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आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

65. ‘उल्टा’ लिखने वाले, पन्ने तो ‘उलटा’ ले…

शब्द पहेली 63 में सवाल था कि उत्तराखंड के प्रसिद्ध धाम का नाम बदरीनाथ है या बद्रीनाथ। ऐसी ही दुविधा कुछ और शब्दों में भी होती है जैसे उलटी और उल्टी में। जब उलटी और उल्टी (गिनती) पर एक फ़ेसबुक पोल किया गया तो 55% ने उल्टी के पक्ष में वोट दिया जबकि 45% के अनुसार उलटी सही है। सही क्या है?

सही क्या है, यह जानने के लिए आपको किसी शब्दकोश के पन्ने ‘उलटने’ की ज़रूरत नहीं है। आपको केवल मेरे पिछले वाक्य पर ग़ौर फ़रमाना है और यह देखना है कि मैंने ‘उलटने’ लिखा है या ‘उल्टने’। यदि उलटने लिखा है तो उलटी सही है और यदि उल्टने लिखा है तो उल्टी सही है। नीचे देखें, हिंदी शब्दसागर में भी उलटी ही है।

अब प्रश्न यह कि जब सही शब्द उलटी या उलटा है तो उल्टी या उल्टा कैसे प्रचलन में आ गया। तो इसका कारण वही है जो मैंने बद्रीनाथ और बदरीनाथ वाली शब्दपहेली में बताया था – हिंदी में अ-स्वरयुक्त व्यंजनों का कुछ ख़ास स्थितियों में पूरा नहीं, आधा ही उच्चारण होता है। यानी लिखा जाएगा म, बोला जाएगा म् (कमला>कम्ला); लिखा जाएगा प, बोला जाएगा प् (सपना>सप्ना); लिखा जाएगा ल, बोला जाएगा ल् (उलटी>उल्टी)। चूँकि ऐसे शब्दों के उच्चारण में बीच की ध्वनि स्वरमुक्त प्रतीत होती है, इसलिए कुछ लोग उस ध्वनि से जुड़े वर्ण को आधा यानी बिना स्वर के लिख देते हैं। जैसे बदरी को बद्री, कृपया को कृप्या, क़समें को क़स्में।

ग़लती से बचने का तरीक़ा

‘क़समें’ से याद आया, कैसे मैं नवभारत टाइम्स की चयन परीक्षा में उम्मीदवारों का हिंदीज्ञान इस शब्द के ज़रिए जाँचा करता था। आप भी पढ़ें कि कैसे आप एक छोटा-सा नियम अपनाकर उल्टी या क़स्में जैसी ग़लतियों से बच सकते हैं।

मैं परीक्षा में हर उम्मीदवार को दस ऐसे वाक्य देता था जिनमें शब्दों की स्पेलिंग ग़लत होती थी और उन्हें उनको सुधारकर लिखना होता था। इनमें से एक वाक्य यह भी होता था – कसमें-वादे, प्यार-वफ़ा सब, बातें हैं, बातों का क्या। इसमें ‘क़समें’ को मैं ‘क़स्में’ कर देता था और देखता था कि कौन उसे सही करता है और कौन नहीं।

जो ‘क़स्में’ को काटकर ‘क़समें’ कर देते थे, और बाक़ी ग़लतियाँ भी सुधारकर लिख पाते थे, वे अगले चरण के लिए चुन लिए जाते थे। जो ‘क़स्में’ को ‘क़स्में’ ही रहने देते थे, और बाक़ी ग़लतियाँ भी छोड़ देते थे, उनको मैं कमरे में बुलाता था, उनकी कॉपियाँ दिखाता था और बताता था कि उनमें क्या-क्या कमियाँ हैं जिनके कारण उन्हें अगले चरण के लिए नहीं चुना जा रहा है। इसी दौरान मैं उनसे पूछता भी था कि उन्होंने ‘क़स्में’ को ठीक क्यों नहीं किया। अधिकतर कहते थे कि वे अब तक ‘क़स्में’ को ही सही समझते थे।

मैं उनसे सवाल करता था, ’यदि एकवचन में लिखा जाएगा तो आप क्या लिखेंगे – क़सम या क़स्म?’ सभी का जवाब होता था, ‘क़सम।’ मैं कहता, ‘जब एकवचन में क़सम है तो बहुवचन में क़स्में कैसे हो जाएगा? गमला का बहुवचन आप गमले करेंगे या गम्ले?’

