असमतल यानी ऊँची-नीची (ज़मीन) के लिए कौनसा शब्द सही है? उबड़-खाबड़ या ऊबड़-खाबड़? यानी शुरू में ‘उ’ होगा या ‘ऊ’? आज की चर्चा इसी विषय पर है। रुचि हो तो पढ़ें।
जब यही सवाल फ़ेसबुक पर पूछा गया तो 22% ने उबड़-खाबड़ को सही बताया जबकि 72% के विशाल बहुमत ने ऊबड़-खाबड़ के पक्ष में मतदान किया। शेष 6% के मुताबिक़ दोनों ही शब्द सही हैं।
सही है ऊबड़-खाबड़। हिंदी के जितने भी शब्दकोश मैंने टटोले, सब इसी को सही बताते हैं। उबड़-खाबड़ किसी में नहीं है। लेकिन इस शब्द पर खोजबीन करते हुए मुझे ऐसी कुछ रोचक जानकारियाँ मिली हैं जो आपको भी दिलचस्प लग सकती हैं। इसलिए यदि दो-चार मिनट का समय हो तो पढ़ना जारी रखें।
ऊबड़-खाबड़ का अर्थ तो हम जानते ही हैं – ऊँचा-नीचा। ऐसे में अगर मैं पूछूँ कि ऊबड़ और खाबड़ का क्या मतलब है तो आप शायद यही कहेंगे कि ऊबड़ का मतलब होता होगा ‘ऊँचा’ और खाबड़ का मतलब होता होगा ‘नीचा’। मैं भी अब तक यही समझता था।
लेकिन ऐसा नहीं है। ऊबड़ का अपने-आपमें मतलब है – ऊँचा-नीचा। यानी ऊबड़ कहें या ऊबड़-खाबड़ कहें – दोनों का एक ही मतलब है – ऊँचा-नीचा (देखें चित्र)।
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अब जब ऊबड़ का मतलब है ‘ऊँचा-नीचा’ तो खाबड़ का क्या मतलब है? जी हाँ, खाबड़ का मतलब भी वही है जो ऊबड़ का है – यानी ऊँचा-नीचा। यही नहीं, एक खाबड़-खूबड़ शब्द भी है और उसका अर्थ भी वही है – ऊँचा-नीचा (देखें चित्र)।
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है न मज़ेदार स्थिति! जो मतलब ऊबड़ का है, वही खाबड़ का है और वही ऊबड़-खाबड़ और खाबड़-खूबड़ भी है। एक वाक्य में कहें तो ऊबड़, खाबड़, ऊबड़-खाबड़ और खाबड़-खूबड़ – इन चारों का एक ही अर्थ है – ऊँची-नीची (ज़मीन या सड़क)।
अब समझते हैं, ऊबड़ और खाबड़ – ये दोनों शब्द कहाँ से आए।
हिंदी शब्दसागर के मुताबिक़ ऊबड़ बना है ऊबट से जिसका स्रोत है संस्कृत का उद्वर्त्म (उद् यानी बुरा और वर्त्म यानी रास्ता)। वर्त्म प्राकृत में बट्ट हो गया और शब्द बना ऊबट (देखें चित्र)। जायसी के काव्य में इसका लघु रूप यानी उबट भी मिलता है।
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बचा खाबड़ तो वह कहाँ से आया? यह बना है खापट से। खापट से खापर बना और खाबड़ भी।
ऊबड़-खाबड़ जैसा ही एक शब्द मुझे याद आ रहा है – जाएगाह। जाएगाह फ़ारसी का शब्द है जिसे हम हिंदी में ‘जगह’ बोलते और लिखते हैं।
जाएगाह में आने वाले ‘जा’ का वही अर्थ है जो ‘गाह’ का है यानी स्थान। दोनों के संयुक्त रूप यानी जाएगाह का भी वही मतलब है – स्थान।
‘गाह’ का मतलब स्थान होता है, यह तो आप जानते ही होंगे। क़ब्रगाह, ईदगाह, इबादतगाह जैसे कई शब्द हैं जो हमने सुन-पढ़ रखे हैं। लेकिन ‘जा’ का अर्थ जगह है, यह शायद नहीं जानते होंगे हालाँकि जायदाद और जागीर जैसे शब्दों से तो आप ज़रूर वाक़िफ़ होंगे। ये शब्द उसी ‘जा’ से बने हैं जिसका अर्थ है स्थान।
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अधिकतर हिंदी वाले ‘जाएगाह’ से परिचित नहीं होंगे लेकिन कोलकाता में पलने-बढ़ने के कारण मैं इस शब्द को बचपन से सुनता आया हूँ क्योंकि बांग्ला में ‘जगह’ को ‘জায়গা’ (जायगा) ही कहते हैं।
ऊपर मैंने ‘जगह’ शब्द का ज़िक्र किया। इसे आपने कई लोगों को ‘जगा’ या ‘जगे’ बोलते सुना होगा। मैंने ख़ुद आमिर ख़ान को ‘जगा’ और आशा भोसले को ‘जगे’ बोलते हुए सुना है। सुनें ‘उमराव जान’ का यह मशहूर गाना – ये क्या जगे (जगह) है दोस्तो।
लेकिन इसमें आमिर ख़ान या आशा जी का कोई दोष नहीं है। ’ह’ की एक विचित्र प्रवृत्ति है कि वह कई बार अपने से पहले आने वाले अकार वर्ण को एकार या आकार कर देता है। जैसे पेशः और पेशःवर। इसमें पेशः का हिंदी में पेशा हो गया और पेशःवर का पेशेवर हो गया।
‘ह’ की इसी प्रवृत्ति के चलते कई लोग जगह को ‘जगा’ या ‘जगे’ बोल जाते हैं हालाँकि पेशा और पेशेवर की तरह अभी ‘जगह’ के लिखित रूप में कोई बदलाव नहीं आया है।
‘यह’ का ‘ये’, ‘महबूबा’ का ‘मेहबूबा’, ‘गहना’ का ‘गेहना’ आदि ‘ह’ की इसी प्रवृत्ति के कुछ उदाहरण हैं। इसके बारे में और जानना हो तो पढ़ें ‘महबूब’ और ‘मेहबूब’ पर हुई यह शब्दचर्चा।