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209. आप ताज़ा सब्ज़ियाँ खाते हैं या ताज़ी सब्ज़ियाँ?

‘ताज़ा’ सब्ज़ियाँ सही है या ‘ताज़ी’ सब्ज़ियाँ? अगर आप उन लोगों में हैं जो ताज़ी सब्ज़ियाँ को सही मानते हैं तो मेरे अगले सवाल का जवाब भी दीजिए। ‘ताज़ा’ ख़बर या ‘ताज़ी’ ख़बर? कन्फ़्यूज़ हो गए ना? बात सच मगर अनोखी है। ताज़ी सब्ज़ियाँ बोलने वाले लोग भी ख़बर के मामले में ताज़ा कर देते हैं जबकि दोनों स्त्रीलिंग शब्द हैं। ऐसा क्यों, जानने के लिए आगे पढ़ें।

जब मैंने यह जानने के लिए फ़ेसबुक पर पोल किया कि कितने लोग ताज़ा सब्ज़ियाँ बोलते हैं और कितने ताज़ी 63% ने ताज़ी सब्ज़ियाँ के पक्ष में वोट किया। शेष 37% ने ताज़ा सब्ज़ियाँ को सही बताया। इससे पहले एक और मंच पर किए गए पोल में तो ताज़ी सब्ज़ियाँ के पक्ष में वोट करने वाले और भी अधिक थे – 82%।

मुझे नहीं मालूम कि आप किसे सही मानते हैं। लेकिन अपने स्तर पर आप जिसे भी सही ठहराएँ, एक हिसाब से आप सही होंगे तो दूसरे हिसाब से ग़लत। क्यों, यह हम नीचे समझेंगे।

हिंदी व्याकरण के हिसाब से ताज़ी सब्ज़ियाँ सही है। इसके अनुसार आकारांत विशेषण (वे विशेषण जिनके अंत में ‘आ’ हो) लिंग और वचन के हिसाब से अपना रूप बदल लेते हैं। जैसे अच्छा एक आकारांत विशेषण है क्योंकि अच्छा के अंत में आ की मात्रा है। इसलिए लड़का, लड़के, लड़की और लड़कियों के मामले में इसका रूप यूँ बदलता है। अच्छा (लड़का), अच्छे (लड़के), अच्छी (लड़की/लड़कियाँ)।

इसी तरह कुछ और उदाहरण हैं – छोटा (कुत्ता)-छोटी (चुहिया); मोटा (डंडा)-मोटी (छड़ी)। लेकिन यहाँ भी कई अपवाद हैं – बढ़िया खाना (पु), बढ़िया चाय (स्त्री); घटिया आदमी (पु), घटिया बात (स्त्री); भुतहा मकान (पु), भुतहा हवेली (स्त्री); भरवाँ बैंगन (पु), भरवाँ कचौड़ी (स्त्री)। ये सब भी आकारांत विशेषण हैं लेकिन इनमें लिंग के हिसाब से कोई बदलाव नहीं आया। (वैसे हिंदी शब्दसागर में भुतहा की एंट्री में उसका स्त्रीलिंग रूप भुतही बताया गया है और उदाहरण के तौर पर भुतही इमली का उल्लेख है।)

फिर से आते हैं ताज़ा पर। ताज़ा भी अच्छा, छोटा और मोटा की तरह एक आकारांत विशेषण है। इसीलिए हिंदी व्याकरण के नियमानुसार अच्छा-अच्छे-अच्छी, छोटा-छोटे-छोटी और मोटा-मोटे-मोटी की ही तरह उसके भी लिंग और वचन के मुताबिक ये तीन रूप बनने चाहिए – ताज़ा (फल), ताज़े (मेवे) और ताज़ी (सब्ज़ी/सब्ज़ियाँ)।

लेकिन यहाँ एक पेच है। जो लोग सब्ज़ी के मामले में ताज़ी लगाते हैं, उनसे मेरा अगला सवाल यह है कि ख़बरों से पहले वे क्या लगाएँगे – ताज़ा या ताज़ी? ताज़ा ख़बरें या ताज़ी ख़बरें? सब्ज़ी भी स्त्रीलिंग है और ख़बर भी। सब्ज़ी भी विदेशी शब्द है और ख़बर भी। यदि स्त्रीलिंग होने के कारण सब्ज़ियों के मामले में हम ‘ताज़ा’ विशेषण को ‘ताज़ी’ कर देते हैं तो ख़बर के मामले में वैसा क्यों नहीं करते? क्या आप ताज़ी ख़बर बोलते हैं या किसी को सुना है ऐसा बोलते हुए?

