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105. क्या लिखना सही है – स्तीफ़ा या इस्तीफ़ा?

त्यागपत्र के लिए अरबी भाषा का एक शब्द है जो हिंदी में भी ख़ूब चलता है। उसे बोलते कैसे हैं, इसपर कोई विवाद नहीं है। लेकिन लिखते समय कोई उसे स्तीफ़ा लिखता है तो कोई इस्तीफ़ा। सही क्या है- 1. स्तीफ़ा या 2. इस्तीफ़ा? जानने के लिए आगे पढ़ें।

जब मैंने स्तीफ़ा और इस्तीफ़ा के बीच पोल किया तो मुझे लगता था कि 99% वोट इस्तीफ़ा के पक्ष में ही पड़ेंगे। लेकिन वैसा नहीं हुआ। क़रीब 20% ऐसे थे जिन्होंने स्तीफ़ा के पक्ष में वोट किया। यानी हर पाँच में से एक व्यक्ति को लगता है कि स्तीफ़ा सही है।

यह पोल मैंने दो कारणों से किया था। पहला, मैंने कई साल पहले राजस्थान के एक प्रमुख अख़बार में स्तीफ़ा लिखा देखा था और उसकी वेबसाइट पर आज भी वह शब्द लिखा दिख जाता है (देखें चित्र)।

मैं जानना चाहता था कि हिंदीभाषियों में कितने लोग हैं जो स्तीफ़ा को सही समझते हैं। दूसरा, मैं इसके बहाने स् से शुरू होने वाले ऐसे शब्दों पर चर्चा करना चाहता था हैं जिनको बोलने में ज़्यादातर लोगों को असुविधा होती है और वे इन्हें बोलने से पहले ‘अ’ या ‘इ’ लगाते हैं। जैसे स्कूल को इस्कूल, स्थायी को अस्थायी, स्थान के अस्थान, स्मृति को इस्मृति आदि।

पहले उन कुछ लोगों का भ्रम दूर कर दिया जाए जो स्तीफ़ा को सही मानते हैं। सही शब्द इस्तीफ़ा है जो अरबी भाषा के मूल शब्द इस्तेफ़ा का परिवर्तित रूप है (बांग्ला में इस्तेफ़ा ही बोलते हैं)। आपको बता दूँ कि अरबी-फ़ारसी शब्दों के शुरू में संयुक्ताक्षर नहीं होते। इसलिए स्तीफ़ा शब्द होने का प्रश्न ही नहीं उठता। हाँ, फ़ारसी में ‘ख़्व’ से शुरू होने वाले कुछ शब्द ज़रूर हैं जैसे ख़्वाहिश, ख़्वाब, ख़्वाजा आदि। इनके अलावा स्याह जैसे कुछ शब्द भी मिल जाते हैं लेकिन उनका मूल रूप सियाह है।

अब अगला प्रश्न – कुछ लोग स्तीफ़ा क्यों लिखते हैं। मेरी समझ से इसका कारण यह कि ‘स्’ से शुरू होने वाले कुछ शब्दों को बोलने में कुछ लोगों को समस्या आती है (क्यों आती है, इसपर हम आगे बात करेंगे)। वे बोलते समय इन शब्दों के आगे ‘अ’ या ‘इ’ लगा देते हैं। होता है स्कूल, बोलते हैं इस्कूल, होता है स्नान, बोलते हैं अस्नान, होता है स्थिर, बोलते हैं अस्थिर। सो ऐसे लोगों को लगा होगा कि इस शब्द को बोला तो जाता है इस्तीफ़ा लेकिन स्कूल, स्नान और स्थिर की तरह यह ‘स्’ से शुरू होता है, न कि ‘इ’ से। यानी उनके अनुसार स्तीफ़ा को ही सभी लोग इस्तीफ़ा बोलते हैं। यही बात एस्टेट के मामले में भी है। कई लोग Estate (उच्चारण – एस्टेट/इस्टेट) को हिंदी में स्टेट लिखते हैं (देखें चित्र)।

