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आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

110. जिसे नहीं कोई रोग, वह निरोग है या नीरोग?


जिसके पास धन न हो, उसे निर्धन कहते हैं, जिसे कोई लज्जा न हो, उसे निर्लज्ज कहते हैं, जिसके मन में ममता न हो, उसे निर्मम कहते हैं, जिसे कोई डर न हो, उसे निडर कहते हैं, तो जिसे कोई रोग न हो, उसे क्या कहेंगे – निरोग, नीरोग या निरोगी? जब इसके बारे में एक फ़ेसबुक पोल किया गया तो 80% ने निरोग के पक्ष में वोट दिया। क्या वे सही हैं? जानने के लिए आगे पढ़ें।

निरोग या नीरोग – यह एक ऐसा शब्द है जो आजकल शायद ही कोई बोलचाल में इस्तेमाल करता होगा। आप अगर बीमार न हों या बीमारी से मुक्त हो चुके हों तो आप कहेंगे कि मैं स्वस्थ हो गया हूँ या ठीक हो गया हूँ। लेकिन कुछ लोग हैं जो कम-से-कम लिखने में इसका इस्तेमाल करते हैं और वे अक्सर भ्रम का शिकार होते हैं कि निरोग लिखें या नीरोग या कि निरोगी। आज करेंगे उनकी शंका का समाधान।

यदि संस्कृत की दृष्टि से देखें तो सही है नीरोग (देखें चित्र)। क्यों सही है, यह हम नीचे समझेंगे।

नीरोग में निस् उपसर्ग लगा है जिसके कई अर्थ होते हैं मगर एक प्रमुख अर्थ है किसी वस्तु, गुण, अवस्था आदि का अभाव यानी न होना। निस् का इस्तेमाल कई शब्दों में हुआ है लेकिन आपको निस् बहुत कम देखने को मिलेगा। कारण, अधिकतर शब्दों में वह निर्, निष्, निश् या विसर्ग में बदल जाता है। कहाँ क्या बदलेगा, इसके कुछ नियम हैं लेकिन इस पोस्ट में मैं नियमों के बारे में विस्तार से बात करने के बजाय केवल उदाहरणों से समझाऊँगा। उदाहरणों से ही नियम स्पष्ट हो जाएगा। हाँ, र से शुरू होने वाले शब्दों (जैसे रोग) के संबंध में नियम की बात होगी क्योंकि वही आज की हमारी चर्चा का विषय भी है।

पहले कुछ उदाहरण जिनमें निस् अन्य रूपों में बदलता है।

निस् का निर् में परिवर्तन

  • स्वर : निस्>निर्+आशा=निराशा, निस्>निर्+अक्षर=निरक्षर आदि। 
  • ग-घ : निस्>निर्+गुण=निर्गुण, निस्>निर्+घोष=निर्घोष आदि।
  • ज-झ : निस्>निर्+जल=निर्जल, निस्>निर्+जीव=निर्जीव आदि।
  • द-ध : निस्>निर्+दल=निर्दल, निस्>निर्+धन=निर्धन आदि।
  • ब-भ : निस्>निर्+बल=निर्बल, निस्>निर्+भय=निर्भय आदि।
  • य-र*-ल-व : निस्>निर्+युक्ति=निर्युक्ति, निस्>निर्+लिप्त=निर्लिप्त, निस्>निर्+विवाद=निर्विवाद आदि।
  • र* : इसमें भी निस् निर् में बदलता है लेकिन उसमें एक अतिरिक्त परिवर्तन होता है जिसके बारे में हम अंत में बात करेंगे।

निस् का निष्/निश् में परिवर्तन

  • क-ख : निस्>निष्+कपट=निष्कपट, निस्>निष्+काम=निष्काम आदि।
  • प-फ : निस्>निष्+प्राण=निष्प्राण, निस्>निष्+फल=निष्फल आदि।
  • च-छ : निस्>निश्+चल=निश्चल, निस्>निश्+छल=निश्छल आदि।
  • त से पहले निस् में कोई परिवर्तन नहीं होता। निस्+तेज=निस्तेज, निस्+तरंग=निस्तरंग।

निस् का निः में परिवर्तन

  • श-स : निस्>निः+शब्द=निःशब्द, निस्>निः+संतान=नि:संतान। (निश्शब्द और निस्संतान जैसे रूप भी मान्य हैं।)

अब हम आते हैं र पर। र के बारे में बिल्कुल आसान नियम है। नियम यह है कि निस् के बाद अगर र से शुरू होने वाला कोई शब्द आए तो निस् पहले निर् में बदलेगा लेकिन एकसाथ र की दो ध्वनियाँ हो जाने के कारण एक र् लुप्त हो जाएगा और नि में मौजूद इ की मात्रा दीर्घ हो जाएगी। यानी नि का नी हो जाएगा। नीचे आप नीचे दी गई प्रक्रिया से समझ सकते हैं।

