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243. आमंत्रण और निमंत्रण में क्या कोई फ़र्क़ है?

इंटरनेट पर आपको ढेरों विडियो और लेख मिलेंगे जिनमें बताया गया है कि जिस बुलावे में खाना-पीना शामिल हो, वह निमंत्रण है और जिसमें खाना-पीना शामिल न हो, वह है आमंत्रण। कुछ लोग पास और दूर का भी हवाला देते हैं कि कोई अपने पास बुलाए तो आमंत्रण वरना निमंत्रण। लेकिन ये सारी बातें सरासर गप हैं। सच यह है कि आमंत्रण और निमंत्रण का एक ही मतलब है और अगर कुछ अंतर है भी तो उसका संबंध खाने-पीने से नहीं, आने और न आने से है। क्या है वह अंतर, यह जानने के लिए पढ़ें आज की चर्चा।

जब मैंने आमंत्रण और निमंत्रण में अंतर के बारे में यह सवाल फ़ेसबुक पर पूछा तो 94% ने कहा कि दोनों के अर्थों में अंतर है। 6% ने कहा, दोनों के अर्थों में कोई अंतर नहीं है (देखें चित्र)। जिन लोगों ने माना कि अंतर है, उन्होंने भी दोनों में यही अंतर बताया कि जिस आमंत्रण में भोज भी शामिल हो, उसे निमंत्रण कहते हैं। एक अन्य ने कहा, निमंत्रण पत्र के रूप में भेजा जाता है, आमंत्रण मौखिक भी हो सकता है जैसे किसी को मंच पर बुलावा।

फ़ेसबुक पोल का परिणाम।

अब आती है फ़ैसले की बारी। मैंने संस्कृत के विद्वानों से मंत्रणा और कोशों तथा ग्रंथों के अध्ययन से यह पाया है कि आमंत्रण और निमंत्रण में अंतर ‘है’ भी और ‘नहीं’ भी है।

लेकिन विद्वानों के अनुसार दोनों में जो अंतर है, वह ‘वह’ नहीं है जो अधिकतर लोग समझते हैं। जिस बुलावे में भोज शामिल हो, उसे निमंत्रण कहते हैं, यह धारणा सरासर ग़लत है। निमंत्रण के लिए जो एकमात्र शर्त है, वह कुछ और है जिसके बारे में हम नीचे जानेंगे। पहले शब्दकोशों में देख लेते हैं कि वे आमंत्रण और निमंत्रण में क्या कोई फ़र्क़ करते हैं।

मैंने आप्टे के संस्कृत कोश में दोनों के अर्थ देखे। उसमें दोनों के कई अर्थ दिए गए हैं लेकिन एक अर्थ दोनों में कॉमन है – Invitation, Calling (देखें चित्र)। आप देखिए, इसमें भोजन का तो कहीं कोई उल्लेख ही नहीं है कि जिस आयोजन के बुलावे में भोजन की व्यवस्था हो, वह निमंत्रण है और जिसमें न हो, वह है आमंत्रण।

आप्टे के संस्कृत कोश में निमंत्रण और आमंत्रण का अर्थ।

चलिए, हिंदी का शब्दकोश भी देख लेते हैं। यहाँ आमंत्रण की प्रविष्टि में उसका एक अर्थ दिया है – निमंत्रण (देखें चित्र) जिससे ज़ाहिर होता है कि आमंत्रण और निमंत्रण का एक ही अर्थ है। लेकिन निमंत्रण की एंट्री में एक रोचक बात लिखी हुई है। वह यह कि किसी कार्य के लिये नियत समय पर आने के लिए ऐसा अनुरोध जिसका अकारण पालन न करने से दोष का भागी होना पड़ता है (देखें चित्र)।

आमंत्रण और निमंत्रण हिंदी शब्दसागर में।

कुछ समझे? शब्दसागर के अनुसार जिस अनुरोध का पालन न करने पर निमंत्रित व्यक्ति को दोष का भागी बनना पड़े, उसे कहते हैं निमंत्रण।

स्पष्ट है, निमंत्रण का खाने-पीने से कोई सीधा संबंध नहीं है। निमंत्रण का संबंध ऐसे किसी आयोजन से है जहाँ न जाने से आप दोष के भागी बनते हैं। वह आयोजन क्या है?