हिंदुस्तान की वेबसाइट पर एस्टेट की जगह स्टेट।

अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल कि कुछ लोगों को स् से शुरू होने वाले शब्दों के उच्चारण में समस्या क्यों होती है। इसके बारे में मेरे भाषामित्र योगेंद्रनाथ मिश्र ने कुछ समय पहले फ़ेसबुक पर लिखा था। मैं उन्हीं की व्याख्या को यहाँ अपने शब्दों में प्रस्तुत कर रहा हूँ।

मुझे नहीं मालूम, आपने कभी ध्यान दिया या नहीं, ‘स्’ से शुरू होने वाले सभी शब्दों के उच्चारण में दिक़्क़त नहीं होती। उदाहरण के तौर पर स्नान, स्थिति, स्कूल, स्पिन, स्मृति आदि में समस्या होती है लेकिन स्वप्न, स्वामी, स्याही, स्राव आदि में मुश्किल नहीं होती (बोलकर देखिए)। ऐसा क्यों, इसपर चर्चा करने से पहले यह जान लें कि वे किस तरह के शब्द हैं जिनमें लोगों को समस्या होती है और किस तरह के शब्दों में नहीं।

लोगों को समस्या होती है उन शब्दों में जिनमें स् के बाद हिंदी वर्णमाला के पहले पचीस व्यंजन आते हैं जिन्हें स्पर्श व्यंजन कहा जाता है। यानी स् के बाद यदि कवर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), चवर्ग (च, छ, ज, झ, ञ), टवर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), तवर्ग (त, थ, द, ध, न) और पवर्ग (प, फ, ब, भ, म) के वर्ण आएँ तो उन शब्दों को बोलने में परेशानी होती है। आप ऊपर के उदाहरणों में देखेंगे तो पाएँगे कि स्नान, स्थिति, स्कूल, स्पिन और स्मृति में स् के बाद न, थ, क, प और म हैं। ये पाँचों हिंदी वर्णमाला के पाँच वर्गों के ही सदस्य हैं।

इसके बाद के जो व्यंजन हैं – य, र, ल और व – इनसे पहले अगर स् आए तो लोगों को बोलने में समस्या नहीं आती। स्वप्न, स्राव, स्याही – ये सब ऐसे ही शब्द हैं। 

अब आते हैं कारण पर। कारण के बारे में मैं योगेंद्र जी की बातों को उन्हीं के शब्दों में बहुत हल्के संपादन के साथ नीचे पेश कर रहा हूँ। वे लिखते हैं – 

  • भाषा की आधारभूत इकाई ध्वनि है। ध्वनियों के उच्चारण में मुख्य भूमिका अंदर से बाहर आने वाली हवा की है।
  • अंदर से बाहर आने वाली हवा के मार्ग में तरह तरह के अवरोध पैदा करके तरह-तरह की  ध्वनियाँ उच्चरित की जाती हैं। ऐसे अवरोध व्यंजनों के उच्चारण में होते हैं, स्वरों के उच्चारण में नहीं।
  • क् से लेकर म् तक के बीच जो 25 व्यंजन ध्वनियाँ हैं, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहा जाता है। 
  • स्पर्श व्यंजनों के उच्चारण के समय सबसे पहले मुख या गले में कहीं भी अंदर से बाहर आने वाली हवा के प्रवाह को पूरी तरह से रोक दिया जाता है। फिर एक झटके से छोड़ा जाता है। इस तरह क् से लेकर म् तक की ध्वनियों का उच्चारण होता है।
  • शेष ध्वनियों के उच्चारण में हवा को पूरी तरह से रोका नहीं जाता। यही दोनों में मूल अंतर है।
  • इस तरह हम कह सकते हैं कि अलग-अलग ध्वनियों के उच्चारण में अलग-अलग प्रयत्न की जरूरत होती है।
  • जब कोई ध्वनि अकेले उच्चरित होती है, तब उसके उच्चारण में समस्या नहीं आती। जब उसके साथ स्वर युक्त हो, तब तो और भी आसान होता है। जैसे स (स्+अ)+ब (ब्+अ)+ल (ल्) को आप आसानी से बोल सकते हैं – सबल्।
  • लेकिन संयुक्त ध्वनियों के मामले में एक ध्वनि के उच्चारण की प्रक्रिया पूरी भी नहीं हो पाती कि अगली ध्वनि के उच्चारण की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। समस्या इसी कारण है।

