहीं लगता।

यह नियम आप याद रख सकें तो अरबी-फ़ारसी मूल के इ-ईकारांत और उ-ऊकारांत शब्दों की स्पेलिंग को लेकर कभी भ्रम नहीं होगा कि उसके अंत में छोटी इ/छोटा उ होगा या बड़ी ई/बड़ा ऊ। लेकिन हाँ, इसके लिए बहुत ज़रूरी है कि आपके पास उर्दू के अरबी-फ़ारसीमूलक शब्दों को पहचानने की क्षमता हो।

कई लोग मुझसे पूछते हैं कि कैसे पहचानें कि यह उर्दू का शब्द है या नहीं। जवाब देना बहुत मुश्किल है। निश्चित रूप से जब कोई शब्द मेरे सामने आता है तो 99.9% मामलों में मुझे सोचना नहीं पड़ता कि इस शब्द का स्रोत क्या है। कारण, उर्दू और ग़ैर-उर्दू शब्दों में कुछ मौलिक अंतर है जो दिमाग़ में रच-बस गया है और तुरंत शब्द की पहचान हो जाती है। लेकिन जिनको इन शब्दों को लेकर भ्रम होता है, उनके लिए कुछेक नियम बनाए जा सकते हैं। मगर उसके लिए भी कुछ बेसिक अंतर पता होना चाहिए।

  1. जैसे आपको अगर पता हो कि घ, छ, झ, ट, ठ, ड, ढ, ण, थ, ध, भ, ष और ज्ञ की ध्वनियों वाले वर्ण उर्दू (अरबी-फ़ारसी) में नहीं हैं तो आप कुछ शब्दों के मामले में आसानी से पहचान कर सकते हैं। मसलन नफ़रत के बारे में आपको शक हुआ कि यह संस्कृत से आया है या अरबी-फ़ारसी से। तो इसका पर्याय खोजिए। पर्याय है घृणा। घृणा में घ भी है और ण भी सो यह निश्चित रूप से उर्दू से नहीं आया है। बचा नफ़रत, सो वह उर्दू का शब्द हो सकता है। इसी तरह तमाचा और थप्पड़। चूँकि ‘थ’ उर्दू में नहीं है तो वह उर्दू का हो ही नहीं सकता। यही बात झापड़ की है।
  2. इसी तरह शब्दों में लगने वाले उपसर्ग और प्रत्यय से भी पता लगाया जा सकता है। अब ऊपर आया ‘शक’ शब्द ही लें। शक का पर्याय है संदेह। शक से बनता है बेशक और संदेह से निस्संदेह। यदि आपको पता हो कि ‘बे’ उर्दू का उपसर्ग है और ‘निः’ संस्कृत का तो आसानी से कह सकेंगे कि शक उर्दू का है और संदेह संस्कृत का।
  3. यदि किसी शब्द के शुरू में संयुक्ताक्षर है जैसे क्र, प्र, द्व आदि तो वह उर्दू का शब्द हो ही नहीं सकता। इसमें केवल ख़्व से शुरू होने वाले शब्द अपवाद हैं जैसे ख़्वाब, ख़्वाहिश।

इसके अलावा और भी कुछ सूत्र हो सकते हैं इन शब्दों को पहचानने के। फ़िलहाल ये तीन ही समझ में आ रहे हैं। और आएँगे तो किसी और क्लास में शेयर करूँगा। यदि किसी साथी को ऐसा कोई नियम याद आए तो शेयर करे।

फिर से यानी पर आते हैं। यानी को याने भी बोला और लिखा जाता है (देखें चित्र)।

लेकिन मेरा आग्रह है कि आप याने नहीं, यानी ही लिखा और बोला करें। चाहें तो उसकी जगह अर्थात भी लिख-बोल सकते हैं। मगर अर्थात के ‘त’ में हल् वाला चिह्न लगाने (अर्थात्) की ज़रूरत नहीं क्योंकि वह अब प्रचलन से बाहर है। वैसे भी कुछ अपवादों को छोड़कर (जैसे प्रिय, धर्म, सत्य आदि) हिंदी के सभी अकारांत शब्दों में आख़िरी अक्षर का उच्चारण व्यंजन के जैसा ही होता है। सो अर्थात् लिखें या अर्थात, उच्चारण एक जैसा होगा।

जाते-जाते एक बात और। क्या यानी के बाद ‘कि’ लगाना सही है? मेरे अनुसार नहीं क्योंकि यानी और अर्थात में ही ‘कि’ का भाव शामिल है। इन दोनों का अर्थ ही है – मतलब यह है कि… (देखें चित्र में यानी का अर्थ)।

परंतु भाषा और व्याकरण के अच्छे जानकार और चिंतक योगेंद्रनाथ मिश्र मानते हैं कि यानी के साथ कि का प्रयोग हो सकता है उस स्थिति में जब अपनी बात पर ज़ोर देना हो। मेरा उनसे मतभेद है। नीचे के दो वाक्य पढ़ें और ख़ुद ही फ़ैसला करें।

  • कल उनका चौथा बेटा भी घर छोड़कर चला गया यानी/अर्थात कि अब वे बिल्कुल अकेले रह गए।
  • कल उनका चौथा बेटा भी घर छोड़कर चला गया यानी/अर्थात अब वे बिल्कुल अकेले रह गए।
पसंद आया हो तो हमें फ़ॉलो और शेयर करें

3 replies on “17. उर्दू के एक आसान नियम से जानें – यानी/यानि में कौन सही”

सरल शैली में भाषा का ज्ञान मिला। क्लास अटैंड कर अच्छा लगा।
धन्यवाद आलिम सर।

दोबारा यह लेख पढ़ा, तो एक शब्द को लेकर मन में एक संशय पैदा हुआ।
आपने इस लेख में निस्संदेह लिखा है। तो क्या निःसंदेह गलत है, या दोनों सही हैं।

दोनों सही हैं। कामताप्रसाद गुरु के अनुसार नियम यह है कि विसर्ग के पश्चात श, ष या स आए तो विसर्ग जैसा का तैसा रहता है, अथवा उसके स्थान में आगे का वर्ण हो जाता है, जैसे दुः+शासन=दुःशासन या दुश्शासन। निः+संदेह=निःसंदेह या निस्संदेह।

अपनी टिप्पणी लिखें

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Social media & sharing icons powered by UltimatelySocial