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34. दीवा (दीया)+अली (पंक्ति) = दीवाली या दिवाली?

दिवाली और दीवाली में कौनसा शब्द सही है? अगर फ़ेसबुक पर किए गए एक पोल को पैमाना मानें तो अधिकतर लोगों (57%) दिवाली को ही सही मानते हैं हालाँकि दीवाली को सही बताने वाले (43%) भी कोई बहुत कम नहीं हैं। अब सवाल है, सही क्या है। जानने के लिए आगे पढ़ें।

कई लोगों का दावा है कि इन दोनों में से कोई भी सही नहीं है। वे दीपावली को सही बताते हैं क्योंकि वे मानते हैं कि दिवाली हो या दीवाली, यह शब्द दीपावली का ही विकृत/परिवर्तित रूप हैं। लेकिन यह तो वैसे ही हुआ कि कोई घी, गाँव और दूध को ग़लत ठहरा दे यह कहते हुए कि मूल संस्कृत शब्द तो घृत, ग्राम और दुग्ध ही हैं।

शब्दकोश दीवाली को सही बताते हैं। उनके अनुसार भी यह शब्द दीपावली (संस्कृत) से बना है (देखें चित्र)।

हिंदी शब्दसागर में दीवाली और दिवाली।

दिवाली या दीवाली शब्द संस्कृत में नहीं है। हो सकता है कि लंबा नाम होने के कारण आम लोगों की ज़ुबान से दीपावली का ‘प’ धीरे-धीरे ग़ायब हो गया हो और उसकी ‘आ’ की मात्रा अगले वर्ण ‘व’ पर जा लगी हो और शब्द बन गया हो दीवाली। मात्रा का यह हेरफेर कोई अजीब बात नहीं है। हमने गुलिस्ताँ को गुलसिताँ में बदलते देखा है (हम बुलबलें हैं इसकी, यह गुलसिताँ हमारा)।

यदि ऐसा है कि दीपावली से ‘प’ के हट जाने और उसकी मात्रा ‘व’ के साथ जुड़ने से यह शब्द बना है तो दीवाली के सही होने में कोई संदेह नहीं है।

लेकिन दीवाली शब्द के जन्म का एक और तरीक़ा भी हो सकता है। दीपावली की ही तर्ज़ पर लेकिन सीधे-सीधे उससे नहीं। दीपावली दीप (दीया) और अवली (पंक्ति) की संधि से बना है। क्या यह संभव नहीं कि किसी भाई ने दीप की जगह दीवा और अवली की जगह अली कर दिया हो (क्योंकि दीवा और अली का भी क्रमशः वही अर्थ है – दीया और पंक्ति – जो दीप और अवली का है) और नया शब्द बना दिया हो दीवाली (दीवा+अली)? इस आधार पर भी देखें तो भी दीवाली ही सही निकलता है।

इस तरह हम कह सकते हैं कि दीवाली बना ‘दीवा’ और ‘अली’ से मिलकर और दीवाली का ‘दी’ घिसकर बन गया दिवाली।

मगर मुद्दा यहीं ख़त्म नहीं होता। असली सवाल तो बना ही रहता है कि यह दीवाली, आख़िर दिवाली कैसे हो गया कि आज बहुमत की ज़ुबान पर दिवाली है, दीवाली नहीं।

मेरी समझ से इसका कारण दीवाली शब्द में मौजूद मात्राएँ हैं जो तीनों की तीनों भारी हैं। तीन वर्ण, तीनों पर दीर्घ मात्राएँ – ई(दी), आ(वा), ई(ली)। ऐसे शब्द बोलने में हमारी जीभ को तकलीफ़ होती है और वह एकाध मात्रा को हलका कर देती है, ख़ासकर वह जो शुरू में हो।

इस प्रवृत्ति के कई उदाहरण हैं। जैसे शब्द है पीटना लेकिन उससे संज्ञा बनती है पिटाई, न कि पीटाई। इसी तरह शब्द है मीठा लेकिन उससे संज्ञा बनती है मिठाई, न कि मीठाई। महाराष्ट्र में एक ज़िला है सातारा लेकिन हिंदी में उसे सतारा बोलते हैं। इसी तरह उर्दू का आज़ादी पंजाबी में अजादी हो जाता है – लेकिन सिर्फ़ बोलने में, लिखने में नहीं। लिखते हैं आजादी, बोलते हैं अजादी।

पंजाबी का यह आजादी/अजादी एक महत्वपूर्ण सुराग़ देता है दिवाली और दीवाली के बारे में। हो सकता है, पहले लोग दीवाली लिखते रहे हों लेकिन चूँकि तीन दीर्घ स्वर बोलने में परेशानी होती थी इसलिए आम लोगों के मुँह से उच्चारण दिवाली का निकलता होगा। फिर धीरे-धीरे कई लोग (जो मूल स्पेलिंग से वाक़िफ़ नहीं थे), वे लिखने में भी दिवाली का ही प्रयोग करने लगे क्योंकि बोला तो वही जा रहा था। और इस तरह दीवाली की जगह दिवाली ज़्यादा प्रचलित हो गया होगा।

अंत में एक सवाल उन सभी से जो दीवाली को सही मानते हैं। ज़रा किसी से बात करते हुए दीवाली बोलकर देखिए – (जैसे इस बार दिल्ली में दीवाली पर पटाखे कम छूटेंगे), और ध्यान दीजिए कि आपकी जीभ दिवाली बोल रही है या दीवाली।

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