क्या पत्नी और धर्मपत्नी के अर्थ में कोई अंतर है? क्या हर पत्नी को धर्मपत्नी कहा जा सकता है या केवल पहली पत्नी को जैसा कि दक्षस्मृति में लिखा हुआ है? इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने के लिए मैंने हिंदी और संस्कृत के शब्दकोशों और संस्कृत के ग्रंथों को टटोला। उनके आधार पर जो निष्कर्ष निकला है, वही पेश है आज की चर्चा में।
धर्मपत्नी का अर्थ क्या है, इसका पता दो तरह से लगाया जा सकता है। पहला शब्दकोशों के मार्फ़त जो कि आसान तरीक़ा है। शब्द खोजा और उसका अर्थ देख लिया। दूसरा तरीक़ा है संस्कृत के ग्रंथों – स्मृतियों, धर्मशास्त्रों आदि – को टटोलना कि उनमें क्या लिखा हुआ है या वहाँ इसका किस अर्थ में प्रयोग हुआ है। यह कठिन तरीक़ा हैं क्योंकि इसके लिए धर्मशास्त्रों में धर्मपत्नी से जुड़ा टेक्स्ट खोजना पड़ता।
मैंने पहले आसान तरीक़ा अपनाया यानी शब्दकोशों का। लेकिन शब्दकोशों ने मेरी दुविधा दूर करने के बजाय और बढ़ा दी। संस्कृत कोश में तो इस शब्द का एक ही अर्थ लिखा हुआ था – वैध पत्नी (देखें चित्र) लेकिन हिंदी शब्दसागर में दोनों तरह की बातें मिलीं (देखें चित्र) – 1. वह स्त्री जिसके साथ धर्मशास्त्र की रीति से विवाह हुआ हो। 2. विवाहिता स्त्री।
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अब इसका क्या अर्थ निकालें? जिस स्त्री का धर्मशास्त्र के अनुसार विवाह हुआ हो, वह भी धर्मपत्नी है और जो (बिना धर्मशास्त्रीय विधि के भी) केवल विवाहिता है, वह भी धर्मपत्नी है?
इस कन्फ़्यूश्ज़न को और बढ़ा दिया उसी एंट्री में दी गई एक और जानकारी ने। इसमें दक्षस्मृति के हवाले से बताया गया है कि पहली पत्नी धर्मपत्नी है, बाक़ी कामपत्नी/कामपत्नियाँ हैं। मैंने पुष्टि करने के लिए दक्षस्मृति देखी। उसके चौथे अध्याय में यह बात लिखी हुई है (देखें चित्र)।
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अब अगर दक्षस्मृति को मानें तो यदि किसी पुरुष ने धार्मिक विधि से ही सही, एकाधिक शादियाँ की हैं तो उसकी पहली पत्नी ही धर्मपत्नी कही जा सकती है, शेष नहीं।
इस कन्फ़्यूज़न से निकलने का एक ही तरीक़ा था कि दक्ष ने धर्मपत्नी की जो परिभाषा दी है, उसकी पुष्टि या समर्थन करता हुआ कोई प्रयोग हमें धर्मग्रंथों में मिलता है क्या? क्या हिंदू धर्मग्रंथों में केवल पहली पत्नी को धर्मपत्नी कहा गया है, बाक़ियों को नहीं?
