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41. लाख रुपये मिल जाएँ तो ‘पति’ बन जाता है ‘पती’

पति कैसे लिखते हैं, आप जानते होंगे। लेकिन जब उसके आगे लख (लाख का छोटा रूप) आ जाता है तो लखपति होगा या लखपती? जब इसपर फ़ेसबुक पर एक पोल किया गया तो क़रीब तीन-चौथाई ने कहा – लखपति, एक-चौथाई ने कहा – लखपती। सही क्या है और क्यों है, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।

लखपति और लखपती पर हुए पोल परिणाम से मुझे काफ़ी ख़ुशी हुई क्योंकि मुझे उम्मीद नहीं थी कि 5% से ज़्यादा लोग लखपती के पक्ष में वोट करेंगे। लेकिन 23% ने ऐसा किया!

सही है लखपती। क्यों है? क्योंकि शब्दकोशों में ऐसा ही दिया हुआ है (देखें चित्र)।

लेकिन शब्दकोशों में ऐसा क्यों दिया गया है? क्योंकि शुरू से यह ऐसे ही लिखा जाता रहा होगा। लेकिन यह ऐसे ही क्यों लिखा जाता रहा होगा? ख़ासकर जब बाक़ी सारे मामलों – सेनापति, कुलपति, पूँजीपति, यहाँ तक कि करोड़पति – में भी ‘पति’ है तो लखपती के मामले में ‘पती’ क्यों?

सवाल बहुत सीधा है और जवाब? जवाब मेरे पास नहीं है। बस दो-तीन अनुमान हैं।

पहला अनुमान : हिंदी की प्रकृति ईकारांत है

लखपती शब्द संस्कृत के लक्षपति से बना है। संस्कृत में लक्षपति जैसा कोई शब्द है या नहीं, मुझे नहीं मालूम क्योंकि किसी भी संस्कृत शब्दकोश में मुझे लक्षपति नहीं मिला। लेकिन चूँकि ‘लक्ष’ और ‘पति’ दोनों संस्कृत के शब्द हैं इसलिए लक्षपति शब्द बनाया जा सकता है। हिंदी में कुछ लोगों ने इसका इस्तेमाल भी किया है जिनमें निराला भी थे जिन्होंने लिखा – ‘इतना भी नहीं, लक्षपति का भी यदि कुमार/ होता मैं, शिक्षा पाता अरब-समुद्र-पार’।

कहने का अर्थ यह कि हिंदी के मामले में हम ‘लक्षपति’ को तत्सम और ‘लखपती’ को तद्भव मान सकते हैं।

तद्भव तो आप जानते ही होंगे – संस्कृत से आए वे शब्द जो हिंदी में ज्यों-के-त्यों नहीं, बल्कि थोड़ा रूप बदलकर आए हैं। जैसे ग्राम से गाँव, दुग्ध से दूध, दधि से दही आदि। इसी तरह जब लक्षपति हिंदी में आया तो लक्ष का लख हुआ और पति का पती। पती इसलिए हुआ कि हिंदी की प्रकृति दीर्घ ईकारांत है यानी इसमें यदि शब्द के अंत में इ की ध्वनि होगी तो वह ई ही होगी, इ नहीं। उदाहरण देखिए – लड़की, गाड़ी, गोटी, संबंधी, रस्सी, हड्डी आदि। हिंदी में जितने भी इकारांत शब्द हैं, वे सब-के-सब संस्कृत से आए हुए हैं और संस्कृत के कुछ तत्सम शब्द भी हिंदी में आकर ईकारांत हो गए हैं जैसे अंजलि का अंजली, मंत्रिन् का मंत्री।

वैसे भी लखपती में पहले की सारी ध्वनियाँ हल्की हैं, इसलिए भी शब्द की अंतिम ध्वनि पर ज़ोर पड़ना स्वाभाविक है।

तात्पर्य यह कि लक्षपति को जब हिंदीभाषियों ने अपनाया तो उनके मुँह से लखपती निकला, लखपति नहीं और वही चल निकला। शब्दकोशों में भी वही आ गया।

अब अगला सवाल यह कि जब लक्षपति का लखपती हो गया तो बाक़ी पति वाले शब्दों में पती क्यों नहीं हुआ? ख़ासकर करोड़पति और अरबपति में? इसके लिए पेश है अनुमान नंबर 2।

