बलात्कारी कई तरह के होते हैं। कुछ साफ़ नज़र आते हैं, कुछ भेस बदलकर आते हैं। जो साफ़ नज़र आते हैं, उनके लिए क़ानून में सज़ा का प्रावधान है। मगर जो भेस बदलकर आते हैं, उनके मामले में क़ानूनी स्थिति और अदालतों का नज़रिया अस्पष्ट है। जैसे उन लोगों के साथ क्या सलूक हो जो दूल्हे का चोला साथ लेकर आते हैं, शादी से पहले ही सुहागरात मनाते हैं और फिर वह चोला फेंककर कहीं चले जाते हैं। क्या वे भी बलात्कारी हैं? अगर हाँ तो कब और नहीं तो कब? आज इसी विषय पर चर्चा करेंगे। रुचि हो तो पढ़ें।
(पहले पढ़ें पिछली कड़ी – कुछ बलात्कारी दूल्हे के लिबास में आते हैं)
शादी का वादा करके किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाने और बाद में शादी से मुकरने के मामलों में अदालतें दो तरह के फ़ैसले करती आई हैं। कुछ में पुरुषों को सज़ा हुई है, कुछ में वे बरी हो गए हैं। ऐसा क्यों हो रहा है, यह हम नीचे समझेंगे।
इंडियन पीनल कोड (IPC) के सेक्शन 375 में यह बताया गया है कि किन परिस्थितियों में किन्हीं स्त्री-पुरुष के बीच के शारीरक संबंध को रेप माना जाएगा।
इनमें छह स्थितियाँ दी गई हैं और उन सबमें स्त्री की इच्छा या सहमति को बहुत ही अनिवार्य माना गया है। इसके साथ ही कुछ ख़ास अवस्थाएँ बताई गई हैं जिनमें स्त्री की सहमति होने के बावजूद उस संबंध को बलात्कार माना जाएगा। आइए, देखते हैं क्या हैं वे छह स्थितियाँ जिनके आधार पर किसी शारीरिक संबंध को बलात्कार माना जा सकता है।
- पहली स्थिति – जब यह संबंध स्त्री की इच्छा के विरुद्ध किया जाए।
- दूसरी स्थिति – जब यह संबंध स्री के सहमति के बिना किया जाए।
- तीसरी स्थिति – जब स्त्री की सहमति उसे या उसके किसी क़रीबी व्यक्ति को जान से मारने या नुक़सान पहुँचाने का डर दिखाकर ली गई हो।
- चौथी स्थिति – जब स्त्री ने यह मानकर सहमति दी हो कि संबंध करने वाला पुरुष उसका वैध पति है जबकि पुरुष को पता हो कि वह उस स्त्री का पति नहीं है।
- पाँचवीं स्थिति – जब स्त्री सही मानसिक अवस्था में न हो, नशे में हो या उसे उस पुरुष अथवा किसी और के द्वारा कोई नशीला पदार्थ आदि दिया गया हो और वह जिस कृत्य (शारीरिक संबंध) की सहमति दे रही है, उसकी प्रकृत्ति या परिणाम समझने की स्थिति में न हो।
- छठी स्थिति – 16 साल से कम की लड़की के साथ संबंध चाहे उसमें लड़की की सहमति हो या न हो।
इस सेक्शन में शादीशुदा दंपती को अपवाद माना गया है। यदि कोई पति अपनी पत्नी की सहमति के बग़ैर भी उससे सहवास करे तो उसे बलात्कार नहीं माना जाएगा बशर्ते पत्नी की आयु 15 वर्ष से अधिक हो।
आपने देखा कि सेक्शन 375 में कहीं नहीं लिखा कि यदि कोई पुरुष किसी स्त्री से शादी का झूठा वादा करके शारीरिक संबंध बनाएगा तो उसे रेप माना जाएगा। इस सेक्शन में बस यह लिखा है कि शारीरिक संबंध में स्त्री की इच्छा या सहमति होनी चाहिए – वह भी ऐसी सहमति जो किसी को डरा-धमकाकर या नशे की हालत में हासिल नहीं की गई हो। यानी सहमति पूर्णतः स्वैच्छिक और वैध होनी चाहिए। अगर है तो कोई दिक़्क़त नहीं। अगर नहीं है तो वह रेप है।
अब वैध सहमति क्या है, इसके बारे में कुछ-कुछ तो इसी सेक्शन में लिखा है। सहमति डरा-धमकाकर नहीं ली गई हो, नशा करवाकर नहीं ली गई हो आदि। लेकिन IPC का एक और सेक्शन है जिसमें वैध सहमति के बारे में लिखा गया है। वह है सेक्शन 90। इसके अनुसार भय या भ्रम (Fear or Misconception) के तहत दी गई सहमति वैध सहमति नहीं है।