इसका पता लगाने के लिए मैंने महाभारत और रामायण की शरण लेने की सोची। रामायण में दशरथ की तीन रानियाँ थीं और महाभारत में पांडु की दो। मैंने जानने की कोशिश की कि क्या इसमें केवल पहली पत्नी को धर्मपत्नी बताया गया है या सभी पत्नियों को।
पहले मैंने महाभारत में देखा और उसके बाद रामायण को देखने की आवश्यकता नहीं पड़ी। महाभारत में धर्मपत्नी का ज़िक्र कई जगहों पर आया है। आदिपर्व में ही मैंने कम-से-कम तीन स्थानों पर धर्मपत्नी का उल्लेख देखा और उन सबसे क्या पता चला, यह आप नीचे देखें।
जब किंदम ऋषि के शाप से दुखी पांडु वन जाने के बारे में सोच रहे हैं, तब उनकी पत्नियाँ – कुंती और माद्री यह कहती हैं।
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कुन्ती और माद्री वनवास का संकल्प किए हुए पति के वचन सुनकर यथायोग्य वाक्य बोलीं ॥25॥ हे भरतश्रेष्ठ ! दूसरे बहुत आश्रम हैं, जिनमें रहकर आप हम दो धर्मपत्नियों के साथ कठोर तपस्या कर सकेंगे और इसमें संदेह नहीं है कि इस प्रकार आप स्वर्ग के स्वामी भी हो सकेंगे ॥26॥
- ध्यान दे, कुंती और माद्री दोनों ख़ुद को धर्मपत्नियाँ बता रही हैं।
अगला तब जब शाप के कारण पांडु की माद्री के साथ समागम करते ही मृत्यु हो जाती है। तब देखें, कुंती क्या कहती हैं।
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अनंतर कुंती बोलीं, मैं बड़ी धर्मपत्नी हूँ, प्रधान धर्मफल मुझको ही मिलना चाहिए, इसलिए हे माद्री! जो अवश्यंभावी बात है, उससे मुझे मत रोको ॥23॥
- यहाँ कुंती ने ख़ुद को ज्येष्ठ धर्मपत्नी कहा है। यानी कुंती और माद्री दोनों धर्मपत्नियाँ हैं – कुंती ज्येष्ठ धर्मपत्नी, माद्री कनिष्ठ धर्मपत्नी।
एक तीसरा उदाहरण तब का है जब कश्यप ऋषि और उनकी पत्नियों का उल्लेख आता है। देखिए, क्या लिखा हुआ है।
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हे ब्रह्मन्! पहले सत्ययुग में प्रजापति की दो शुभलक्षणा कन्याएँ थीं – कद्रू और विनता। वे दोनों बहनें रूप-सौंदर्य से संपन्न और अद्भुत थीं ॥5॥
अनघ, उन दोनों का विवाह महर्षि कश्यप के साथ हुआ था। एक दिन प्रजापति ब्रह्मा के समान शक्तिशाली महर्षि कश्यप ने अत्यंत हर्ष में भरकर अपनी दोनों धर्मपत्नियों को प्रसन्नतापूर्वक वर देते हुए कहा ॥6॥
- यहाँ भी कश्यप की दोनों पत्नियों को धर्मपत्नी कहा गया है।
इन तीनों उदाहरणों से साबित होता है कि धर्मपत्नी कहलाने के लिए पहली पत्नी होना अनिवार्य नहीं है। वैध रूप से ब्याही गई किसी भी पत्नी को धर्मपत्नी कहा जा सकता है।
अब यहाँ एक प्रश्न उठता है। वैध रूप का क्या मतलब है? हिंदू शास्त्रों में 8 प्रकार के विवाह बताए गए हैं जिनमें कुछ वे हैं जिनमें वधू की स्वेच्छा शामिल होती है और कुछ ऐसे हैं जिनमें उसकी स्वेच्छा शामिल नहीं होती बल्कि अपहरण करके भी विवाह किया जा सकता है। ऐसे में प्रश्न उठ सकता है कि क्या किसी लड़की की इच्छा के विरुद्ध या उनकी किसी भी प्रकार की कमज़ोरी का लाभ उठाकर किए गए विवाह जैसे राक्षस या पैशाच विवाह भी धर्माधारित माने जाएँगे?
संस्कृत के विद्वान डॉ. शक्तिधरनाथ पांडेय के अनुसार इसका जवाब ‘हाँ’ में है। उनके मुताबिक़ हिंदू शास्त्रों में वर्णित आठों प्रकार के विवाह धर्माधारित माने जाएँगे और उस विवाह बंधन में बँधी किसी भी स्त्री को अपने पति की धर्मपत्नी कहा जाएगा। उनका यह मत है कि हिंदू वैवाहिक विधि के अलावा किसी अन्य तरीक़े से शादी करने पर स्त्री को धर्मपत्नी नहीं कहा जा सकता। यानी किसी हिंदू ने स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत किसी भी धर्म की स्त्री से शादी की तो वह उसकी धर्मपत्नी नहीं है।
जब धर्मपत्नी पर बात होगी तो दंपति और दंपती का भी ख़्याल आता है। इनमें से कौनसा सही है, इसपर हम पहले चर्चा कर चुके हैं। रुचि हो तो पढ़ें।