इसका जवाब हमें पाणिनि के अष्टाध्यायी में मिलता है। अष्टाध्यायी के सूत्र 3.3.161 में लिङ् लकार की बात की गई है। वह सूत्र है –

विधिनिमन्त्रणामन्त्रणाधीष्टसंप्रश्नप्रार्थनेषु लिङ्

संस्कृत तो मैं नहीं समझता लेकिन अष्टाध्यायी.कॉम पर उसका जो अंग्रेज़ी अनुवाद दिया गया है, वह यह है – लिङ्लकार can be used to indicate विधि (=order), निमन्त्रण (=an invitation that cannot be rejected), आमन्त्रण (=an invitation that can be rejected), अधीष्ट (=Ask something with respect, often in exchange of money or something else), सम्प्रश्न (=A question about doing or not doing something) and प्रार्थना (=request) (देखें चित्र)।

यानी पाणिनि ने निमंत्रण का उदाहरण ऐसे बुलावे के लिए दिया है जिसे ठुकराया न जा सके (an invitation that cannot be rejected)। इसके विपरीत आमंत्रण की मिसाल एक ऐसे आयोजन के तौर पर दी है जिसे ठुकराया जा सकता है (an invitation that can be rejected)। अब ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि वह कौनसा आयोजन है जिसमें जाना ज़रूरी हो और जिसे ठुकराना अपराध हो?

चूँकि मैं संस्कृत का क-ख-ग भी नहीं जानता इसलिए संस्कृत के जानकार डॉ. आर. एन. शुक्ल से इस विषय में चर्चा की। उन्होंने जो जवाब दिया, वह यह है।

अब इसका क्या मतलब हुआ? क्या केवल श्राद्ध के बुलावे को निमंत्रण कह सकते हैं? शादी-ब्याह या किसी अन्य मांगलिक आयोजन के बुलावे को निमंत्रण नहीं कह सकते?

इसका जवाब हमें व्यवहार और प्रचलन में मिलेगा और इसके लिए ज़रूरी है कि हम कुछ ग्रंथों का अध्ययन करें और जानें कि उनमें आमंत्रण और निमंत्रण का किस तरह प्रयोग हुआ है। आप समझ ही सकते हैं कि यह बहुत ही श्रमसाध्य और समय लेने वाला काम है। इसलिए मैंने इसके लिए केवल एक ग्रंथ चुना – महाभारत।

महाभारत के 18 पर्वों में से मैंने वे श्लोक खोजे जिनमें आमंत्रण या निमंत्रण का प्रयोग था। मैं ऐसे 13 प्रसंग खोज पाया (हो सकता है, और भी हों)। इन 13 प्रसंगों के आधार पर मैंने पाया कि निमंत्रण का प्रयोग श्राद्ध के अलावा और मामलों में भी हो सकता है। मैं यहाँ सारे श्लोक तो नहीं दे सकता (कारण, तब यह पोस्ट बहुत लंबा हो जाएगा) लेकिन यह बताना चाहूँगा कि उन श्लोकों में आमंत्रण या निमंत्रण का प्रयोग किस उद्देश्य से किया गया है।

  1. आमंत्रण – भीष्म की राजाओं को युद्ध के लिए ललकार।1
  2. निमंत्रण – नियोग के लिए किसी गुणवान ब्राह्मण को धन देकर बुलावा।2
  3. आमंत्रण – राजसूय यज्ञ के लिए राजाओं तथा अन्य सभी वर्णों के लोगों को बुलावा।3
  4. आमंत्रण – युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के लिए भीष्म और धृतराष्ट्र को बुलावा।4
  5. निमंत्रण – दमयंती के स्वयंवर के लिए राजाओं को बुलावा।5
  6. निमंत्रण – राम को राज्याभिषेक के लिए दशरथ का संदेश।6
  7. निमंत्रण – कौरव सभा में आने के लिए ऋषियों को बुलावा।7
  8. निमंत्रण – दक्ष यज्ञ में महादेव को न बुलाए जाने पर दधीचि की नाराज़गी।8
  9. निमंत्रण – दक्ष द्वारा महादेव को न बुलाए जाने पर दिया गया स्पष्टीकरण।9
  10. निमंत्रण – भीष्म का युधिष्ठिर को बताना कि अयाचकों को दान करना श्रेष्ठ है।10
  11. निमंत्रण – भीष्म का युधिष्ठिर को बताना कि अयाचकों को दान करना श्रेष्ठ है।11
  12. निमंत्रण – भीष्म की युधिष्ठिर को सलाह, ब्राह्मणों को घर बनाकर दो।12
  13. निमंत्रण – भीष्म का युधिष्ठिर को बताना कि श्राद्ध में किनको बुलाना चाहिए।13