अब सेक्शन 90 को सेक्शन 375 के साथ जोड़कर देखा जाए तो निष्कर्ष यह निकलता है कि शादी का झूठा वादा दरअसल एक धोखा है, इसलिए उस झूठे वादे के ‘भ्रम’ में आकर अगर कोई सहमति देता है तो वह वैध सहमति नहीं है (सेक्शन 90) और जब सहमति वैध नहीं है तो उस अवैध सहमति के आधार पर बना संबंध रेप के दायरे में आ जाता है क्योंकि सेक्शन 375 बिना वैध सहमति के हुए किसी भी शारीरिक संबंध को रेप मानता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो जिस तरह डरा-धमकाकर या नशे की हालत में हासिल की गई सहमति वैध सहमति नहीं है, वैसे ही शादी का वादा करके हासिल की गई सहमति भी (सेक्शन 90 में दी गई व्यवस्था के अनुसार) वैध सहमति नहीं मानी जा सकती। और जब सहमति वैध नहीं है तो वह असहमति है और सेक्शन 375 के अनुसार अहसमति से किया गया संबंध बलात्कार है। सिंपल।
लेकिन यह इतना भी सिंपल नहीं है। कुछ और अदालतों ने, जिनमें सुप्रीम कोर्ट भी शामिल है, बार-बार यह कहा है कि शादी का झूठा वादा करने और शादी के वादे से मुकर जाने में अंतर है। शादी का झूठा वादा करने से आशय यह है कि पुरुष शारीरिक संबंध बनाते समय मन-ही-मन यह तय किए हुए था कि वह शादी नहीं करेगा। इस हालत में वह जो संबंध बनाता है, वह रेप माना जाएगा। लेकिन ऐसी भी स्थितियाँ आ सकती हैं कि कोई पुरुष किसी स्त्री से शारीरिक संबंध बनाते समय वास्तव में उससे शादी करने का इरादा रखता हो मगर किन्हीं कारणों से बाद में अपना वादा पूरा न कर पाए। उस स्थिति में भी क्या उसे रेप का दोषी माना जाएगा?
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में जो फ़ैसला दिया है, उसके अनुसार उस व्यक्ति को रेप का दोषी नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि शादी के वादे से पलटना रेप का आधार नहीं है। अदालत ने जनवरी 2023 में दिए गए एक फ़ैसले में एक व्यक्ति को इसी आधार पर रेप के आरोप से मुक्ति दे दी कि जब उसने महिला से संबंध बनाए थे, तब उसका इरादा उससे शादी करने का था।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद ऐसे रिश्तों में उलझी महिलाओं के लिए और मुश्किल हो जाएगा अगर उनका पार्टनर बाद में शादी से इनकार कर दे क्योंकि पार्टनर कह सकता है कि जब रिश्ते बने थे, तब उसका शादी का इरादा था लेकिन बाद में किन्हीं अपरिहार्य कारणों से वह शादी नहीं कर पा रहा। महिलाओं के लिए यह साबित करना बहुत ही मुश्किल होगा कि पुरुष पार्टनर शुरू से छल कर रहा था।
महिलाओं के लिए मुश्किल का एक कारण यह भी है कि सेक्शन 375 में रेप की जो परिभाषाएँ दी गई हैं, उनमें शादी का वादा करके मुकरने का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। इसी कारण उड़ीसा उच्च न्यायालय ने भी विवाह के झूठे वादे के तहत रेप का आरोप झेल रहे एक व्यक्ति को ज़मानत दे दी। कोर्ट का कहना था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में रेप को परिभाषित करते हुए के जो-जो आधार दिए गए, उनमें शादी का झूठा वादा करना कहीं नहीं है।
यानी इस मामले में दो तरह की पेचीदगियाँ हैं।
- सेक्शन 375 में साफ़-साफ़ नहीं लिखा है कि विवाह का झूठा वादा करके किसी महिला से शारीरिक संबंध बनाना रेप है।
- महिलाओं के लिए यह साबित करना मुश्किल है कि पुरुष ने जिस समय उससे शारीरिक संबंध बनाया था, उस समय उसका इरादा शादी करने का नहीं था।
इसलिए बड़ी-छोटी सभी अदालतें ऐसे मामलों में अलग-अलग तरह के निर्णय दे रही हैं।
यह लेख 15 फ़रवरी 2010 को नवभारत टाइम्स के एकला चलो ब्लॉग सेक्शन में प्रकाशित हुआ था। यह उसका विस्तारित और संशोधित रूप है।