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आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

186. घास चरने की जगह ‘चरागाह’ है या ‘चारागाह’?

कुछ दिन पहले किसी ने मुझसे पूछा – चरागाह सही है या चारागाह? सवाल सुनकर मैं भी चकरा गया। क्योंकि सही शब्द चरागाह है या चारागाह, यह निर्भर करता है इस बात पर कि यह शब्द बना कैसे। अगर ‘चरने’ की जगह से बना होगा तो होगा चरागाह। अगर ‘चारा’ खाने की जगह से बना होगा तो होगा चारागाह। आज की चर्चा में हम इसी बात की पड़ताल करके तय करेंगे कि सही क्या है – चरागाह या चारागाह।

हिंदी समाज में कौनसा शब्द ज़्यादा स्वीकृत है – ‘चरागाह’ और ‘चारागाह’ – यह जानने के लिए मैंने फ़ेसबुक पर एक पोल किया। पोल के नतीजे से पता चला कि दो-तिहाई के क़रीब यानी 64% का विशाल बहुमत ‘चारागाह’ को सही मानता है। शेष 36% वोट ‘चरागाह’ और ‘दोनों सही’ के बीच बराबर-बराबर बँट गए। यानी 18% मानते हैं कि ‘चरागाह’ सही है और उतने ही लोग मानते हैं कि दोनों शब्द सही हैं।

अब आती है फ़ैसले की घड़ी। फ़ैसला यह कि बहुमत जिसे सही मानता है यानी ‘चारागाह’, वह ग़लत है। उर्दू, हिंदी या फ़ारसी के किसी भी अच्छे शब्दकोश में ‘चारागाह’ नहीं है। सबमें ‘चरागाह’ ही है। ‘चरागाह’ यानी पशुओं के चरने की जगह। इसी तरह ‘चरागर’ हुआ चरने वाला (देखें चित्र।

आपमें से कोई पूछ सकता है कि ‘चरागाह’ या ‘चारागाह’ में कौनसा शब्द सही है, यह जानने के लिए मैंने उर्दू या फ़ारसी शब्दकोशों का सहारा क्यों लिया। वह इसलिए कि इन दोनों ही शब्दों के अंत में ‘-गाह’ प्रत्यय लगा हुआ है जो बताता है कि यह एक फ़ारसी शब्द है। अगर आप याद करेंगे तो आपको ऐसे कई शब्द मिल जाएँगे जिसमें -गाह प्रत्यय लगा है और वे सभी अरबी-फ़ारसी परिवार के शब्द हैं जैसे क़ब्रगाह, बंदरगाह, ईदगाह आदि। ‘गाह’ का मतलब है स्थान। उर्दू का तो पता नहीं लेकिन हिंदी में उसका स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं होता। हिंदी में हम उसके बजाय ‘जगह’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं। यह ‘जगह’ भी फ़ारसी के ‘जाएगाह’ का ही छोटा और परिवर्तित रूप है।

जो लोग ‘चारागाह’ को सही समझते हैं, वे कह सकते हैं कि फ़ारसी में भले ही ‘चरागाह’ हो लेकिन क्या हिंदी में ‘चारागाह’ नहीं हो सकता?  जब अरबी के ‘ज़िल्अ’ और संस्कृत के ‘अधीश’ को मिलाकर ‘ज़िलाधीश’ बन सकता है या अंग्रेज़ी के ‘जेल’ और फ़ारसी के ‘ख़ान:’ को मिलाकर हिंदी में ‘जेलख़ाना’ बन सकता है तो हिंदी का ‘चारा’ और फ़ारसी का ‘गाह’ मिलकर ‘चारागाह’ क्यों नहीं बन सकता? 

तर्क सही है लेकिन मुश्किल यह है कि अरबी या फ़ारसी में ‘ज़िलाधीश’ या ‘जेलख़ाना’ से मिलता-जुलता कोई शब्द नहीं है जबकि ‘चारागाह’ से मिलता-जुलता शब्द ‘चरागाह’ फ़ारसी में पहले से मौजूद है। इसलिए पूरी संभावना है कि ‘चरागाह’ शब्द ही सीधे फ़ारसी से या उर्दू के माध्यम से हिंदी में आया होगा। वैसे फ़ारसी के एक कोश में मुझे ‘चारगाह’ शब्द भी मिला जिसका वही अर्थ है जो ‘चरागाह’ का है (देखें चित्र)। लेकिन ‘चारागाह’ कहीं नहीं मिला।

ऐसा नहीं कि फ़ारसी में ‘चारा’ शब्द नहीं है। है मगर उसका अर्थ वह नहीं जो हम हिंदी में समझते हैं। वहाँ ‘चारा’ का मतलब है उपाय, इलाज (देखें चित्र)। इसी से लाचार (निरुपाय) और चारागर (चिकित्सक) शब्द बने हैं।

हिंदी में अपना भी एक चारा शब्द है  जिसका मतलब है घास, भूसा आदि। प्रश्न उठ सकता है कि यह ‘चारा’ शब्द कहाँ से आया है? क्या यह भी फ़ारसी से आया है। नहीं। शब्दकोशों के अनुसार यह हिंदी के चारना (चराना) से बना है। और ये चारना/चराना शब्द आए हैं संस्कृत के चर् धातु से जिसका एक अर्थ है पशुओं द्वारा घास खाना (देखें चित्र)।

यानी संस्कृत के ‘चर्’ और फ़ारसी के ‘चर’ का एक ही मतलब है। क्या यह चौंकाने वाली बात है? मेरे हिसाब से नहीं। जब किन्हीं दो इलाक़ों (भारत और ईरान) के पूर्वज किसी एक ही जगह से आए हों तो यह स्वाभाविक है कि उन दोनों इलाक़ों की भाषाओं में कई ऐसे शब्द मिलेंगे जो उनके साझा पूर्वजों के ज़माने में चलते थे। पशुपालन उस दौर की प्रमुख आर्थिक गतिविधि थी, इसलिए पशुओं द्वारा घास खाने के लिए जो शब्द बना – चर् – वह आगे भी चलता रहा और आज दोनों इलाक़ों की भाषाओं में मिलता है।

वैसे चरना या चारना जिस ‘चर्’ धातु से बने हैं, उसका मुख्य अर्थ है चलना (देखें चित्र)।

अब आगे चलकर इसका अर्थ घास घाना कैसे हो गया, यह रिसर्च का मामला है। पहली दृष्टि में तो ऐसा ही लगता है कि जानवर चलते-फिरते घास खाते हैं, इसीलिए चर का एक अर्थ घास खाना हो गया। लेकिन यह केवल अनुमान है। संस्कृत के जानकार ही इसके बारे में ज़्यादा बता सकते हैं।

संस्कृत और फ़ारसी के शब्दों में कितना मेल है, इसका ज़िक्र मैं चहारदीवारी/चारदीवारी वाली चर्चा में कर चुका हूँ जहाँ मैंने अवेस्ता (ईरान की पुरानी भाषा) के कुछ शब्दों की लिस्ट भी दी थी जो संस्कृत के शब्दों से काफ़ी मिलते हैं। आप चाहें तो वह लेख पढ़ सकते हैं जिसका लिंक नीचे दिया हुआ है।

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