  • निस्>निर्‌+रस (निर्रस)=नी+रस=नीरस
  • निस्>निर्‌+रंध्र (निर्रंध्र)=नी+रंध्र=नीरंध्र
  • निस्>निर्+रव (निर्रव)=नी+रव=नीरव।
  • इसी तरह निस्>निर्+रोग (निर्रोग)=नी+रोग=नीरोग।

यानी नियमानुसार तो निस् (निर्) और रोग के योग से नीरोग ही होगा, निरोग नहीं। परंतु यह भी सही है कि आज की तारीख़ में 80% लोग निरोग को सही बता रहे हैं और शब्दकोश भी न केवल निरोग को बल्कि निरोगी को भी अपने पन्नों में स्थान दे रहे हैं (देखें चित्र)।

अगर मैंने विकल्प दिया होता तो कई लोग संभवतः निरोगी को भी सही बताते। इसलिए हमें यह भी जानना चाहिए कि नीरोग से निरोग या निरोगी कैसे बना होगा। इसके बारे में मेरी दो व्याख्याएँ हैं।

हिंदी का नि उपसर्ग

संस्कृत में जिस तरह नकारात्मक भाव के लिए ‘निस्’ उपसर्ग अपनाया जो अलग-अलग ध्वनियों से पहले अलग-अलग रुपों में बदलता है, उसी तरह हिंदी ने ‘नि’ उपसर्ग को अपनाया, विशेषकर उन शब्दों से पहले जो संस्कृत से नहीं आए थे या फिर आए थे तो अपना रूप बदल चुके थे। नीचे कुछ उदाहरण देखें।

  • नि+डर=निडर
  • नि+कम्मा=निक्कमा
  • नि+धड़क=निधड़क
  • नि+खोट=निखोट
  • नि+पूत=निपूत
  • नि+मुँहा=निमुँहा

हो सकता है, इन शब्दों की देखादेखी कुछ लोगों ने नीरोग को निरोग बोलना और लिखना शुरू कर दिया हो। यानी नि+रोग=निरोग। कुछ लोगों को यह निरोग शब्द भी अटपटा लगा होगा। उनके अनुसार जिसे रोग हो, उसे ‘रोगी’ कहा जाता है तो फिर जिसे रोग न हुआ हो या जो रोग से मुक्त हो चुका हो, उसे ‘निरोगी’ कहना चाहिए – रोगी और निरोगी। सो निरोगी भी चल निकला।

नीरस और नीरव भी क्यों नहीं बदले?

अब केवल एक प्रश्न रह जाता है। अगर हम कहें कि हिंदी के ‘नि’ उपसर्ग के कारण नीरोग का तो निरोग और निरोगी हो गया, तो फिर नीरस और नीरव का निरस और निरव क्यों नहीं हुआ। वे क्यों आज भी नीरस और नीरव ही बोले और लिखे जाते हैं?

मेरी समझ से इसका कारण यह है कि नीरस और नीरव में ‘नी’ (दीर्घ स्वर) के बाद ‘र’ (ह्रस्व स्वर) है। किसी दीर्घ स्वर के बाद ह्रस्व स्वर बोलना आसान होता है। लेकिन दो दीर्घ स्वरों को साथ बोलना थोड़ा मुश्किल होता है। नीरोग में यही बात है। ‘नी’ भी दीर्घ और ‘रो’ भी दीर्घ। हो सकता है, इस कारण भी नीरोग निरोग हो गया हो, जबकि नीरस और नीरव ज्यों-के-त्यों बने रहे।

आज मैंने निस् उपसर्ग की बात की और उसके बदले हुए रूप भी देखे। लेकिन निस् उपसर्ग हमेशा नकार के अर्थ में ही नहीं आता। कई बार वह निश्चितता या पूर्णता का भी बोध कराता है। मसलन निस्तार, निर्गम, निर्झर, निस्तब्ध, निर्यात, निर्वाण आदि में कोई नकार भाव नहीं है।

निस् के बारे में जो नियम हैं, बिल्कुल वही नियम दुस् (अर्थ – बुरा या कठिन) के मामले में भी लागू होते हैं। यानी दुस् का स् भी कहीं र्, कहीं ष्, कहीं श और कहीं विसर्ग में बदलेगा। मसलन दुर्योधन और दुःशासन में योधन और शासन से पहले दुस् ही है जिसका स् (य से पहले) र् में और (श से पहले) विसर्ग में बदल गया है। दुश्शासन भी चलता है।

अब बारी एक सवाल की। बताइए, दुस् के बाद चक्र लगेगा तो क्या शब्द बनेगा – दुर्चक्र, दुःचक्र, दुश्चक्र या दुष्चक्र। इस शब्द के बारे में हम पहले चर्चा कर चुके हैं और आप इस लिंक पर जाकर जान सकते हैं कि आपका जवाब सही है या ग़लत।

 

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