हम सबने शुरू से रेडियो या टीवी पर समाचार वाचकों को ‘ताज़ा ख़बरें’ ही बोलते सुना है। और वे ऐसा इसलिए बोलते हैं कि यह शब्द उर्दू का है जो अरबी-फ़ारसी परिवार से आया है। इनके विशेषणों में लिंग के आधार पर कोई परिवर्तन नहीं होता चाहे वे आकारांत हो या नहीं। कुछ उदाहरण देखें – बेहूदा आदमी (पु), बेहूदा बात (स्त्री); उमदा खाना (पु), उमदा चाय (स्त्री); आला अफ़सर (पु), आला क़िस्म (स्त्री); जुदा मामला (पु), जुदा राय (स्त्री); जमा धन (पु), जमा रक़म (स्त्री)। एक-दो अपवाद भी याद आ रहे हैं – कमीना आदमी (पु), कमीनी औरत (स्त्री)। इसी तरह बेचारा लड़का (पु), बेचारी लड़की (स्त्री)। और भी हो सकते हैं।

निष्कर्ष यह कि हम उर्दू के नियम से चलें तो ताज़ा को हमेशा ताज़ा ही रहना चाहिए – ताज़ा फल, ताज़ा ख़बरें, ताज़ा सब्ज़ियाँ, ताज़ा ज़ख़्म। और अगर हम हिंदी के नियम से चलें तो लिंग के हिसाब से ख़बरों को भी ताज़ी कहना होगा।

बहुत उलझन है।

कुछ लोग कह सकते हैं कि जिस तरह कमीना के कमीनी/कमीने और बेचारा के बेचारी/बेचारे रूप हमने स्वीकार कर लिए, उसी तरह ताज़ा के ताज़ी और ताज़े रूप भी स्वीकार कर लेने चाहिए। लेकिन ताज़ा और कमीना/बेचारा में एक बुनियादी फ़र्क़ है। कमीनी हर स्त्रीलिंग शब्द के साथ कमीनी ही रहता है – कमीनी सोच, कमीनी हरकत, कमीनी करतूतें। इसी तरह बेचारी लड़की, बेचारी जनता, बेचारी बंदरिया – हर स्त्रीलिंग शब्द के मामले में बेचारी ही रहता है। लेकिन ताज़ा के मामले में हम कभी तो ताज़ी लिखें (ताज़ी सब्ज़ियाँ) और कभी ताज़ा (ताज़ा ख़बरें) – यह कैसे चल सकता है?

चलिए, ताज़ा को हमने ताज़ी कर दिया (हालाँकि अपवादस्वरूप ख़बर में नहीं किया)। मगर उमदा को भी क्या उमदी करेंगे? और आला को आली, जुदा को जुदी, जमा को जमी?

अगर करेंगे तो सवाल यह भी उठेगा कि जब उर्दू के शब्दों को हिंदी के नियमों में बाँध रहे हैं तो हिंदी के अपने शब्दों को पहले क्यों नहीं सुधारते? बढ़िया को बढ़ियी और घटिया को घटियी नहीं भी करते (उस तरह बोलना बहुत-बहुत मुश्किल होगा) मगर भुतहा को भुतही और भरवाँ को भरवीं तो कर सकते हैं!

कहने का अर्थ यह कि जब हिंदी के अपने शब्दों में भी अपवाद चल रहे हैं (जहाँ कुछ आकारांत विशेषणों में ‘आ’ का ‘ई’ या ‘ए’ नहीं होता) तो उर्दू के शब्दों को भी अपवाद क्यों नहीं मान लिया जाए? क्यों उनपर हिंदी का नियम ज़बरदस्ती लादा जाए?

लेकिन यह भी सच है कि भाषा को व्याकरण के नियमों से नहीं बाँधा जा सकता। जिस तरह हिंदी के आकारांत विशेषणों में भरवाँ/भूतहा और बढ़िया/घटिया जैसे अपवादों को हमने मान लिया है, उसी तरह उर्दू के आकारांत विशेषणों में भी कमीनी और ताज़ी जैसे कुछ अपवादों को हमें मान लेना चाहिए।

उर्दू के आकारांत विशेषणों को लेकर जो भ्रम की स्थिति आज है, वह आज से सौ साल पहले भी थी। उन दिनों भी हिंदी के दिग्गज अलग-अलग नियम अपना रहे थे। 1920 में प्रकाशित अपने ग्रंथ ‘हिंदी व्याकरण’ में कामताप्रसाद गुरु ने इस मुद्दे का ज़िक्र किया है। गुरुजी ने अपनी तरफ़ से कोई राय नहीं दी है कि क्या होना चाहिए। उन्होंने केवल यह बताया है कि प्रचलन में क्या है और आम प्रवृत्ति किस तरफ़ जाती दिखती है।

उन्होंने लिखा है कि जमा, उमदा और ज़रा जैसे कुछ शब्दों को छोड़ बाक़ी आकारांत उर्दू विशेषणों का रूपांतर हिंदी आकारांत विशेषणों के समान होता है। इस सिलसिले में उन्होंने जुदी/जुदे और बेचारे/बेचारी के उदाहरण भी दिए हैं। मगर साथ ही ताज़ा की मिसाल देते हुए राजा शिवप्रसाद द्वारा ‘ताज़ा हवा’ लिखे जाने का उल्लेख भी किया है (देखें चित्र) और उसे ग़लत नहीं ठहराया है।

ताज़ा के मामले में आपकी उलझन को और बढ़ाते हुए इस पोस्ट का अंत एक पहेली के साथ करता हूँ। सुनहरी मौक़ा सही है या सुनहरा मौक़ा? अपनी राय नीचे कॉमेंट बॉक्स में लिखें। जवाब अगले सप्ताह।

 

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