‘चंदा मामा दूर के…’ यह बालगीत और उसकी यह पहली लाइन तो हम सब जानते हैं लेकिन ‘पूए पकाए किस चीज़ के’, इसके बारे में अलग-अलग मत हैं। कोई कहता है गूड़ (गुड़) के, कोई कहता है बूर के तो कोई दूध और पूर के भी बताता है और सबके पक्ष में अपने-अपने तर्क हैं। आख़िर सही क्या है, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।
चंदा मामा दूर के, पूए पकाएँ किस चीज़ के? यह सवाल मेरे दिमाग़ में तबसे चल रहा था जबसे मुझे कविता, तुकबंदी और वर्तनी की समझ आई यानी किशोरावस्था से।
कारण यह कि मेरी माँ जब यह गीत गाती थी तो उसमें ‘गुड़’ से पूए पकाने की बात होती थी और मुझे समझ में नहीं आता था कि ‘दूर’ और ‘गुड़’ की तुक कैसे मिल सकती है। दूर के पहले वर्ण के साथ ‘ऊ’ है, गुड़ के पहले वर्ण के साथ ‘उ’ है। दूर में अंत में ‘र’ है, गुड़ में ‘ड़’ है। आम तौर पर कविताओं में ऐसी गड़बड़ियाँ नहीं हुआ करतीं। इसलिए एक संदेह-सा मन में बना हुआ था कि क्या वहाँ कोई और शब्द है। मगर उस संदेह को दूर करने की ज़रूरत कभी पड़ी नहीं क्योंकि जब मेरी बेटी हुई तो मेरी पत्नी ने ख़ुद उसके लिए लोरियाँ और गीत रचे और चंदा मामा वाला गाना गाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी।
अभी कुछ दिनों पूर्व जब मैं विविध भारती पर गाने सुन रहा था, तब यही गाना बजा और उसमें ‘गुड़’ के बजाय कुछ और शब्द कान में पड़ा। अरे, यहाँ तो कुछ और है। ध्यान से सुना तो ‘बूर’ था। आप भी वह गाना सुनिए।
गाना सुनकर लगा कि इतने दिनों मैं ग़लत ही जानता आया हूँ। ‘बूर’ सही भी लग रहा था, ‘दूर’ के साथ राइम भी कर रहा था। मगर इस ‘बूर’ का मतलब क्या होता है?
शब्दकोश में देखा तो पहला अर्थ मिला – पश्चिम भारत में होनेवाली एक प्रकार की घास (देखें चित्र)। यह तो हो नहीं सकता था क्योंकि घास से कौनसा पूआ बनता है!

आगे और देखा तो ‘बूरा’ का यह अर्थ मिला – कच्ची चीनी जो भूरे रंग की होती है। शक्कर। हाँ, यह हो सकता है। फिर शब्द के स्रोत पर ध्यान दिया तो वहाँ था भूरा। अर्थात समझ में यही आया कि भूरा से बूरा बना और उस बूरा से बने ‘बूर’ शब्द का इस गीत में इस्तेमाल हुआ है (देखें चित्र)।

मगर यह गीत लिखा किसने है, इसकी जानकारी नहीं मिली। कविता कोश में देखा तो ‘चंदा मामा दूर के’ शीर्षक से तीन-चार कवियों की कविताएँ मिलीं मगर वे सारी अलग-अलग थीं। वहाँ स्पष्ट भी कर दिया गया था कि इसकी प्रारंभिक लाइनें पारंपरिक हैं (देखें चित्र)।

जब मैंने यूट्यूब पर फ़िल्म ‘वचन’ का वह गाना खोजा जिसमें गीता बाली यह गाना गा रही हैं, तो वहाँ जानकारी के तौर पर संगीत निर्देशक रवि का इसका रचयिता बताया गया था। यह सही नहीं लगता।

कहने का तात्पर्य यह कि इस गीत का मूल रूप खोजने का हमारे पास इस फ़िल्मी गीत के अलावा कोई स्रोत नहीं है और इसमें ‘बूर’ शब्द ही है जैसा कि आपने गाने में सुना होगा।
अब यह बूर शब्द ‘पूर’ या ‘गुड़’ कैसे बना, इसका अंदाज़ा लगाना बहुत ही आसान है। चूँकि इससे मिलता-जुलता एक शब्द है जो स्त्री के जननांग का अर्थ देता है, इसलिए इस शब्द का इस्तेमाल करने में किसी भी माँ या महिला को संकोच होगा। ऐसे में दो विकल्प चुने गए। एक ‘पूर’ और दूसरा ‘गुड़’। ‘पूर’ का मतलब होता है पकवान के अंदर भरा जाने वाला मसाला (देखें चित्र) और पूए में भी कई तरह की चीज़ें मिलाई जाती हैं सो यह फ़िट हो सकता था। वैसे भी ‘दूर’ के साथ इसकी तुक भी मिलती थी।

लेकिन ‘पूर’ कई अंचलों में उतना प्रचलित नहीं है। सो वहाँ ‘गुड़’ चला दिया गया। ‘गुड़’ की तुक ‘दूर’ से नहीं मिलती मगर गाते समय यह ‘गूड़’ ही बोला जाता है। वैसे भी किसी बच्चे को ‘गुड़’ और ‘गूड़’ के अंतर से क्या मतलब। अगर किसी बच्चे की शब्दसंपदा पर विचार करें तो ‘बूर’ और ‘पूर’ के मुक़ाबले वह ‘गुड़’ से ज़्यादा परिचित होगा। जैसा कि मैंने कहा, मेरे परिवार में ‘गूड़’ वाला वर्श्ज़न ही चलता था।
अब अगर आप पूछेंगे कि निर्णय क्या रहा और सही क्या है तो मैं कुछ नहीं कह पाऊँगा। गाने के अनुसार ‘बूर’ सही है (55% वोट भी इसी के पक्ष में पड़े हैं) मगर स्पष्ट कारणों से कोई भी माँ या महिला (जो उस शब्द से मिलते-जुलते एक और शब्द का अर्थ जानती है) उसे बोलना पसंद नहीं करेगी। ऐसे में ‘पूर’ और ‘गूड़’ (गुड़) दोनों विकल्प अपने-अपने कारणों से सही हैं। इन दोनों के पक्ष में पड़े वोटों में 19-20 का ही अंतर है। मुझसे पूछें तो मुझे तो गुड़ ही सबसे अच्छा लगता है।