ऊपर जो बताया, उसे हम इन तीन वाक्यों में समाहित कर सकते हैं।

  1. य, र, ल, व, श, ष, स और ह ध्वनियों के उच्चारण के समय हवा मुखमार्ग में कहीं रुकती नहीं है।
  2. क् से म् तक की ध्वनियों के उच्चारण में पहले पूरी हवा रुक जाती है। फिर एक झटके से बाहर निकलती है।
  3. संयुक्त व्यंजन में दो ध्वनियों का उच्चारण एकसाथ एक इकाई के रूप में करना होता है। स् से शुरू होने वाले शब्दों में स् के बाद अगले व्यंजन का तत्काल उच्चारण करना पड़ता है।

अब आगे बढ़ते हैं।

  • स् के उच्चारण में हवा का मार्ग सँकरा होता है । लेकिन हवा रुकती नहीं है। जबकि क् से म् तक की ध्वनियों के उच्चारण में पहले हवा के प्रवाह को रोकना पड़ता है। 
  • हवा को रोकेंगे तो स् का उच्चारण कठिन हो जाएगा। और नहीं रोकेंगे तो (स् से शुरू होने वाले संयुक्ताक्षरों में) बाद की क् से म् तक की ध्वनि का उच्चारण नहीं होगा।
  • ऐसे में स् के उच्चारण को थोड़ा सुगम बनाने के लिए उसके पहले लोग ‘अ’ या ‘इ’ स्वर का सहारा लेते हैं। ‘अ’ या ‘इ’ का सहारा लेने से स् बोलने के क्रम में अपने अगले वर्ण से अलग हो जाता है हालाँकि लिखित रूप में साथ ही रहता है।
  • तकनीकी शब्दावली में कहें तो स् से पहले ‘अ’ या ‘इ’ लगाने से शब्द की अक्षर संरचना (syllable structure) में बदलाव आ जाता है। पहले जहाँ स्थायी दो अक्षरों (syllable) में टूटता था – स्था+यी, वहीं अब शब्द तीन हिस्सों में टूटता है – अस्+था+यी। आप जानते ही हैं कि अ और स् को साथ बोलने में कोई समस्या ही नहीं है क्योंकि दोनों में हवा नहीं रुकती। यही बात इस्कूल (इस्+कूल), अस्थान (अस्+थान), इस्मृति (इस्+मृ+ति) आदि में भी लागू होती है।
  • ऐसा नहीं है कि अ या इ के सहारे के बिना इन शब्दों का उच्चारण हो ही नहीं सकता। परंतु उसके लिए बहुत सावधानी तथा अभ्यास की जरूरत पड़ती है। फिर भी हमेशा सफलता नहीं मिलती।
  • स्याही (स् के बाद य), स्रष्टा (स् के बाद र), स्लेट (स् के बाद ल – संस्कृत/हिन्दी में शब्द के आरंभ में स्ल् नहीं आता) और स्वर (स् के बाद व) जैसे शब्दों में स् के बाद य, र, ल और व हैं जिनके उच्चारण में स् की ही तरह हवा को पूरी तरह रोकने की ज़रूरत नहीं पड़ती। इसलिए स्य्, स्र्, स्ल्, स्व् के उच्चारण में स् का उच्चारण कठिन नहीं होता। इसी कारण ऐसे शब्दों के उच्चारण के आरंभ में ‘अ’ या ‘इ’ स्वर का सहारा नहीं लिया जाता।

जाते-जाते दो शब्दों के बारे में ज़िक्र करूँगा जिसके बारे में मैं निश्चित नहीं था कौन किससे बना। ये शब्द हैं अस्तबल और Stable। मुझे लगता था कि अंग्रेज़ी के Stable से ही अस्तबल बना होगा। लेकिन अभी इस पोस्ट के बारे में रिसर्च के दौरान पाया कि अस्तबल अरबी के इस्तबल से बना है और यह इस्तबल लैटिन के Stabulum से आया बताते हैं। उधर पुरानी फ़्रांसीसी में भी Stabulum से Estable बना। यानी दोनों जगह स् से पहले इ लगाया गया। निष्कर्ष : कुछ ध्वनियों से पहले स् न बोल पाने की समस्या केवल हम भारतीयों को नहीं है, अरबों को भी थी (या आज भी है) और फ़्रांसीसियों को भी।

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