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212. गवाही कक्ष कठघरा है या कटघरा या कटहरा?

कठघरा, कटघरा और कटहरा में कौनसा सही है? इसपर मैंने अलग-अलग समय में दो मंचों पर राय माँगी और दोनों में तक़रीबन दो-तिहाई वोट कठघरा के पक्ष में पड़े। शेष एक-तिहाई का बड़ा हिस्सा कटघरा को सही मानता था जबकि कटहरा के समर्थक बहुत कम थे। इन तीनों में सही क्या है, इसी पर चर्चा करेंगे आज और पाएँगे रोचक नतीजे। रुचि हो तो पढ़ें।

सामान्यतः जब मैं अलग-अलग रूपों वाले शब्दों पर चर्चा करता हूँ तो किसी एक को सही और शेष को ग़लत बताता हूँ। लेकिन आज की चर्चा में ऐसा नहीं होगा।

कारण, हिंदी के सबसे प्रामाणिक और सम्मानित शब्दकोश हिंदी शब्दसागर ने अपने पन्नों में तीनों को स्थान दिया है (देखें चित्र)। जब कोश में तीनों हैं तो मैं कैसे एक को सही और दूसरे को ग़लत बता सकता हूँ?

आपने ऊपर के तीनों चित्र ध्यान से देखे होंगे तो यह भी देखा होगा कि कोशकार ने कटहरा का अर्थ कठघरा नहीं दिया, कटघरा दिया है। इसी तरह कठघरा की एंट्री में लिखा है – दे. कटघरा। इसका अर्थ यह है कि भले ही मेरे दोनों सर्वे में कठघरा को सर्वाधिक वोट मिले थे – तक़रीबन दो-तिहाई, लेकिन हिंदी शब्दसागर कठघरा के मुक़ाबले कटघरा के प्रति ज़्यादा झुकाव रखता दिखाई देता है।

कठघरा को सबसे ज़्यादा वोट क्यों मिले, यह समझना मुश्किल नहीं है। हर कोई जानता है कि यह शब्द लकड़ी से बने घर या घेरे के लिए इस्तेमाल होता है। लकड़ी को काठ (संस्कृत में काष्ठ) कहते हैं, यह भी ज़्यादातर लोगों को मालूम है। इसलिए जब ऐसे पोल होते हैं तो प्रचलन के बजाय दिमाग़ से सोचने वाले लोग काठ+घर से बने कठघरा को शत-प्रतिशत शुद्ध मानकर उसे सही ठहरा देते हैं।

लेकिन प्रचलन में शायद कटघरा ज़्यादा है और इसीलिए हिंदी शब्दसागर ही नहीं, दूसरे शब्दकोशों ने भी अपनी प्रविष्टियों में कटहरा को प्राथमिकता दी है (देखें चित्र)।

इसमें तो कोई शक नहीं कि पहले कठघरा ही बना होगा और उससे कटघरा और कटहरा बने। कठघरा से कटघरा क्यों हुआ, इसका पक्का जवाब मेरे पास नहीं है हालाँकि एक परिकल्पना है जो मैं आपके साथ शेयर करूँगा।

मैंने दोनों शब्द बोलकर देखे – कठघरा और कटघरा – और पाया कि कठघरा के मुक़ाबले कटघरा बोलना आसान है बल्कि यदि असावधानीवश बोलूँ तो मुँह से कटघरा ही निकलता है। ऐसा क्यों? क्या इसलिए कि ‘ठ’ और ‘घ’ दोनों ही महाप्राण ध्वनियाँ हैं और दो महाप्राण ध्वनियों को एकसाथ बोलना मुश्किल होता है और मुखसुख के चलते पहली ध्वनि महाप्राण से अल्पप्राण हो जाती है?

जिन साथियों को अल्पप्राण और महाप्राण ध्वनियों की जानकारी नहीं है, उनके हित में कुछ बातें इन दो प्रकार की ध्वनियों के बारे में कर ली जाएँ। डरें नहीं, मैं आसान से आसान तरीक़ों से आपको दोनों में अंतर बताऊँगा।

परिभाषा के हिसाब से जिन ध्वनियों के उच्चारण में प्राणवायु (हवा) ज़्यादा निकलती है, वे महाप्राण और जिनमें कम निकलती है, वे अल्पप्राण कहाती हैं। आप क और ख बोलते समय मुँह के आगे हथेली रखकर ख़ुद ही समझ सकते हैं कि कौनसा व्यंजन महाप्राण है और कौनसा अल्पप्राण। ‘क’ अल्पप्राण है, ‘ख’ महाप्राण। इसी तरह ‘ग’ अल्पप्राण है और ‘घ’ महाप्राण। वर्गीय व्यंजनों में इस तरह के अल्पप्राण-महाप्राण के जोड़े होते हैं।

यदि आपको ककहरा याद हो तो ऊपर के उदाहरणों से समझ गए होंगे कि कवर्ग से पवर्ग तक के पाँचों वर्गों के पहले, तीसरे और पाँचवें वर्ण अल्पप्राण हैं और दूसरे व चौथे वर्ण महाप्राण। इसके अलावा श, ष, स और ह भी महाप्राण हैं जबकि य, र, ल, व और सारे स्वर अल्पप्राण हैं (देखें चित्र)।