इसके बाद मैं उनको नियम बताता था कि ‘जब भी ऐसा कोई शब्द सामने आए तो आप देखिए कि एकवचन में उसका रूप क्या है। जैसा रूप एकवचन में होगा, वैसा ही रूप बहुवचन में होगा। एकवचन में रस्म है सो बहुवचन में रस्में होगा। एकवचन में क़सम है सो बहुवचन में क़समें होगा। सिंपल।’

उलट, उलटना, उलट-फेर, उलटवाँसी…

‘उल्टी’ और ‘उलटी’ में से क्या सही है, यह जानने के लिए भी वही नियम अपनाया जा सकता है हालाँकि यहाँ एकवचन-बहुवचन का पैमाना नहीं चलेगा क्योंकि यहाँ मामला संज्ञा का नहीं, विशेषण का है। परंतु यहाँ भी आप देख सकते हैं कि ‘उल्टी’ या ‘उलटी’ किस शब्द या धातु से बना है और वहाँ इसका क्या रूप है। आप उल्टी/उलटी से मिलते-जुलते शब्द सोचिए। आपको याद आएँगे उलट, उलटना, उलट-फेर, उलटवाँसी, उलटा/उल्टा आदि। उलटा/उलटा से कुछ पता नहीं चलेगा लेकिन उलट और उलटना से साफ़ ज़ाहिर होता है कि इन शब्दों में ‘ल’ पूरा है। अगर नहीं होता तो हम उल्ट और उल्टना ही बोलते और लिखते।

निष्कर्ष यह कि उन सभी मामलों में, जहाँ आपको शक हो कि यहाँ कोई व्यंजन वर्ण आधा लिखा जाएगा या पूरा, वहाँ उस शब्द से मिलते-जुलते शब्द सोचिए और देखिए कि उनमें व्यंजन की ध्वनि के साथ अ स्वर है या नहीं। अगर अ-स्वर है तो आप जिस शब्द में फँसे हैं, वहाँ भी वह अ-स्वर के साथ ही लिखा जाएगा। अगर नहीं है तो नहीं लिखा जाएगा।

मुझे याद आ रहा है, कुछ लोग मानसिक को मांसिक लिख बैठते हैं। अगर ऐसे लोग थोड़ा ठहरकर सोचें कि यह शब्द किससे बना है – मानस से या मांस से तो शायद वे यह ग़लती ख़ुद ही सुधार पाएँगे।

अर्थी या अरथी?

परंतु हर शब्द के साथ यह संभव नहीं हो पाता क्योंकि हर शब्द का जन्म किसी और शब्द से हुआ हो, यह ज़रूरी नहीं। और अगर हुआ भी हो तो किससे, यह मालूम करना मुश्किल है। जैसे एक शब्द है ‘अरथी’ जिसे ‘अर्थी’ भी लिखा जाता है। इन दोनों में सही शब्द क्या है, यह मालूम हो सकता है अगर यह जानकारी मिल जाए कि यह किस शब्द से उपजा है। लेकिन यह पता लगाना आसान है कया?

मैं भी लंबे समय तक ‘अर्थी’ को ही सही समझता था। लेकिन संस्कृत के एक जानकार ने मुझे बताया कि इसे ‘अर्थी’ नहीं, ‘अरथी’ लिखा जाना चाहिए। अरथी यानी जिसका कोई रथी न हो। आध्यात्मिक शब्दावली में शरीर को रथ माना गया है और आत्मा को उसका रथी (रथ का स्वामी)। चूँकि (ऐसा माना जाता है कि) मृत्यु होने पर आत्मा शरीर को छोड़ देती है, इसलिए जो बचा रहता है, उसे रथीविहीन यानी अरथी कहा गया है।

कठोपनिषद् में इसका ज़िक्र इस रूप में है।

आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु। 
बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च।। 
(कठोपनिषद्,अध्याय 1,वल्ली 3,मंत्र 3)

इस जीवात्मा को तुम रथी (रथ का स्वामी), शरीर का उसका रथ, बुद्धि को सारथी (रथ हाँकने वाला) और मन को लगाम समझो।
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