दूसरा अनुमान : करोड़पति, अरबपति बाद में आए

लखपती हिंदी का ऐसा शब्द है जो किसी की अमीरी जताने के लिए शुरू से ही ख़ूब बोला और लिखा जाता था। करोड़पति और अरबपति शब्द बाद में आए जब कुछ लोगों और संस्थानों की आय-संपत्ति करोड़ों और अरबों में होने लगी। यदि आप हिंदी के मुहावरे देखें तो उन सबमें बहुत बड़ी संख्या के तौर पर लाख का ही उल्लेख है, करोड़ का नहीं। कुछ उदाहरण देखिए – लाख टके की बात, लाखों का असामी, लाख समझाना। जब अंग्रेज़ी के million dollar question का हिंदी अनुवाद हुआ, तब भी वह लाख रुपये (या टके) का सवाल ही बना, करोड़ रुपये (या टके) का नहीं।

इसके साथ-साथ ज़रा फ़िल्मी गीतों पर भी नज़र डालें जो बहुधा लोक प्रवृत्ति को दर्शाते हैं। वहाँ जो गाने थे, उनमें भी लाख ही था, करोड़ नहीं।

  • तुम एक पैसा दोगे, वो दस ‘लाख’ देगा।
  • ‘लाख’ छुपाओ छुप न सकेगा, राज़ ये इतना गहरा।
  • मैंने ‘लाखों’ के बोल सहे, साँवरिया तेरे लिए।

कहने का अर्थ यह कि चूँकि आम लोगों के लिए लाख की संख्या ही बहुत बड़ी थी उन दिनों, इसलिए लखपती शब्द ही चलता था (न कि करोड़पति) और वह जैसा बोला जाता था, वैसा ही किताबों और शब्दकोशों में लिखा गया। लेकिन करोड़पति और अरबपति शब्द लेखकों, पत्रकारों या अनुवादकों ने बाद में बनाए और उन्होंने करोड़ और अरब के साथ संस्कृत के पति को जोड़कर ये शब्द रच दिए। पूँजीपति भी इसी तरह लेखकों, पत्रकारों या अनुवादकों द्वारा गढ़ा गया शब्द है और उसमें भी पति ही है।

एक पंक्ति में कहूँ तो लखपती शब्द शुरू से बोलचाल में था जबकि करोड़पति और अरबपति शब्द पहले लिखित रूप में आए और बाद में बोलचाल में। लखपती की रचना जनता ने की थी और करोड़पति-अरबपति की रचना लेखकों और कोशकारों ने।

तीसरा अनुमान : कोशकार की चूक?

तीसरा अनुमान थोड़ा काफ़िराना है और इसीलिए लिखते हुए मुझे संकोच भी हो रहा है। हो सकता है, नागरी प्रचारिणी सभा के जिस कोशकार ने हिंदी शब्दसागर में यह शब्द डाला, उसने ग़लती से लखपती लिख दिया हो या उसे लखपती ही सही लगता हो और बाद के कोशकारों ने लखपती को इसलिए चलाए रखा हो कि वे इतने प्रामाणिक कोश की अनदेखी नहीं कर सकते थे। लेकिन यह अनुमान इसलिए ख़ारिज हो जाता है कि कामताप्रसाद गुरु जैसे वैयाकरण ने भी अपने ग्रंथ ‘हिंदी व्याकरण’ में लखपती और करोड़पति में अंतर को क़ायम रखा है (देखें चित्र)।

वैसे इक्का-दुक्का कोशकारों ने ‘लखपती’ और ‘करोड़पति’ के बीच की इस विसंगति को समाप्त करते हुए अपने कोश में करोड़ के साथ भी दीर्घ ई का प्रयोग किया है और उसे करोड़पती लिखा है। ऐसे एक कोशकार हैं ज्ञानमंडल के मुकुंदीलाल श्रीवास्तव (देखें चित्र)।

तो अब अंत में सवाल यह कि निष्कर्ष क्या निकला – लखपति या लखपती? यदि मेरी राय पूछते तो मैं लखपति को सही ठहराता क्योंकि मैं भाषा के मामले में एकरूपता का पक्षधर हूँ लेकिन चूँकि मैं कोई विद्वान नहीं हूँ, सो मुझे भी हिंदी शब्दसागर और बाक़ी प्रतिष्ठित शब्दकोशों एवं व्याकरण ग्रंथों को प्रामाणिक मानते हुए लखपती को ही सही बताना होगा। वही मैंने किया है।

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