ऊपर की लिस्ट पर आप ग़ौर करेंगे तो आमंत्रण के मुक़ाबले निमंत्रण का अधिक उपयोग हुआ है मगर ऐसा नहीं है कि किसी ख़ास आयोजन के लिए आमंत्रण और दूसरे के लिए निमंत्रण का प्रयोग हुआ है। मसलन युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के लिए आमंत्रण लिखा हुआ है (देखें – क्रमांक 4) मगर दक्ष यज्ञ के लिए निमंत्रण (देखें क्रमांक 8 और 9)। इसका अर्थ यही है कि यज्ञ के लिए बुलाते समय आमंत्रण भी चल सकता है और निमंत्रण भी। रोचक बात यह है दशरथ द्वारा राम को संदेश भेजने के मामले में भी निमंत्रण का प्रयोग हुआ है (देखें क्रमांक 6)। अब यह तो आप भी समझ रहे होंगे कि कि दशरथ राम को किसी भोज में तो नहीं बुला रहे होंगे।

महाभारत में दोनों शब्दों के मिश्रित प्रयोग को देखते हुए मैं यह समझ पाया हूँ कि भले ही पाणिनि ने अपने किसी सूत्र में निमंत्रण को ऐसे आयोजन (जैसे श्राद्ध) तक सीमित कर दिया हो जहाँ न जाने पर अपराध होता है लेकिन महाभारत (और शायद अन्य ग्रंथों में) ऐसी कोई बाध्यता नहीं रखी गई है। वहाँ श्राद्ध के साथ-साथ अन्य आयोजनों (यज्ञ, सामान्य बुलावा, संदेश पहुँचाना) आदि के अर्थ में निमंत्रण शब्द का प्रयोग हुआ है।

गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित महाभारत के अनुवादक ने भी दोनों शब्दों में कोई भेद नहीं माना है। राजसूय पर्व से संबंधित एक अध्याय में जिसमें श्लोकों में आमंत्रण शब्द का प्रयोग हुआ है, उसी के शीर्षक और टीका में निमंत्रण शब्द लिखा है (देखें चित्र)।

श्लोकों में आमंत्रण है, टीका और शीर्षक में निमंत्रण है यानी दोनों शब्दों को एक-दूसरे का पर्यायवाची माना गया है।

निष्कर्ष यह कि दोनों शब्दों के अर्थ में कोई मूलभूत अंतर नहीं है। हाँ, पाणिनि की बात को ध्यान में रखते हुए और उनका सम्मान करते हुए हम कह सकते है कि श्राद्ध के लिए निमंत्रण ही ठीक है, आमंत्रण नहीं।

संदर्भ सूची

  • 1(श्लोक 18, 19, अध्याय 102, संभव पर्व, आदि पर्व)।
  • 2(श्लोक 1, 2, अध्याय 104, संभव पर्व, आदि पर्व)।
  • 3(श्लोक 41, 42, अध्याय 33, राजसूय पर्व, सभा पर्व)।
  • 4(श्लोक 1, अध्याय 34, राजसूय पर्व, सभा पर्व)।
  • 5(श्लोक 9, अध्याय 54, नलोपाख्यान पर्व, वन पर्व)
  • 6(श्लोक 14-15, अध्याय 277, रामोपाख्यान पर्व, वन पर्व)
  • 7(श्लोक 43, अध्याय 94, भगवद्यान पर्व, उद्योग पर्व)
  • 8(श्लोक 14, 15 और 21, अध्याय 284, मोक्षधर्म पर्व, शांति पर्व)
  • 9(श्लोक 177, 178, 179, अध्याय 284, मोक्षधर्म पर्व, शांति पर्व)
  • 10(श्लोक 12 से 15, अध्याय 59, दानधर्म पर्व, अनुशासन पर्व)
  • 11(श्लोक 6, अध्याय 60, दानधर्म पर्व, अनुशासन पर्व)
  • 12(श्लोक 11, 12, अध्याय 60, दानधर्म पर्व, अनुशासन पर्व)
  • 13(श्लोक 30, 31, अध्याय 90, अनुशासन पर्व)
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