अल्पप्राण और महाप्राण को एक और तरीक़े से समझा जा सकता है। जिन व्यंजनों में हकार की ध्वनि रहती है, वे महाप्राण हैं। बाक़ी अल्पप्राण हैं। हकार की ध्वनि भी न पता चले तो जिन ध्वनियों को अंग्रेज़ी में लिप्यंतरित करने के लिए हम भारतीय h लगाते हैं, वे सभी (कुछ अपवादों को छोड़) महाप्राण हैं। जैसे ख (kh), घ (gh), छ (chh), झ (jh), ठ (Th), ढ (Dh), थ (th), ध (dh), फ (ph), भ (bh), श (sh), ष (sh) और ह (h)। अपवाद – च (ch) और द (th) लिखने के लिए हम h लगाते हैं लेकिन वे अल्पप्राण हैं। इसी तरह स लिखने में कोई h नहीं लगता लेकिन वह महाप्राण है।

अल्पप्राण और महाप्राण ध्वनियों पर संक्षिप्त चर्चा के बाद फिर से मूल मुद्दे पर आते हैं।

मेरा अनुमान है कि दो विजातीय महाप्राण ध्वनियाँ बहुत कम शब्दों में एकसाथ आती हैं और जहाँ आती हैं, वहाँ भी एक ध्वनि के अल्पप्राण में बदलने की संभावना बनी रहती है।

दूसरे शब्दों में कहूँ दो सजातीय महाप्राण ध्वनियाँ जैसे ख-ख, घ-घ, ध-ध, भ-भ तो किसी शब्द में एकसाथ आ सकती हैं (छाछ, घाघ, ठाठ, थोथा, फूफा, भाभी, शीश) लेकिन ऐसे शब्द बहुत ही कम हैं जिनमें दो विजातीय महाप्राण ध्वनियाँ (भ-ठ, ख-घ, झ-फ) एकसाथ आती हैं। मैंने खोजे तो ये थोड़े-बहुत शब्द मुझे याद आए – झूठ, खीझ, भोथरा, धोखा, खाझा, साथी।

हो सकता है कि खोजने पर ऐसे सौ-पचास या डेढ़-दो सौ शब्द और मिल जाएँ। मगर इसके विपरीत ऐसे शब्द हज़ारों की संख्या में हैं जिनमें अल्पप्राण-महाप्राण या दो अल्पप्राण ध्वनियाँ साथ-साथ हैं।

दो महाप्राण ध्वनियों के साथ-साथ आने में क्यों दिक़्क़त है, यह मुझे नहीं मालूम। शायद भाषा वैज्ञानिक इसका बेहतर जवाब दे सकें। लेकिन दिक़्क़त तो है, यह इसी से साबित होता है कि 1. ऐसे शब्द बहुत कम हैं और 2. जो भी गिने-चुने शब्द हैं, उनमें भी बाद की ध्वनि के अल्पप्राण में बदलने की प्रवृत्ति पाई जाती है। झूठ/झूट, खीझ/खीज, धोखा/धोका – ऐसे कई उदाहरण हैं।

सो हो सकता है, इसी प्रवृत्ति के चलते कठघरा का कटघरा हो गया हो। चूँकि ठ और घ दोनों महाप्राण हैं तो किसी एक को अल्पप्राण में बदलना था। सो ठ ट में बदल गया।

जहाँ तक कटघरा के कटहरा में बदलने का मामला है तो उसे समझने के लिए हमें फिर से महाप्राण ध्वनि के चरित्र को समझना होगा। आपने ऊपर पढ़ा कि महाप्राण ध्वनियों में हकार रहता है। जैसे घ को आप ग्+ह कह सकते हैं, ध को द्+ह कह सकते हैं, थ को आप त्+ह कह सकते हैं। सोचिए, अगर किसी शब्द में ऐसा परिवर्तन हो कि उसकी महाप्राण ध्वनि में केवल हकार रह जाए तो? यानी घ में से ग् निकल जाए, ध में से द् निकल जाए और थ में से त् निकल जाए तो? तब बचेगा केवल ह।

चौंकिए मत। ऐसे कई उदाहरण हैं। मैं केवल दो उदाहरण देता हूँ।

एक वधू, दूसरा कहना। संस्कृत का वधू हिंदी में बहू हो गया। कैसे? ‘व’ का ‘ब’ हुआ और ‘ध’ में से ‘द्’ निकल गया। बचा रह गया ‘ह’। वधू (Vadhoo) का हो गया बहू (Bahoo)। बीच से द (d) ग़ायब।

इसी तरह कथन के ‘थ’ में से ‘त्’ निकल गया। बचा रह गया ‘ह’। कथन (Kathan) से बना कहन (Kahan) और उससे कहना। कहानी भी इसी तरह कथानक/कथानिका से बना है।

सो जो परिवर्तन वधू>बहू और कथन>कहना में हमें दिखता है, वही कटघरा>कटहरा में भी हुआ। कटघरा में जो ‘घ’ है, उसमें से ‘ग्’ निकल गया और बचा रह गया ‘ह’। कटघरा (KataGhara) बन गया कटहरा (KataHara)।

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One reply on “212. गवाही कक्ष कठघरा है या कटघरा या कटहरा?”

माननीय महोदय,
आज आपकी “दो महाप्राण” ध्वनि वाले शब्दों की बात पर विचार किया. ऐसे शब्दों का प्रचलन तभी हो सका है जब पहले महाप्राण के संग दीर्घ मात्रा हो, इससे इसके उच्चारण में पर्याप्त समय मिल जाता है. कुछ निरर्थक शब्द बना कर देखे जैसे, धखा, खठ आदि. पर इनके बोलने में अतिरिक्त सावधानी की आवश्यकता लगी और इसीलिये शायद ये शब्द प्रचलित नहीं हुए. आपकी पोस्ट बेहद ज्ञानवर्धक हैं, आपका एक पुराना साथी.

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